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बैंकिंग साख: नीतिगत दरों में यथा​स्थिति लेकिन रहेगी सतर्क नजर

रीपो दर को तीसरी बार 6.5 फीसदी के स्तर पर अपरिवर्तित रखा गया। परंतु चूंकि मुद्रास्फीति बढ़ रही है इसलिए मौद्रिक नीति समिति निगरानी रखेगी और हालात का जायजा लेती रहेगी।

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- August 11, 2023 | 9:47 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने गुरुवार को अनुमान के मुताबिक ही एक बार फिर नीतिगत दरों (policy rates) में छेड़छाड़ नहीं करने का निर्णय लिया है। नीतिगत रुख भी अपरिवर्तित रहा और उसने अनुकूलन की व्यवस्था को खत्म करना जारी रखा है। इस नीति के रुझान को किस प्रकार व्याख्यायित किया जाए?

यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम रिजर्व बैंक के गवर्नर श​क्तिकांत दास के वक्तव्य को किस प्रकार पढ़ते हैं। उन्होंने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में अचानक वृद्धि को तवज्जो नहीं दी। यह इजाफा खाद्य कीमतों के झटके के कारण हुआ और उन्होंने इसे एक विशेष प्रकार का झटका माना। हालांकि उन्होंने चालू वित्त वर्ष के मुद्रास्फीतिक अनुमानों को बढ़ा दिया है।

बाजार रिजर्व बैंक के इस पाठ से प्रसन्न नजर आ रहा है कि मुद्रास्फीति बरकरार रहने वाली नहीं है। ब​ल्कि हकीकत में नीतिगत घोषणा के बाद बॉन्ड प्रतिफल में उल्लेखनीय कमी आई है।

परंतु अगर हम दीर्घकालिक नजरिया अपनाएं तो परिदृश्य अलग नजर आता है। मुद्रास्फीति अप्रैल 2024 में शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष में भी तेज बनी रहेगी। पहली बार रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान पेश किए हैं। 5.2 फीसदी के साथ ये लक्ष्य से काफी ऊपर हैं।

चूंकि लक्ष्य खुदरा मुद्रास्फीति को 4 फीसदी के मुद्रास्फीतिक लक्ष्य के दायरे में लाने का है इसलिए दरों में कटौती की कोई भी संभावना आगे बढ़ चुकी है यानी वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही की ओर। इस तरह कह सकते हैं कि इजाफे की संभावनाओं के साथ दरों को अपरिवर्तित रहने दिया गया है।

आइए इस नीति पर एक करीबी नजर डालते हैं। रीपो दर को तीसरी बार 6.5 फीसदी के स्तर पर अपरिवर्तित रखा गया। परंतु चूंकि मुद्रास्फीति बढ़ रही है इसलिए मौद्रिक नीति समिति निगरानी रखेगी और हालात का जायजा लेती रहेगी। यानी भविष्य के कदम आने वाले आंकड़ों पर निर्भर करेंगे।

रिजर्व बैंक वृद्धि संभावनाओं को लेकर जो सकारात्मक रुख रखता है वे बरकरार हैं। गवर्नर दास ने कहा कि भारत वै​श्विक वृद्धि का नया इंजन है और वित्त वर्ष 2024 की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित है।

केंद्रीय बैंक ने दावा किया कि उसने मूल्य ​स्थिरता के क्षेत्र में अहम प्रगति की है। बहरहाल हेडलाइन मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर) मई में 25 महीनों के निचले स्तर तक गिरकर 4.25 फीसदी होने के बाद जून में दोबारा 4.81 फीसदी के साथ तीन महीनों के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई और जुलाई तथा अगस्त में स​​ब्जियों की कीमत की बदौलत और बढ़ने की उम्मीद है।

स​​ब्जियों की कीमतें जल्दी ही कम हो सकती हैं लेकिन अल नीनो का प्रभाव तथा वै​श्विक खाद्य कीमतें दोबारा खेल बिगाड़ सकती हैं। द​क्षिण-प​श्चिम मॉनसून भी अब तक असमान रहा है।

मॉनसून को सामान्य मानते हुए रिजर्व बैंक ने 2023-14 के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 5.4 फीसदी कर दिया है। जून में अपनी पिछली बैठक में उसने इसे 10 आधार अंक घटाकर 5.1 फीसदी किया था। वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीतिक अनुमान 100 आधार अंक बढ़ाकर 6.2 फीसदी किए गए जबकि तीसरी तिमाही के लिए इन्हें 30 आधार अंक बढ़ाकर 5.7 फीसदी तथा चौथी तिमाही के लिए इसे 5.2 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा गया।

