टाटा मोटर्स ने प्योर ईवी प्लेटफॉर्म पर तैयार कंपनी की पहली कार पंच ईवी को बाजार में उतार दिया है। इस कार्यक्रम से इतर टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स ऐंड टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी (टीपीईएमएल) के प्रबंध निदेशक शैलेश चंद्रा ने सोहिनी दास को बताया कि कंपनी किस तरह से पेट्रोल तथा डीजल इंजन छोड़कर पूरी तरह से इलेक्ट्रिक बनने पर ध्यान दे रही है। उन्होंने बताया कि टीपीईएमएल किस तरह जल्द ही मुनाफे की राह पर आ जाएगी। बातचीत के संपादित अंश:
आपके प्योर-ईवी प्लेटफॉर्म पर तैयार पंच ईवी कंपनी की अन्य तीन ईवी से किस मायने में अलग है?
पंच ईवी हमारे प्योर ईवी प्लेटफॉर्म पर बनी कंपनी की पहली इलेक्ट्रिक कार है। यह ईवी के लिए बना खास प्लेटफॉर्म है जो हमें समूची उत्पादन लाइन और डिजाइन को ईवी के अनुरूप बदलने की सुविधा देता है। ऐसे में हम छोटी कार में भी ज्यादा ताकतवर बैटरी लगा सकते हैं और अधिक दूरी तक सफर करने की सहूलियत दे सकते हैं।
पंच ईवी एक बार चार्ज होने पर 315 से 421 किलोमीटर तक चल सकती है। लेकिन जब हम पेट्रोल-डीजल इंजन को ईवी में बदलते हैं तो हमें पहले के इंजन के लिए निर्धारित जगह में ही बैटरी फिट करनी होती है। ईवी प्लेटफॉर्म पर बनी कार में ग्राहकों को भीतर भी ज्यादा जगह मिलती है। 10.99 लाख से 14.99 लाख रुपये की कीमत वाली एसयूवी और एक ही चार्ज में इतनी अधिक दूरी तक चलने वाले वाहन बाजार में उपलब्ध नहीं थे। पंच ईवी के लक्षित ग्राहक 35 साल और उससे कम आयु के युवा हैं।
आगे चलकर क्या आप जान-बूझकर डीजल इंजन से किनारा करेंगे?
हमने सोच-समझकर पूरी तरह से इलेक्ट्रिक बनने का निर्णय लिया है। हालांकि सीएनजी पर ध्यान बना रहेगा क्योंकि इससे उत्सर्जन कम होता है और वाहन चलाने की लागत कम आती है और प्रवेश स्तर पर सीएन कारें प्रासंगिक बनी रहेंगी। हम सीएनजी और इलेक्ट्रिक पर ध्यान देंगे। पिछले साल यात्री वाहन उद्योग 7 से 8 फीसदी की दर से बढ़ा था, जबकि ईवी में 100 फीसदी और सीएनजी में 25 फीसदी की वृद्धि हुई थी।
अगला उत्सर्जन मानक आने पर डीजल वाले वाहन बाजार से गायब हो सकते हैं। अभी हमारी कुल बिक्री में डीजल इंजन वाले वाहनों की हिस्सेदारी 15 फीसदी, सीएनजी की 20 फीसदी और इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 12 से 15 फीसदी है। शेष हिस्सेदारी पेट्रोल इंजन वाले वाहनों की है। हमारे लिए डीजल कारों की हिस्सेदारी ईवी के मौजूदा स्तर जितनी कम है। हम गैसोलीन डायरेक्टइजेक्शन (जीडीआई) इंजन भी लाने जा रहे हैं।
टीपीईएमएल का एबिटा मार्जिन सुधर रहा है। कंपनी कब तक मुनाफा कमाने लगेगी?
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में एबिटा मार्जिन -5.5 फीसदी था जो पहली तिमाही के -9.7 फीसदी से बेहतर है। उत्पाद विकास में ज्यादा खर्च के कारण एबिटा मार्जिन ऋणात्मक है। हालांकि यह हमारे लिए खर्च नहीं बल्कि निवेश है। हमारा एबिटा जल्द ही मुनाफे में आ जाएगा। हमारी नजर सकारात्मक नकदी प्रवाह पर बनी हुई है।
टेस्ला के भारतीय बाजार में आने और उसे प्रोत्साहन मिलने की चर्चा को लेकर आपका क्या कहना है?
फिलहाल वैश्विक कंपनियों के आयात शुल्क रियायत के साथ घरेलू बाजार में आने को लेकर केवल अटकलें लगाई जा रही हैं। वाणिज्य राज्यमंत्री ने लोकसभा में स्पष्ट किया है कि स्थानीय मूल्यवर्धन में छूट या देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के आयात पर शुल्क में किसी तरह की सब्सिडी का प्रस्ताव नहीं है।
सैद्धांतिक तौर पर हम प्रतिस्पर्धा का स्वागत करते हैं लेकिन सबसे लिए समान नियम होने चाहिए। किसी एक को विशेष लाभ देना सही नहीं होगा। हम पहले दिन से ही ईवी में स्थानीय कलुपर्जों के उपयोग के नियमों का पालन कर रहे हैं।
हाइब्रिड वाहनों के लिए शुल्क में कटौती की मांग पर आपकी क्या राय है?
हाइब्रिड कारों की ईवी के साथ तुलना करें तो इसमें मोटर और बैटरी पैक का उपयोग होता है, जो 1 किलोवाट प्रति घंटा से कम क्षमता का है मगर ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत के तौर पर पेट्रोल का ही उपयोग कर रहा है। अगर हमारे पास प्लग-इन हाइब्रिड हो तो स्थिति अलग हो सकती है। ईंधन दक्षता में सुधार के लिए कई तरह की तकनीक –सीएनजी, जीडीआई इंजन आदि उपलब्ध हैं।
हमें आगे चलकर ईवी को नवीकरणीय ऊर्जा से चार्ज करने की राह से हटना नहीं चाहिए। सरकार भी नेट कार्बन जीरो, बड़े शहरों में एक्यूआई कम करने तथा जीवाश्म ईंधन के आयात को घटाने के लक्ष्य को लेकर स्पष्ट है। कोई और प्रोत्साहन ग्राहकों और मूल उपकरण विनिर्माताओं को भम्रित करेगा। तकनीक पर जोर देना और सपोर्ट करना चाहिए, जिससे हमें लंबी अवधि में मदद मिलेगी।
साणंद के दूसरे संयंत्र में उत्पादन की आपकी क्या योजना है?
इस संयंत्र के चालू होने से हमें उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी। हम पुणे में पंच ईवी बनाएंगे। हमने नेक्सॉन के उत्पादन का एक हिस्सा रंजनगांव से साणंद-2 कारखाने में शिफ्ट किया है।