कर्ज माफी योजना के बाद अब सरकार उर्वरकों की बढती कीमतों से परेशान किसानों को और राहत देने जा रही है। इसके तहत सब्सिडी वाले कृषि ऋण की सीमा 3 लाख से बढ़ाकर 5 लाख किए जाने पर विचार चल रहा है।
वर्तमान में किसानों को 3 लाख रुपये तक के कर्ज पर 7 फीसदी सालाना ब्याज देना पड़ता है। सरकार का यह कदम ऐसे समय में आया है जब बैंक मिलने वाले वित्तीय सपोर्ट (सबवेंशन) की मौजूदा सीमा 2 फीसदी को बढाए जाने की मांग कर रहे हैं। हाल के दिनों में उधार लेना खासा मुश्किल हो गया है साथ ही बैंकों को इसके लिए अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ रही है।
इस मामले से जुड़े पक्षों ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड) एक पखवाड़े अंदर इससे संबंधित वित्त मंत्रालय को सौंपने के लिए रिपोर्ट पर काम कर रही है। इसके बाद सरकार अगले माह तक इस बढ़ी सब्सिडी वाले कर्ज की घोषणा कर सकती है। संभावना इस बात की अधिक है कि यह कर्ज की सीमा 5 लाख रुपये कर दी जाए।
सूत्रों के अनुसार नाबार्ड इस बात पर चर्चा कर रही है कि इस तरह के ऋण को फसल ऋण में शामिल किया जाए या फिर मियादी ऋण में। ज्ञातव्य है कि कृषि ऋण को एक साल के भीतर ही वापस करना होता है, वहीं मियादी ऋण दो से चार सालों में भी चुकाया जा सकता है।
एक सरकारी अधिकारी के अनुसार कृषि उर्वरकों की कीमतों के साथ अन्य कृषि इनपुट की लागत में हुए इजाफे से कृषि में विपरीत असर पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि बैंक किसानों को सात फीसदी की दर से ऋण देती हैं, जबकि बैंकों को सरकार की ओर से 2 फीसदी ब्याज की सब्सिडी मिलती है।
एक पीएसयू बैंक के प्रमुख ने बताया कि धन उगाही की लागत बढ़कर 10 फीसदी हो गई है। इसलिए बैंकों को अपनी बॉटमलाइन सुरक्षित रखने के लिए कृषि ऋण की दरों में परिवर्तन की उम्मीद है। आम बजट 2008-09 में केंद्र सरकार ने बैंकों को 2 फीसदी राहत देने के लिए 1,600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। यह राहत सरकारी, सहकारी और ग्रामीण विकास बैंकों को मिलनी है।
अगर कृषि ऋण सब्सिडी की सीमा 5 लाख रुपय की गई तो बैंकों पर सब्सिडी का बोझ 50 फीसदी तक बढ़ जाएगा। सरकार ने 2005-06 से बैंकों द्वारा कृषि क्षेत्र को दिए जा रहे ऋण की सीमा को 7 फीसदी कर उनके नुकसान की भरपाई के लिए ब्याज दरों में सब्सिडी प्रारंभ की थी। उस समय इसकी सीमा एक लाख रुपये थी जिसे 2006-07 में बढ़ाकर 3 लाख रुपये कर दिया गया था।