चाय कंपनी बीटीसी ने गुवाहाटी टी ऑक्शन सेंटर के नियमों की अवहेलना की और फर्जी तरीके से लेन-देन का काम किया। भाग्यलक्ष्मी के पास नाहौरगुरी और काजीरंगा दो बागान हैं।
जीटीएसी ने एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की जिसकी एक रिपोर्ट के जरिए ही यह खुलासा हुआ। यह कंपनी फर्जी कामों में लिप्त रही है।
इस कंपनी ने नीलामी से पहले जीटीएसी के खरीदारों को बेहतर गुणवत्ता वाली चाय के नमूने पेश किए लेकिन बाद में इसने बहुत सारे खराब माल की आपूर्ति कर दी। बिजनेस स्टैंडर्ड के पास भी इस रिपोर्ट की प्रति है।
बीटीसी के मालिक भास्कर बारकाकोती से जब संपर्क करने की कोशिश की गई तो संपर्क नहीं हो पाया। खरीदारों को यह आशंका हो गई कि दो भंडारगृहों में जहां बीटीसी का चाय रखा जाता था वहां कुछ अनुचित काम हो रहा है। इसके बाद ही जीटीएसी ने एसआईटी को बनाया। एसआईटी ने अपनी जांच में यह पाया कि बारकाकोती को वर्ष 2008 के बाद वित्तीय संकट से गुजरना पड़ा था।
वह नाहौरगुरी और काजीरंगा चाय बागान से खरीदारों की मांग को पूरा नहीं कर सकता था। उसने खेमका टी वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन और लक्ष्मी टी वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन पर यह दबाव डाला कि वह इस्टर्न टी ब्रोकर प्राइवेट लिमिटेड के नाम से चाय की आवक और बाजार में भेजने की रिपोर्ट जारी करे।
इस तरह जीटीएसी के जरिए बदले चाय को बेच दिया गया जबकि वह चाय भंडारगृहों तक पहुंचती भी नहीं थी। इस जांच समिति ने यह भी पाया कि बारकाकोती ने दो भंडारगृहों के मालिकों पर भी यह दबाव डाला कि वे खरीदारों की मांग पूरा करने के लिए खराब चाय को भी मिला कर बेचें। आढतियों को इस बात की पूरी जानकारी थी और वे बेहतरीन गुणवत्ता के नाम पर खरीदारों को ठगते रहे।
एसआईटी ने यह पाया कि संजय खेमका और मनोज सुराना जो भंडारगृहों के मालिक थे उन्होंने जीटीएसी के नियमों की अवहेलना की थी। वे लोग भाग्यलक्ष्मी टी कंपनी के भास्कर बारकाकोती और इस्टर्न टी ब्रोकर प्राइवेट लिमिटेड के साथ ही इस धोखधड़ी के अपराध में शामिल थे। इन सभी लोगों की यही साजिश भी कि वे बिकवाली करने वालों को फर्जीवाड़ा करने के लिए उकसाएं।