उर्वरक की खुदरा कीमत में वृद्धि की संभावना खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) पर अतिरिक्त सब्सिडी 31 दिसंबर, 2024 के आगे भी जारी रखने का फैसला किया है। इससे कंपनियां 1,350 रुपये प्रति बोरी का मौजूदा भाव बरकरार रख सकेंगी। उर्वरक के लिए एकमुश्त विशेष पैकेज को जनवरी-दिसंबर, 2025 की अवधि के लिए मंजूरी दिए जाने से खजाने पर 3,850 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
सूत्रों ने कहा कि अगर अतिरिक्त सब्सिडी नहीं बढ़ाई जाती तो उर्वरक कंपनियां डीएपी की दर कम से कम 200 रुपये बोरी बढ़ानेकी योजना बना रही थीं, जिससे कि आयात की बढ़ी लागत की भरपाई हो सके। किसान यूरिया के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल डीएपी का करते हैं। इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को 2 फसल बीमा योजनाओं – पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस – को वर्ष 2025-26 तक एक और साल के लिए बढ़ा दिया है। इसके साथ ही प्रमुख योजनाओं के कार्यान्वयन में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के लिए 824.77 करोड़ रुपये का एक अलग कोष भी बनाया गया है। इस धन का इस्तेमाल फसल बीमा योजनाओं में डिजिटल सहायता देने के लिए किया जाएगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) को 15वें वित्त आयोग की अवधि के अनुरूप विस्तारित करने के लिए बढ़ा दिया गया है।
पिछले साल केंद्र सरकार ने कीमतों पर लगाम लगाने के लिए डीएपी पर 3,500 रुपये प्रति टन के हिसाब से एकमुश्त स्पेशल पैकेज की घोषणा की थी, जो 1 अप्रैल, 2024 से 31 दिसंबर 2024 तक मान्य था। इससे खजाने पर 2,625 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा। यह पैकेज पोषक आधारित सब्सिडी (एनबीएस) के अतिरिक्त था, जिसे सरकार ने गैर यूरिया उर्वरकों के लिए बजट में तय किया था। 31 दिसंबर 2024 के बाद अतिरिक्त सब्सिडी दिए जाने का यह भी मतलब है कि गैर यूरिया उर्वरकों पर वित्त वर्ष 2025 में सब्सिडी 45,000 करोड़ रुपये सब्सिडी के बजट अनुमान से अधिक हो सकती है।
आंकड़ों से पता चलता है कि नवंबर 2024 तक गैर यूरिया उर्वरकों की सब्सिडी पर वास्तविक व्यय बजट अनुमान के 83 प्रतिशत पर पहुंच गया है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि डीएपी पर अतिरिक्त सब्सिडी दिसंबर 2024 के बाद भी जारी रखने के बावजूद डीएपी पर कुल प्रति बोरी अंडर रिकवरी 40 रुपये के करीब ही रहेगी। डीएपी का आयात मूल्य 640 डॉलर प्रति टन के भाव होने के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है। भारत अपनी डीएपी की 1.1 करोड़ टन सालाना जरूरतों का करीब आधा आयात करता है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)