Rajasthan Assembly Elections: कर्ज राहत से दौड़ेगा दोबारा जीत का रथ !

इस विधेयक को लाने के उद्देश्य के बारे में कहा गया है, ‘हाल के दिनों में किसानों की कर्ज की समस्या एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है।

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आदिति फडणीस   
Last Updated- August 24, 2023 | 6:07 PM IST

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऋण राहत आयोग की मदद से राजस्थान के किसानों को अपने ऋण का भुगतान करने में मदद मिल सकती है लेकिन यह आर्थिक समस्या पर राजनीतिक प्रतिक्रिया देने जैसा है। क्या यह चुनावी दौर में एक बेहतर रणनीति साबित हो सकती है?

हाल के महीनों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की जिसमें राज्य विधानसभा द्वारा 2 अगस्त को किसान ऋण राहत आयोग की स्थापना करने के लिए पारित कानून भी शामिल है।

आयोग का नेतृत्व उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे

इस पांच सदस्यीय आयोग का नेतृत्व उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे। इस विधेयक को लाने के उद्देश्य के बारे में कहा गया है, ‘हाल के दिनों में किसानों की कर्ज की समस्या एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। अकाल, बाढ़, भारी वर्षा, कम वर्षा, ओलावृष्टि और अन्य प्राकृतिक आपदा जैसे विभिन्न कारकों की वजह से किसानों का कर्ज बढ़ता है और ऐसी स्थिति में उनके लिए वित्तीय संस्थानों या साहूकारों से लिए गए ऋण को चुकाना मुश्किल हो जाता है।

किसानों की दयनीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए, उन लोगों को राहत देने के लिए कानून आवश्यक है जिनकी प्राथमिक आजीविका कृषि है।’ प्रस्तावित आयोग के पास यह अधिकार होगा कि वह ‘सुलह के साथ-साथ वार्ता के माध्यम से किसानों की शिकायतों के निवारण के लिए निर्णय ले सके और उचित उपायों की सिफारिश करे।’

हालांकि, विशेषज्ञों का तर्क है कि यह एक आर्थिक समस्या है जिसे राजनीतिक तरीके से निपटाने की कोशिश हो रही है। इसके अलावा, वे इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि कृषि ऋण में चूक के कारण बैंकों द्वारा ऋण की रिकवरी के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाए जाने की बात उतनी व्यापक है या नहीं जिसके चलते यह अपरिहार्य निष्कर्ष निकाला जाता है ऋण राहत आयोग चुनाव से पहले उठाए गए लोकलुभावन कदमों से ज्यादा कुछ नहीं है। राजस्थान में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

राजस्थान की योजना मंत्री ममता भूपेश ने इस साल मार्च में विधानसभा को सूचित किया कि ऋण न चुका पाने के कारण पिछले तीन वर्षों में 32 कृषि भूखंडों की नीलामी की गई थी। इन मामलों में 31 मामले राजस्व विभाग से संबंधित थे और एक सहकारी ऋण से संबंधित था। इस संदर्भ में, भूपेश ने किसानों के लिए ऋण राहत के लिए एक आयोग का गठन करने के मुख्यमंत्री गहलोत के वादे को दोहराया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार किसानों की भलाई के लिए ‘बेहद चिंतित’ थी।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के राजस्थान काडर के पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव, सुभाष चंद्र गर्ग इस बात को लेकर संदेह जाहिर करते हैं कि किसी भी बैंक ने पिछले दो दशकों में कृषि ऋण का भुगतान न करने की वजह से किसानों की जमीन की नीलामी की हो।

वह बताते हैं, ‘मुख्य रूप से दो प्रकार के कृषि ऋण होते हैं। पहला फसल ऋण, जो आमतौर पर किसानों द्वारा लिए जाते हैं और दूसरा परिसंपत्ति ऋण, जिनका उपयोग ट्रैक्टर जैसी मशीन खरीदने के लिए किया जाता है, जिसमें कोई जमीन आदि गिरवी रखी जाती है। परिसंपत्ति ऋण श्रेणी के भुगतान में चूक हो सकती है, लेकिन सरकारों के पास फसल न होने या फसल के बरबाद होने के मामले में किसानों के संकट को दूर करने के लिए कई तंत्र हैं, जिनमें तत्काल सहायता से लेकर ऋण माफी तक शामिल है और राज्य सरकार किसान की ओर से फसल ऋण का भुगतान करती है। मेरे खयाल से फसल ऋण चूक के कारण जमीन गंवाना एक दुर्लभ घटना हो सकती है।’

