इस बार देश के मध्र्यवत्ती इलाकों में मानसून का प्रदर्शन असंतोषजनक रहा है। देश के इन इलाकों में छत्तीसगढ़ के 18 में से 13 जिले शामिल हैं।
राज्य के सूखा प्रभावित कवर्धा जिले के किसान अनिल कुमार चंद्रवंशी के मुताबिक, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि इस खरीफ मौसम में प्रकृति उसके साथ ऐसा खिलवाड़ करेगी। चंद्रवंशी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि महंगाई की वजह से खेतों को तैयार करने में उसे 40 फीसदी ज्यादा खर्च करना पड़ा।
इसके बाद बारिश ने भी किसानों के साथ धोखा किया और वह नदारद रही। इसके चलते धान के कुल उत्पादन में 70 फीसदी की कमी आने का अंदेशा है। उसने कहा कि पहले वह गन्ना पैदा करता था लेकिन पिछले दो साल से गन्ने की बजाय उसने धान उपजाना शुरू कर दिया।
उसने बताया कि इस बार बारिश ने तो धोखा किया ही, उर्वरक, बीज और मजदूरी पर खर्च होने वाली लागत भी बढ़ गई हैं। इसके चलते खेतों को तैयार करने का खर्च भी 40 फीसदी बढ़ गया। लेकिन बारिश न होने और कीट-पतंगों द्वारा तबाही मचाने से 2.5 हेक्टेयर में से 1.5 हेक्टेयर की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है।
ऐसे में उसके खेतों में पैदा होने वाले धान की कुल पैदावार में 70 फीसदी की कमी होने का अनुमान है। कवर्धा राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह का गृह जिला है। 1 सितंबर तक के आंकड़े बताते हैं कि इस जिले में औसत से 31 फीसदी कम बारिश हुई है। राज्य के दूसरे जिलों की हालत भी कमोबेश इसी तरह है।
कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य सरकार ने 35 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई का लक्ष्य रखा है जिसे हासिल किए जा सकता था। लेकिन बारिश की बेरुखी से बिचड़ों की रोपाई का काम बुरी तरह प्रभावित होने से यह लक्ष्य खटाई में पड़ता दिख रहा है। राज्य के सूखा प्रभावित जिलों के 50 फीसदी किसानों ने अपने खेतों को परती छोड़ रखा है।