2025 की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति 5.2 फीसदी रहेगी

पहली बार, रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 5.2 फीसदी रहेगी। दूसरे शब्दों में मुद्रास्फीति से लड़ाई अभी निपटी नहीं है। चूंकि मौद्रिक नीति समिति मुद्रास्फीति को चार फीसदी के दायरे में रखने को लेकर प्रतिबद्ध है इसलिए अब दरों में कटौती की संभावना कम से कम अगले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही तक टल गई है।

गवर्नर के वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया गया है कि मुद्रास्फीति के झटकों को सीमित करने के लिए आपूर्ति क्षेत्र की ओर से निरंतर और समय पर हस्तक्षेप किए जाने होंगे, वहीं रिजर्व बैंक न केवल मुद्रास्फीति के दायरे पर नजर रखे हुए है ब​ल्कि उसने कदम भी उठाए हैं।
व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी ईंधन मुद्रास्फीति बढ़ाती है।

रिजर्व बैंक ने बैंकों के नकद आर​क्षित अनुपात (सीआरआर) में इजाफा करके अतिरिक्त नकदी को वहन करने का निर्णय लिया है। यह वह राशि है जो बैकों को केंद्रीय बैंक के पास रखनी होती है और जिस पर उन्हें कोई ब्याज नहीं मिलता।

बहरहाल, यह एक अत्यंत अल्पकालिक उपाय है। बैंकों को 19 मई से 28 जुलाई के बीच अपनी शुद्ध मांग और समय पर देनदारी पर 10 फीसदी वृदि्धशील- नकद आर​क्षित अनुपात बरकरार रखनी होगी। यह 4.5 फीसदी के की वर्तमान नकद आर​​क्षित अनुपात की जरूरत के अलावा है।

रिजर्व बैंक 8 सितंबर या उससे पहले इस उपाय की समीक्षा करेगा ताकि त्योहारी मौसम के पहले व्यवस्था में नकदी बढ़ाई जा सके।
नवंबर 2016 में रिजर्व बैंक ने 100 फीसदी आई-सीआरआर की व्यवस्था दी थी ताकि नोटबंदी के बाद बैंकिंग तंत्र में बढ़ती नकदी की समस्या को कम किया जा सके। उस समय नकद आर​क्षित अनुपात की दर 4 फीसदी थी। दिसंबर में अस्थायी नकदी प्रबंधन ढांचे की समीक्षा की गई थी।

अनुमान है कि रिजर्व बैंक आई-सीआरआर के जरिये 1.1 लाख करोड़ रुपये से 1.2 लाख करोड़ रुपये के बीच नकदी की खपत करेगा। हालांकि यह अस्थायी उपाय है लेकिन आई-सीआरआर के कारण बैंकों के लिए मुद्रा की लागत बढ़ जाएगी। देखना होगा कि क्या कोई बैंक इसके बाद अपनी ऋण दर बढ़ाता है अथवा नहीं।

नकदी की खपत की कीमत भी चुकानी होती है। अगर रिजर्व बैंक रिवर्स रीपो के माध्यम से ऐसा करता है तो लागत उसे वहन करनी होती है। बैंक रिजर्व बैंक से रीपो दर पर रा​शि उधार लेते हैं और अपनी अतिरिक्त नकदी को रिवर्स रीपो दर के जरिये उसके पास रखते हैं।
अतीत में सरकार ने बाजार ​स्थिरीकरण योजना के तहत बॉन्ड की बिक्री करके अतिरिक्त नकदी की खपत की। इस मामले में सरकार लागत वहन करती है। बैंकिंग व्यवस्था को सीआरआर की कीमत चुकानी होती है।

कोई बैंक ​शिकायत नहीं करेगा क्योंकि यह अत्यंत अल्पकालिक उपाय है। इस सप्ताह के आरंभ में इटली ने अपने बैंकों को चौंकाने वाला झटका दिया​ जिसका असर समूचे यूरोप पर महसूस हुआ। उसने उच्च ब्याज दरों से हासिल मुनाफे पर एकबारगी 40 फीसदी कर लगा दिया। हमारी बैंकिंग व्यवस्था हर तिमाही में रिकॉर्ड लाभ अर्जित कर रही है लेकिन हम उस दिशा में नहीं बढ़ रहे हैं।

First Published : August 11, 2023 | 9:47 PM IST