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संशोधित बीमा विधेयक मॉनसून सत्र में

Published by   निकेश सिंह
- 08/03/2023 9:14 AM IST

वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) ने बीमा कानून संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया है। इसे अब केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।

इन संशोधनों का मकसद पॉलिसीधारकों की सुरक्षा बढ़ाना, उनके हितों को प्राथमिकता देना और मुनाफे में सुधार करना है।

अधिकारी ने कहा कि इसके साथ ही इससे बीमा बाजार में और कारोबारियों के उतरने की सुविधा बढ़ेगी और इससे आर्थिक वृद्धि के साथ रोजगार सृजन में तेजी आएगी।

वित्त मंत्रालय ने बीमा कानून में कई संशोधन करने का प्रस्ताव किया है, जिसमें बीमा कंपनियों को कंपोजिट लाइसेंस की अनुमति देना शामिल है। इससे विभिन्न वित्तीय उत्पाद बेचने की अनुमति के साथ भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण के चेयरमैन और पू्र्णकालिक सदस्यों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने की अनुमति मिल सकेगी।

वित्तीय सेवा विभाग ने नियामक से जनरल, जीवन और स्वास्थ्य बीमा के लिए अलग अलग लाइसेंस लेने की जगह बीमाकर्ताओं को एक ही लाइसेंस से कई तरह के बीमा करने की अनुमति देने का प्रस्ताव भी रखा है। इससे वे न्यूनतम पूंजी की जरूरत हासिल कर सकेंगे।

एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मसौदा विधेयक संसद के आगामी सत्र में पेश किए जाने की संभावना नहीं है और उम्मीद है कि मॉनसून सत्र में संसद में विचारार्थ पेश किया जा सकेगा।

पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के चेयरमैन की नियुक्ति से संबंधित सवाल पर उन्होंने कहा कि पिछले चेयरमैन सुप्रतिम बंद्योपाध्याय इस पद पर नियुक्त होने के पहले सदस्य (वित्त) थे। इस बार चेयरमैन पूर्णकालिक सदस्यों में से नहीं होगा क्योंकि एकमात्र पूर्णकालिक सदस्य (वित्त) ने इस पद के लिए आवेदन नहीं किया है। पेंशन बोर्ड में कानून और अर्थशास्त्र के पूर्णकालिक सदस्यों का पद खाली है।

अधिकारियों ने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री और राजस्व सचिव ने 5 लाख से ज्यादा के प्रीमियम पर कर लगाने के मसले पर बीमा कंपनियों के सीईओ से मुलाकात की थी और इस मसले पर अभी बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा, ‘इस प्रावधान का मकसद अमीरों पर कर लगाना है। पीएफआरडीए के चेयरमैन की नियुक्ति भी जल्द होगी।’

पिछले महीने केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि जिन बीमा पॉलिसियों का प्रीमियम 5 लाख रुपये से ज्यादा है, उन पर कर छूट नहीं मिलेगा। जीवन बीमा उद्योग ने छूट बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने की अपील की है।

बजाज आलियांज के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी और जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के चेयरमैन तपन सिंघल ने कहा कि हम कंपोजिट लाइसेंस का समर्थन करते हैं और इस क्षेत्र में ज्यादा कंपनियों के प्रवेश को लेकर काउंसिल के विचार प्रगतिशील हैं। उन्होंने कहा कि इससे बाजार खुलेगा और बीमा क्षेत्र के लिए दीर्घकालीन हिसाब से लाभदायक होगा।

हिंदू वृद्धि दर पर राजन का बयान ‘पक्षपातपूर्ण’

एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट ने भारत की मौजूदा वृद्धि दर को ‘हिंदू वृद्धि दर’ के बेहद करीब बताने वाले रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बयान को ‘पक्षपातपूर्ण, अपरिपक्व और बिना सोचा-समझा हुआ’ बताते हुए मंगलवार को खारिज कर दिया।

एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ‘इकोरैप’ कहती है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के हाल में आए आंकड़े और बचत एवं निवेश के उपलब्ध आंकड़ों को देखने पर इस तरह के बयानों में कोई आधार नजर नहीं आता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ‘तिमाही आंकड़ों के आधार पर जीडीपी वृद्धि को लेकर व्याख्या करना सच्चाई को छिपाने वाले भ्रम को फैलाने की कोशिश जैसा है।’

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दो दिन पहले कहा था कि जीडीपी वृद्धि के आंकड़े इसके खतरनाक रूप से हिंदू वृद्धि दर के बेहद करीब पहुंच जाने के संकेत दे रहे हैं। उन्होंने इसके लिए निजी निवेश में गिरावट, उच्च ब्याज दरों और धीमी पड़ती वैश्विक वृद्धि जैसे कारकों को जिम्मेदार बताया था।

‘हिंदू वृद्धि दर’ शब्दावली का इस्तेमाल 1950-80 के दशक में भारत की 3.5 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर के लिए किया गया था। भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्णा ने सबसे पहले 1978 में ‘हिंदू वृद्धि दर’ शब्दावली का इस्तेमाल किया था।

देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की शोध टीम की तरफ से जारी रिपोर्ट में राजन के इस दावे को नकार दिया गया है। रिपोर्ट कहती है कि , ‘तिमाही आंकड़ों के आधार पर किसी भी गंभीर व्याख्या से परहेज करना चाहिए।