मलयेशिया और इंडोनेशिया के कुछ उद्यमियों के प्रयासों से पिछले कुछ सालों में पाम ऑयल बायोडीजल का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनता जा रहा है।
मलयेशिया और इंडोनेशिया की सरकारों ने भी इस कोशिश को अपना सहारा दिया है। दूसरी तरफ, कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने चेतावनी दी है कि ये दो देश पाम के पेड़ों के लिए जगह बनाने के चक्कर में जंगलों का सफाया कर रहे हैं।
साल 2005 में मलयेशियाई सरकार ने दो प्रमुख कारणों से राष्ट्रीय बायोफ्यूल नीति बनाई तैयार की थी। पहला कारण था ईंधन निर्यात के खचर्को नियंत्रण में रखना और दूसरा निर्यात की कम मांग के समय में पाम ऑयल की कीमतों में ज्यादा गिरावट न आने देना।
इसके लिए मलयेशियाई सरकार ने जरूरत से अधिक पाम ऑयल को बायोडीजल फैक्ट्रियों में भेजना शुरू किया था।
मलयेशिया पाम ऑयल से संबध्द तकरीबन 200 से अधिक बायोडीजल परियोजनाओं को मंजूरी दे चुका है।
लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण कच्चे तेल की कीमतों के 22 महीनों के न्यूनतम स्तर पर आ जाने के कारण मंजूर की गई अधिकांश पाम ऑयल आधारित बायोडीजल परियोजनाओं की व्यवहार्यता खतरे में पड़ जाएगी।
इसके अतिरिक्त, हर जगह के बैंक अब चुनिंदा परियोजनाओं को ही ऋण उपलब्ध करा रहे हैं। साल 2005 की शुरुआत से पाम ऑयल की कीमतों का संबंध कच्चे तेल की बढ़ती मांगों से रहा है। फलस्वरूप सभी अन्य वनस्पति तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली।
जब तक पाम ऑयल की कीमतें कच्चे तेल की कीमतों के साथ बढ़ती रहीं तब तक मलयेशियाईयों की तरफ से कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली।
लेकिन अब मामला उलट गया है। यही कारण है कि मलेशियाई अब नहीं चाहते कि पाम ऑयल की कीमतें कच्चे तेल के संकेतों के आधार पर तय हों।
गोदरेज इंटरनेशनल के दोरब ई मिस्त्री कहते हैं, ‘बायोडीजल के कारण पाम ऑयल की मांग बढ़ी है और यह अब पाम ऑयल की कीमतों के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गया है।
हम इस वास्तहिवकता से इनकार नहीं कर सकते।’ साल 2005 में कच्चे तेल की कीमतों के साथ बनाए गए संबंधों से पाम ऑयल इतनी जल्दी कैसे अलग हो सकता है!
मिस्त्री कहते हैं, ‘हम पाम ऑयल के बड़े निर्यातकों में से हैं इसलिए हमारे लिए इसका नीतिगत महत्व है। अक्टूबर 2008 को समाप्त हुए सीजन में भारत को 59.4 लाख टन वनस्पति तेलों का आयात करना था जिसमें पाम ऑयल (अधिकांश कच्चे रूप में) की हिस्सेदारी 49 लाख टन थी।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तेल आयातक रहा क्योंकि साल 2007-08 में हमारा घरेलू उत्पादन 71.35 लाख टन का था जो 127.35 लाख टन की खपत के मुकाबले काफी कम पड़ गई थी।’
मिस्त्री कहते हैं कि चालू सीजन में भारत का उत्पादन बढ़ कर 73.7 लाख टन हो जाएगा और आयात भी मामूली रूप से कम होकर 58.15 लाख टन रहेगा। ‘प्रति व्यक्ति खपत हमारे यहां कम (11.17 किलोग्राम) है जबकि चालू सीजन में तेल की स्थानीय खपत बढ़ कर केवल 130 लाख टन होगी।’
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक सेतिया के अनुसार खरीफ तिलहन की खेती का रकबा बढ़ कर 176.5 लाख हेक्टेयर हो गया ।
लेकिन जुलाई में बारिश नहीं होने और मॉनसून के असमान वितरण के कारण फसल पर प्रभाव पड़ेगा। मतलब यह है कि तिलहन का रकबा बढ़ने के बावजूद हमें इसका लाभ नहीं मिलने जा रहा है।
खरीफ तिलहन फसल की नवीनतम समीक्षा में सेंट्रल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड का कहना है कि मोटे तौर पर उत्पादन में कोई बदलाव नहीं आएगा और यह 164.1 लाख टन के आसपास रहेगा। सोयाबीन का उत्पादन सबसे अधिक, 98.9 लाख टन होने का अनुमान है।
मूंगफली के उत्पादन का अनुमान 48.7 लाख टन से घट कर 45.2 लाख टन हो गया है। देश के खाद्य तेलों का उत्पादन इस साल रबी की फसल पर निर्भर करेगा। पिछले साल, रबी तिलहन का उत्पादन साल 2006-07 के 95.2 लाख टन से घट कर 86 लाख टन रह गया था।
सेतिया कहते हैं, ‘रबी की फसल की बुआई इस समय अच्छी चल रही है और भरोसा है कि हम पिछले साल की तुलना में अधिक फसल की कटाई करेंगे।’ वनस्पति तेलों के वैश्विक बाजार में आई कमजोरी इतनी जल्दी जाने वाली नहीं है। इस वैश्विक घटना में भारत भी अपवाद नहीं बना रह सकता है।
यहां कीमतों में आई भारी गिरावट के बाद सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के निवेदन पर सरकार ने कच्चे सोया तेल के आयात पर 20 प्रतिशत का शुल्क लगाया। साथ ही तेल के निर्यात के लिए कई शरते लागू की गईं।
एसईए के निदेशक बी वी मेहता के अनुसार सोया तेल पर लगाया गया सीमा शुल्क मलयेशिया और इंडोनेशिया के लिए अच्छा है जिन्हें पाम तेल के बढ़ते भंडार से निपटना है। मिस्त्री कहते हैं, ‘बढ़ते उत्पादन और कम होती कीमतों वाले वर्ष में उत्पादन का कम होना स्वभाविक है।’
इंडोनेशिया और मलयेशिया में क्रमश: 200 लाख टन और 180 लाख टन पाम ऑयल के बंपर उत्पादन होने की उम्मीद है। मिस्त्री ने बताया कि अगर कचचे तेल की कीमत 50 डॉलर प्रति बैरल होती है तो कच्चे पाम तेल की कीमत भी घट कर 1,200 रिंगिट हो जाएगी।