राज्य सरकार को सत्ता संभालने के बाद से राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा है, मुख्य रूप से 2018 के चुनाव अभियान के दौरान किए गए घोषणापत्र के वादे के कारण क्योंकि इसमें सत्ता में आने पर 10 दिनों के भीतर कृषि ऋण माफ करने का वादा किया गया था। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सतीश पूनिया कहते हैं, ‘सरकार का कार्यकाल समाप्त होने वाला है लेकिन न तो किसानों का ऋण माफ किया गया है और न ही भूमि नीलामी पर प्रतिबंध लगाया गया है।’

हालांकि यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। गहलोत सरकार ने सहकारी बैंकों से लिए गए कृषि ऋण को माफ करने के अपने वादे को पूरा किया जिसकी 31 दिसंबर, 2022 तक लगभग 7,500 करोड़ रुपये की लागत आई थी। हालांकि, राष्ट्रीयकृत बैंकों से कृषि ऋण माफ करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को ‘केंद्र ने ठुकरा दिया’ जैसा कि भूपेश ने कुछ हफ्ते पहले विधानसभा सत्र के दौरान कहा था। उन्होंने कहा कि इसी वजह से राज्य सरकार किसान ऋण राहत आयोग का गठन करना चाहती है।

किसानों के लिए ऋण राहत आयोग शुरू करने की पहल वर्ष 2006 में केरल और फिर 2019 में तेलंगाना ने की थी और अब इसके बाद राजस्थान ऐसी पहल करने वाला तीसरा राज्य बन गया। केरल के पूर्व मुख्य सचिव जोस सिरियक आयोग की स्थापना के तुरंत बाद राज्य के वित्त सचिव बने थे और उनका कहना है कि यह योजना आंशिक रूप से कारगर हो सकती है क्योंकि इसमें मुख्य चिंता यह होती है कि आखिरकार यह ऋण कौन चुकाएगा।

उन्होंने कहा, ‘ऋण राहत आयोग का गठन एक बेहतर राजनीतिक विचार है लेकिन सवाल यह है कि इस कर्ज का बोझ कौन उठाएगा? केरल में यह योजना उम्मीद के मुताबिक कारगर नहीं हो पाई। शुरुआत में किसानों को कुछ राहत मिली क्योंकि राज्य सरकार ने उनके कर्ज का भुगतान किया। हालांकि, राज्य सरकार के पास पैसे खत्म होने के कारण, ऋण राहत आयोग की सिफारिशें पूरी तरह लागू नहीं की जा सकीं।’

सिरियक और गर्ग दोनों का कहना है कि राज्य सरकार के आयोग द्वारा ऋण माफ किए जाने, उसे स्थगित करने या पुनर्निर्धारण से कृषि ऋण प्रणाली की नींव के कमजोर होने का जोखिम होता है। इससे बैंक ऋण देने में अधिक सतर्कता बरतने लगते हैं क्योंकि ऐसे रुझान देखते हुएअधिक से अधिक किसान ऋण लेना शुरू कर सकते हैं क्योंकि उनकी निर्भरता इस आश्वासन पर होने लगती है कि भुगतान चूक की स्थिति में ऋण राहत आयोग उनका समर्थन कर सकता है।

इस बीच, राज्य सरकार अपने कार्यों को लेकर बेहद उत्साहित है। कांग्रेस अपने चुनावी वादे को पूरा करने का दावा करती है, हालांकि इस कार्यकाल के दौरान विधानसभा के संभवतः अंतिम सत्र के अंतिम दिन इस पर पूरी बात स्पष्ट होगी। पार्टी को भरोसा है कि किसान ऋण राहत आयोग सहित उसके कई कल्याणकारी उपायों से सत्ता में पार्टी की वापसी सुनिश्चित होगी।

First Published : August 14, 2023 | 11:18 PM IST