सरकार का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष (2010) के दौरान ईंधन की खपत में छह प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। अर्थव्यवस्था में आई मंदी के बावजूद कच्चे तेल के आयात में बढ़ोतरी देखी गई है।
पेट्रोलियम सचिव आर एस पांडे ने कहा, ‘अर्थव्यवस्था का विकास छह प्रतिशत की दर से होना जारी है और इसलिए हमारा अनुमान है कि पेट्रोलियम उत्पादों की मांग इस वर्ष छह प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और अगले साल भी मांग का स्तर लगभग समान होने का अनुमान है।’
वित्त वर्ष 2008-09 के अप्रैल से नवंबर की अवधि में ईंधन की खपत में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 866 लाख टन हो गया। औद्योगिक अधिकारियों ने कहा कि पांडे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की ईंधन की बिक्री के बारे में बताया हो सकता है।
एक औद्योगिक अधिकारी ने कहा, ‘निजी कंपनियों के जेट ईंधन, तेल, नैफ्था और औद्योगिक एलपीजी की बिक्री में निश्चित तौर पर ऋणात्मक विकास हुआ है। इस वित्त वर्ष में संचयी विकास 3.5 से 4 प्रतिशत हो सकता है।’
उन्होंने कहा, ‘मांग की विकास दर 6.5 प्रतिशत मानते हुए 1,357 लाख टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की भविष्यवाणी के साथ इस वित्त वर्ष की शुरुआत की थी। हालांकि, मांग को देखते हुए इसे सुधार कर 1,334 लाख टन किया गया। अभी भी हमें भरोसा नहीं है कि इस साल का अंत हम बिक्री के इस आंकड़े के साथ करेंगे।’
वित्त वर्ष 2007-08 में ईधन की खपत 6.8 फीसदी बढ़ कर 1,289.4 लाख टन हो गया। ‘पेट्रोल और डीजल की मांग में बढ़ोतरी हुई है लेकिन खुली कीमत वाले उत्पादों की मांग दर ऋणात्मक रही है।’
पांडे ने कहा कि रिफाइनिंग क्षमता बढ़ने, खास तौर से ‘केवल निर्यात के लिए’ स्थापित की गई रिलायंस पेट्रोलियम की रिफाइनरी के कारण अगले वित्त वर्ष में कच्चे तेल का आयात बढ़ेगा। साल 2007-08 में भारत ने 1,216.5 लाख टन कच्चे तेल का आयात किया था ।
जिसकी कीमत 68 अरब डॉलर थी और अप्रैल से नवंबर के दौरान 860.8 लाख टन का आयात किया गया जिसकी कीमत 63.76 डॉलर थी।
अगले वित्त वर्ष में आरपीएल की रिफाइनरी अपनी पूरी क्षमता, 290 लाख टन, के साथ काम कर ही होगी इसलिए आयात में इजाफा होगा।