ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला प्रक्रिया (आईबीसी) के निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के तहत ऋणदाताओं को सितंबर तक उनके द्वारा किए गए दावों के बाद हासिल रकम 67 प्रतिशत तक कम रही है। दिवाला नियामक द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से यह बात पता चली है।
भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) ने अपने नवीनतम समाचार सार (न्यूजलेटर) में कहा कि ऋणदाताओं को समाधान योजनाओं के तहत 3.99 लाख करोड़ रुपये मिले जबकि उन्होंने कुल 12.31 लाख करोड़ रुपये के दावे किए थे।
आईबीबीआई ने कहा कि आईबीसी के तहत ऋणदाताओं के लिए वसूली 32-33 प्रतिशत के बीच रही है। इस वसूली में सीआईआरपी लागत और भविष्य में होने वाली कई संभावित वसूली जैसे इक्विटी, कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत गारंटी से मिलने वाली रकम और में सीडी में डाली गई रकम सहित समाधान आवेदकों के पूंजीगत व्यय और बचाव आवेदनों के बाद हुई वसूली शामिल नहीं हैं।
सीआईआरपी के लगभग 40 प्रतिशत (1,268 मामलों में 516 के समाधान) मामले पहले औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड के पास थे या निष्क्रिय थे। आईबीबीआई ने कहा कि इन मामलों में दावेदारों को उनके स्वीकृत दावों का 18.74 प्रतिशत हिस्सा ही हाथ लगा था। वित्त वर्ष 2024-25 तक 1194 सीआईआरपी से समाधान योजनाएं सामने आईं जिनमें ऋणदाताओं को उनके स्वीकृत दावों का 32.76 प्रतिशत हिस्सा हासिल हुआ।
ये प्रक्रियाएं अभी भी देरी से जूझ रही हैं। सितंबर 2025 तक जिन 1300 सीआईआरपी से समाधान योजनाएं सामने आईं उन्हें पूरा होने में औसतन 603 दिन (निर्णायक प्राधिकरण द्वारा विचार नहीं किए समय को छोड़कर लगे। अबतक 2896 सीआईआरपी, जिनमें परिसमापन के आदेशों आए, उन्हें पूरा होने में औसतन 518 दिन लगे।
सितंबर 2025 तक 47 प्रतिशत से अधिक सीआईआरपी वित्तीय लेनदारों द्वारा शुरू किए गए हैं और 46.3 प्रतिशत परिचालन लेनदारों द्वारा।
हालांकि,आईबीबीआई के विश्लेषण से पता चला है कि 1 करोड़ रुपये से कम चूक वाली 80 प्रतिशत सीआईआरपी परिचालन ऋणदाताओं के आवेदनों पर शुरू हुई थीं जबकि 10 करोड़ रुपये से अधिक की चूक वाली लगभग 80 प्रतिशत सीआईआरपी वित्तीय लेनदारों द्वारा आवेदनों पर शुरू हुई थीं।
निर्णायक प्राधिकरण पर बोझ कम करने और आईबीसी समयसीमा कम करने के लिए प्रस्तावित आईबीसी विधेयक ने वित्तीय ऋणदाता द्वारा उन दायर दिवाला आवेदन पर अनिवार्य सुनवाई का सुझाव दिया है जिनमें एक चूक साबित हो जाती है और प्रक्रियात्मक औपचारिकताएं पूरी हो गई हैं।
आईबीबीआई के अध्यक्ष रवि मित्तल ने जुलाई-सितंबर 2025 के न्यूजलेटर में उल्लेख किया है कि वर्ष 2023-2024 में किए गए विनियमों की नवीनतम समीक्षा में बोर्ड को विभिन्न हितधारकों से 190 सुझाव मिले हैं जिन पर विचार किया गया है। 2024-25 में आईबीबीआई को शिक्षाविदों, दिवाला पेशेवरों, ऋणदाता संस्थानों, आईबीए और अन्य से 128 सार्वजनिक टिप्पणियां मिली हैं जिन पर विचार हो रहा है।
मित्तल ने कहा, ‘आईबीबीआई का नियामक एक उल्टी विनियोग विधि का उदाहरण है जहां अनुभवजन्य साक्ष्य, हितधारक प्रतिक्रिया और व्यावहारिक अनुभव नीतियों के निर्धारण में अहम भूमिका निभाते हैं।’