लेखक : टी एन नाइनन

आज का अखबार, लेख

साप्ताहिक मंथन: बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर लगाम

प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों (मेटा, एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, अल्फाबेट और ऐपल यानी एमएएमएए) के विरुद्ध संघर्ष नया नहीं है। परंतु अब यह निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। इस माह के आरंभ में अमेरिका में अल्फाबेट (गूगल) और एमेजॉन के खिलाफ दो संभावित रूप से बहुत बड़े मुकदमे शुरू हुए। सन 1998 में माइक्रोसॉफ्ट के […]

आज का अखबार, लेख

साप्ताहिक मंथन: जनोन्मुखी होने की कवायद

भारत में केंद्र और राज्यों की सरकारें दुनिया की सबसे अधिक व्यय करने वाली सरकारें नहीं हैं। कई क्षेत्रों में सरकारें अपने देश के जीडीपी के लिहाज से अधिक व्यय कर रही हैं। इनमें विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं तो हैं ही, साथ ही लैटिन अमेरिका, मध्य और पूर्वी यूरोप के देश तथा मध्य तथा पश्चिमी […]

आज का अखबार, लेख, संपादकीय

साप्ताहिक मंथन: सांस्कृतिक जड़ों की तलाश

प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के अंत में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उन्हें इस बात का पछतावा है कि वह लुटियंस दिल्ली को नहीं जीत सके। लुटियंस दिल्ली का प्रयोग आमतौर पर अंग्रेजी भाषी कुलीनों या सत्ता प्रतिष्ठान के भारतीय संस्करण के लिए किया जाता है। अब जबकि उनका दूसरा कार्यकाल […]

आज का अखबार, लेख

साप्ताहिक मंथन: विपक्ष की परीक्षा

विपक्ष की परीक्षा के लिए एक प्रश्न: नए विपक्षी गठबंधन में शामिल विभिन्न दलों के विरोध के बावजूद संसद में कितने विधेयक पारित हुए, अगर 2024 के आम चुनाव के बाद ये दल सत्ता में आते हैं तो क्या ये इन कानूनों को वापस लेंगे? उदाहरण के लिए क्या वे निर्वाचन आयुक्तों का चयन करने […]

आज का अखबार, लेख

साप्ताहिक मंथन: बुरे विचारों का मौसम

यह बुरे विचारों का मौसम प्रतीत होता है। इनमें ताजा है सरकार का वह निर्णय जिसके तहत पर्सनल कंप्यूटर, लैपटॉप और नोटबुक्स के आयात को लाइसेंसशुदा कर दिया है। तीन दशक पहले आयात लाइसेंस की व्यवस्था लगभग समाप्त कर दिए जाने के बाद यह उन चुनिंदा अवसरों में से एक है जब आयात पर इस […]

आज का अखबार, लेख, संपादकीय

साप्ताहिक मंथन: रेखांकित हों वास्तविक सफलताएं

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वै​श्विक अर्थव्यवस्था के लिए भारत के बढ़ते महत्त्व को लेकर जो बातें हो रही हैं उनमें गलत मुद्दों को रेखांकित किया जा रहा है जबकि भारत के आ​र्थिक प्रबंधन में जो रेखांकन योग्य बदलाव आए हैं उनकी अनदेखी की जा रही है। भारत अब सबसे तेज बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं रह गया […]

आज का अखबार, लेख

साप्ताहिक मंथन: नए-पुराने की ओर वापसी

भारत में सन 1991 और उसके बाद हुए आर्थिक सुधार दरअसल घरेलू तथा वैश्विक स्तर पर मुक्त बाजार में किए गए निवेश ही थे। ये सुधार रोनाल्ड रीगन और मार्गरेट थैचर के युग के उन विचारों से प्रभावित थे कि अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका कम होनी चाहिए। इसके लिए घरेलू तौर पर एक शब्द […]

आज का अखबार, लेख

साप्ताहिक मंथन: चीन की गतिहीनता

चीन की अर्थव्यवस्था (China economy) ऊर्जाहीनता की अजीब तस्वीर पेश कर रही है। दुनिया का बड़ा हिस्सा जहां मुद्रास्फीति से जूझ रहा है, वहीं चीन अपस्फीति (deflation) का ​शिकार है। वहां उत्पादक मूल्य में अपस्फीति है और उपभोक्ता कीमतों पर आधारित महंगाई कम है। दुनिया के अन्य हिस्सों के केंद्रीय बैंक जहां ब्याज दरें बढ़ा […]

आज का अखबार, ताजा खबरें, लेख, संपादकीय

साप्ताहिक मंथन: स्टार्टअप के लिए स्वआकलन का वक्त

एडटेक कारोबार बैजूस एक समय तेजी से विकसित होने वाले भारतीय स्टार्टअप जगत का एक खराब विज्ञापन बनकर सामने आया है। देश में 80,000 से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप हैं जिनमें से कम से कम 70 फीसदी अंतत: नाकाम हो जाएंगी जबकि दूसरी ओर करीब 100 स्टार्टअप ने यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया है और उनका […]

आज का अखबार, लेख, संपादकीय

साप्ताहिक मंथन: टिकाऊ वृद्धि दर

पिछले चार दशकों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना में नाटकीय बदलाव आए हैं। वर्ष 1980-81 में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत से कम होकर 21 प्रतिशत रह गई थी, जबकि सेवा क्षेत्र का हिस्सा 37 प्रतिशत से बढ़कर 53 प्रतिशत तक पहुंच गया। उद्योग जगत (निर्माण सहित) की हिस्सेदारी […]