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संपादकीय: मायने रखता है प्रवास

भारत से बाहर जाने वाले लोगों की तादाद न केवल दुनिया में सबसे अधिक है बल्कि इसमें लैंगिक झुकाव भी नजर आता है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 12, 2024 | 10:11 PM IST

कई भारतीय नागरिक अन्य देशों, खासकर खाड़ी और विकासशील देशों में जाते हैं। आंतरिक प्रवास यानी देश के भीतर लोगों का एक स्थान से दूसरे पर जाना और देश से दूसरे देशों में जाना अक्सर आजीविका के बेहतर अवसरों के लिए होता है। परंतु कई बार ऐसा हताशा में भी होता है।

वर्ष 2020 में करीब 1.8 करोड़ भारतीय अपने जन्म के देश से बाहर रह रहे थे। सबसे अधिक प्रवासी भारतीय संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और सऊदी अरब में रहते हैं।

इंटरनैशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की ताजा रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि भारत से संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और सऊदी अरब को होने वाला प्रवास दो देशों के बीच होने वाले प्रवास गलियारों में शीर्ष 10 में शामिल है। दिलचस्प है कि बांग्लादेश से भारत को होने वाला प्रवास भी इस सूची में शामिल है।

भारत से बाहर जाने वाले लोगों की तादाद न केवल दुनिया में सबसे अधिक है बल्कि इसमें लैंगिक झुकाव भी नजर आता है। भारत से दूसरे देशों में जाने वाले प्रवासियों में पुरुषों की तादाद करीब 65 फीसदी है। इससे संकेत मिलता है कि पुरुष काम की तलाश में बाहर जाते हैं जबकि महिलाएं देश में ही रह जाती हैं।

वृहद आर्थिक दृष्टि से देखें तो प्रवास विदेश से स्वदेश धन भेजने का बहुत बड़ा जरिया है। रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया है कि 2022 में भारत विदेश से धन पाने वाला सबसे बड़ा देश रहा। उसे 111 अरब डॉलर से अधिक राशि मिली। इस धनप्रेषण में भारत का दबदबा लगातार बढ़ रहा है और वह कई वर्षों से शीर्ष पर बना हुआ है।

देश के चालू खाते का घाटा कम करने में भी इसकी अहम भूमिका रही है। 2023-24 की तीसरी तिमाही में यह सकल घरेलू उत्पाद के 1.2 फीसदी के स्तर पर था। चूंकि भारत ऊर्जा का बड़ा आयातक है इसलिए वाणिज्यिक घाटे का स्तर भी अधिक है। अतिरिक्त खर्च करने योग्य आय का जरिया होने के कारण यह धन प्रेषण घरेलू खपत व्यय में इजाफा करता है और घरेलू मांग को मजबूत करता है।

बहरहाल, दूसरे देशों में रहने वाले भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले धन पर बहुत अधिक निर्भरता भी चिंता का विषय है। कई बार यह कहा जाता है कि इससे प्राप्तकर्ता देश में निर्भरता की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है। इससे उत्पादकता कम होगी और आर्थिक वृद्धि में धीमापन आएगा। इससे अर्थव्यवस्था की स्थिति संवेदनशील हो सकती है और कई कारणों से अगर धन प्रेषण अचानक प्रभावित होता है तो मुश्किल हालात बन सकते हैं।

खुशकिस्मती से रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े बताते हैं कि अन्य देशों की तुलना में भारत की निर्भरता सीमित है। ताजिकिस्तान इस सूची में शीर्ष पर है और 2022 में उसका धनप्रेषण-जीडीपी अनुपात 51 फीसदी रहा। इसके विपरीत उसी वर्ष भारत में यह केवल 3.3 फीसदी रहा। श्रम आधिक्य वाला देश होने के नाते भारत को प्रवासी आबादी से बहुत मदद मिलती है। इन प्रवासियों का बड़ा हिस्सा कम वेतन वाले कामों मसलन विनिर्माण, सुरक्षा, घरेलू काम और खुदरा क्षेत्र में काम करता है जबकि अन्य उच्च वेतन वाले कौशल संपन्न पेशों में हैं।

भारत जैसे विकासशील और बड़े देश में कुछ लोगों का बेहतर अवसरों की तलाश में विकसित देशों में चले जाना सामान्य बात है। परंतु कम कौशल वाले लोगों का बाहर जाना यही बताता है कि देश में उत्पादक रोजगार अवसर तैयार करने की आवश्यकता है।

बहरहाल, बड़े पैमाने पर ऐसे अवसर तैयार करना लंबे समय से नीतिगत चुनौती बना हुआ है। ऐसे में निकट भविष्य में प्रवासन का यह रुझान बने रहने की उम्मीद है। इस संदर्भ में जहां हाल के वर्षों में प्रगति हुई है, वहीं भारत को विदेशों में रहने वाले भारतीयों की दिक्कतें दूर करने के लिए भी अपनी क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है।

इसमें भेदभाव, शोषण, स्वदेश वापस भेजने आदि के मामलों से निपटना तथा बाहर रहने वाले भारतीयों की पूरी जानकारी रखना शामिल है। फिलहाल जो हालात हैं, वैश्विक श्रम की गतिशीलता भारत की आर्थिक कूटनीति की प्राथमिकता होनी चाहिए। इसे ऐसी दुनिया में भारत के हितों की रक्षा करनी चाहिए जहां संरक्षणवाद तेजी से बढ़ रहा है।

 

First Published : May 12, 2024 | 10:11 PM IST