विशाल आबादी होने के बावजूद भारत का 2010-20 के दौरान वैश्विक नैदानिक परीक्षण (ग्लोबल क्लिनिकल ट्रायल) में औसत योगदान करीब 4 फीसदी रहा। पीडब्ल्यूसी इंडिया ऐंड यूएस-इंडिया चैम्बर ऑफ कॉमर्स (यूएसएआईसी) के अध्ययन ‘क्लिनिकल ट्रायल ऑपरट्यूनिटी इन इंडिया’ के मुताबिक बहुनियामकीय सुधारों के बाद देश में शीर्ष 20 फॉर्मा प्रायोजित परीक्षणों की संख्या में 2013 के बाद 10 फीसदी बढ़ोतरी हुई।
पीडब्ल्यूसी के पार्टनर सुजय शेट्टी ने कहा, ‘प्रमुख नियामकीय सुधार किए जाने के कारण 2014 के बाद से भारत में नैदानिक परीक्षण गतिविधियों में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। ये सुधार वैश्विक स्तर पर सामंजस्य और भारत में नैदानिक परीक्षण शुरू करने के मकसद से किए गए थे।’ शेट्टी के मुताबिक यह शीर्ष की बॉयोफार्मा कंपनियों के लिए दीर्घकालिक रणनीति विकसित करने का अवसर है। वे भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी स्थापित कर सकती हैं।
अधिक रोग प्रसार (जैसे कैंसर) वाले राज्यों में सर्वाधिक टीयर 1 शहर हैं। इन शहरों में नैदानिक परीक्षणके लिए आधुनिक चिकित्सकीय आधारभूत ढांचा उपलब्ध है। इन राज्यों को लक्षित करने पर बॉयोफार्मा कंपनियां शीघ्रता मरीजों, स्थानों, परीक्षणों और रिपोर्ट तक अपनी पहुंच बना सकती हैं। साल 2015 से 2020 तक परीक्षणों की संख्या में दोगुना बढ़ोतरी हो चुकी है। इन परीक्षणों में ज्यादातर इंटरनल मेडिसन और कैंसर स्पेशलाइजेशन से संबंधित हैं। हालांकि ज्यादार परीक्षण टीयर-1 और टीयर-2 शहरों तक ही सीमित हैं।
इंडियन सोसायटी फॉर क्लीनिकल रिसर्च (आर ऐंड डी डायरेक्टर, जीसीओ,जैनसेन इंडिया) के प्रेजिडेंट सनिश डेविस ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि कोविड के दौरान महत्वपूर्ण परिवर्तन आया और सभी साझदारों के बीच समन्यवयात्मक एप्रोच विकसित हुई।