बारिश कम होने से इस वर्ष महाराष्ट्र में दलहन की खरीफ फसल में 92 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। इस अंदेशे से बाजार में दलहन की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है।
बुवाई पहले ही सामान्य समय से 15 दिन पीछे चल रही हैं। 4 जुलाई तक केवल 2.1 लाख हेक्टेयर में दलहन की खेती की गई है जबकि सामान्यतया 26 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है। आमतौर पर दलहन की बुवाई अब तक संपन्न हो जाती है लेकिन इस साल किसानों को बारिश के लिए और 10 दिनों का इंतजार करना पड़ सकता है।
मुंबई स्थित एक दाल आयातक कंपनी यू गोयनका संस के निदेशक एस पी गोयनका ने कहा, ‘अगर 10 दिनों के भीतर बारिश नहीं होती है तो किसान अन्य फसलों जैसे मक्का, सोयाबीन और कपास की खेती का रुख कर सकते हैं।’
पल्सेस इम्पोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट के. सी. भरतिया ने हालांकि खेती के क्षेत्र में आई कमी की जानकारी से इनकार करते हुए कहा, ‘अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि बुवाई के क्षेत्र में कमी आई है क्योंकि बुवाई का सीजन अभी समाप्त नहीं हुआ है। इस साल पूरे देश में बारिश कम हुई है। इसका यह मतलब नहीं है कि दलहन की खेती के रकबे में कमी आई है।’
कम उत्पादन और वर्षा में विलंब की संभावनाओं के कारण मुंबई के दलहन बाजार में पिछले दो दिनों में उड़द और तुर के मूल्यों में 15 प्रतिशत का उछाल आया और इनकी कीमतें क्रमश: 2,575 रुपये और 2,700 रुपये प्रति क्विंटल रहीं। गोयनका ने कहा कि अगर बारिश नहीं हुई तो दाल की कीमतें आसमान छूएंगी। भारत में लगभग 140 लाख टन दलहन का उत्पादन होता है और 25 लाख टन दाल का आयात (मुख्यत: म्यांमार से) किया जाता है। ऐसी खबर है कि म्यांमार में दलहन की फसल सामान्य है।
नेशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज द्वारा किए गए नवीनतम अध्ययन के अनुसार इस वर्ष 1 जून से 24 जून के बीच देश के 27 हिस्सों में बारिश सामान्य रही जबकि 9 हिस्सों में कम हुई है। मॉनसून आने के पहले 4 सप्ताहों में कुल मिलाकर 154 मिमी. बारिश हुई जबकि सामान्य स्तर 122.3 मिमी. का होता है। इसमें 26 प्रतिशत का बदलाव देखा गया है।
अधिकांश क्षेत्रों में बुवाई के समय फसलों अपर्याप्त वर्षा हुई। कुछ खास क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में बारिश कम हुई है। हालांकि भारतीय मौसम विभाग की इस भविष्यवाणी से थोड़ी राहत मिली है कि आने वाले सप्ताह में पश्चिम तटीय क्षेत्रों में अच्छी बारिश हो सकती है। पिछले साल दाल के मूल्यों में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।