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Budget with BS: बजट में हुई नौकरी से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिए सही पहल, प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की जरूरत

Budget 2024: बिज़नेस स्टैंडर्ड की तरफ से आयोजित ‘बजट विद बीएस: द फाइन प्रिंट’ (Budget with BS: The Fine Print) कार्यक्रम में कई अर्थशास्त्रियों ने हिस्सा लिया।

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निशा आनंद   
Last Updated- July 31, 2024 | 5:46 PM IST

Budget with BS: The Fine Print- भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को भारत का वित्त वर्ष 2024-25 का पूर्ण बजट पेश किया। बजट पेश करने के बाद से विपक्ष जहां लगातार सरकार को घेरने में लगा है तो वहीं, भाजपा का कहना है कि उसकी सरकार में रोजगार में बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस दौरान बिज़नेस स्टैंडर्ड ने बजट के बाद HSBC के मुख्य अर्थशास्त्री और प्रबंध निदेशक (MD & chief economist) प्रांजुलि भंडारी के साथ चर्चा की, जिसमें रोजगार का मुद्दा भी उठाया। भंडारी ने आज कहा कि भारत की बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने के लिए केंद्रीय बजट सही शुरुआती पहल थी।

भंडारी के अलावा, पैनल में भारत के कई अन्य दिग्गज अर्थशास्त्री भी शामिल थे। पैनल में जेपी मॉर्गन के भारत के हेड इकनॉमिस्ट सज्जिद चिनॉय, सिटीग्रुप के प्रबंध निदेशक (MD) और भारत के मुख्य अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती और यस बैंक (Yes Bank) के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पान जैसे प्रमुख अर्थशास्त्री शामिल थे। सेशन का संचालन बिज़नेस स्टैंडर्ड के संपादकीय निदेशक (Editorial Director) अशोक भट्टाचार्य ने किया।

भंडारी ने कहा, ‘…बजट ने सबसे अच्छी बात यह की कि रोजगार को मुख्य धारा में लाया गया। बजट में रोजगार को बढ़ावा देने, कौशल अपग्रेड करने (upgrading skills),एजूकेशन लोन प्रदान करने और छोटे और मंझोले उद्योगों (MSME) को अधिक लोन देने के कई प्रावधान हैं जो रोजगार प्रदान करते हैं। क्या यह भारत की बेरोजगारी की समस्या का समाधान है, तो इसका उत्तर नहीं है। इसके लिए बड़े पैमाने पर पूंजी की जरूरत है और यह सही शुरुआत थी।’

भंडारी ने ये टिप्पणियां बिज़नेस स्टैंडर्ड की तरफ से आयोजित ‘बजट विद बीएस: द फाइन प्रिंट’ (Budget with BS: The Fine Print) नाम से वन-डे पोस्ट-बजट कार्यक्रम में की। यह कार्यक्रम को मुंबई में आयोजित किया गया और इसका उद्देश्य प्रमुख वित्तीय अभ्यास (key financial exercise) की बारीकियों को समझना था।

कर्ज को कैसे कम किया जाए

अपने भाषण में, चिनॉय ने बताया कि भारत को मध्यम अवधि में सार्वजनिक ऋण (public debt) को कम करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। उन्होंने आगे कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में, राजकोषीय नीति यानी फिस्कल पॉलिसी पब्लिक और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट से लदी हुई है…। मध्यम अवधि में हमें राजकोषीय स्थिरता (fiscal sustainability) की जरूरत है और हमें इसे मापने के तरीके को समझने की आवश्यकता है। कर्ज के लिए कोई जादुई सीमा नहीं है। मध्यम अवधि की चुनौती यह है कि सार्वजनिक ऋण को कैसे कम किया जाए। निजी क्षेत्र प्रगति पर है, उपभोग (consumption) सुस्त रहा है, और यह महत्वपूर्ण है कि घाटा जल्दी से एक जगह पर रुके न, यानी कंसोलिडेट न हो।’

MSME पैदा करते हैं रोजगार

चक्रवर्ती ने चर्चा के दौरान बताया कि बजट का अधिक ध्यान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) पर था क्योंकि वे रोजगार पैदा करते हैं। उन्होंने कहा, ‘पहले पांच साल अर्थव्यवस्था के औपचारिककरण के बारे में थे, अगले पांच बुनियादी ढांचे (infrastructure) के बारे में थे, आने वाले पांच साल मानव पूंजी (human capital) के विकास के बारे में होंगे।’

प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की जरूरत

बजट FY25 के बारे में अपनी बात में, यस बैंक के इंद्रनील पान ने बताया कि भारतीय अर्थव्यवस्था प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने में अटकी हुई है। उन्होंने कहा, ‘अगर हमें खुद को डेवलप करना है तो इसकी शुरुआत प्रति व्यक्ति आय से होनी चाहिए जहां हम पीछे हैं। यह ध्यान में रखते हुए कि बजट इस लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है।

First Published : July 31, 2024 | 5:37 PM IST