जीन परिवर्तित कपास के लिए विदेशों पर निर्भरता होगी खत्म

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 8:49 AM IST

देश के कपास उत्पादकों को 2012 के बाद कपास के जीन परिवर्तित बीजों के लिए विदेशी कंपनियों का मुंह ताकना नहीं पड़ेगा।


2012 तक किसानों के पास अपने देश में ही विकसित जीन परिवर्तित कपास उपलब्ध हो जाएंगे। बहरहाल भारतीय वैज्ञानिकों ने जीन परिवर्तित कपास की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका देश में विभिन्न जगहों पर परीक्षण हो रहा है।

सूत्रों के मुताबिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संगठन फिलहाल 12 फसलों जैसे चना, तुअर दाल, आलू, पपीता, बैंगन, अरंडी के जीन परिवर्तित बीजों के विकास पर काम कर रहा है। देश में किसान ब्रांडेड बीजों का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते बल्कि वे उन्हीं बीजों का इस्तेमाल करते हैं जिसे वे स्वयं उगाते हैं।

इस बीच खबर है कि भोपाल स्थित राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र (एनएसआरसी) उन दो किस्मों के विकास में जुटे है जो येलो मोजैक वायरस (वाईएमवी) और सूखे से जूझ सके। यही नहीं, आईसीएआर आलू की भी जीन परिवर्तित किस्म तैयार करने में जुटा है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के निदेशक मंगला राय ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कपास की इस नई किस्म का नाम ‘बीकानेरी नरमा’ रखा गया है। फिलहाल देश में विभिन्न जगहों पर इसका परीक्षण चल रहा है।

उम्मीद है कि अगले दो साल में यह आम किसानों के उपयोग के लिए उपलब्ध हो जाएगी। यहां के किसान वास्तव में संकर किस्मों का ही इस्तेमाल करते हैं, जबकि जीन परिवर्तित बीजों के लिए ये विदेशी कंपनियों पर ही निर्भर रहते हैं।

भोपाल स्थित एनएसआरसी में भी दो जीन परिवर्तित बीजों के विकास की दिशा में काम चल रहा है। इस केंद्र के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अभी हमारे पास सोयाबीन का जेएस 9752 किस्म वाईएमवी प्रतिरोधी है। एनआरसी-7 और जीएस-9560 जैसी किस्में कम बारिश वाले इलाकों में भी बोयी जा सकती हैं।

उन्होंने बताया कि केंद्र वाईएमवी प्रतिरोधी और सूखे इलाकों में बोई जाने वाली जीन परिवर्तित सोयाबीन के विकास में जुटे हैं। मालूम हो कि 100 से भी ज्यादा रोगजनक चीजों जैसे फफूंद, जीवाणुओं, विषाणुओं, स्पाइरोप्लाज्मा और नेमाटोड्स आदि के चलते हर साल देश में सोयाबीन का उत्पादन करीब 12 फीसदी प्रभावित हो जाता है।

राय ने बताया कि आसीएआर ने हाल ही में आलू में प्रोटीन की मात्रा 50 फीसदी तक बढ़ाने के लिए एएमए-1 जीन डाला है। उनके अनुसार, आलू में अभी 2 फीसदी प्रोटीन होता है अब इस प्रयोग के बाद आलू में 3 फीसदी प्रोटीन जमा हो जाएगा।

First Published : December 12, 2008 | 10:23 PM IST