टाटा टेक्नॉलजीज की प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) में निवेशकों ने अच्छी खासी रुचि दिखाई है क्योंकि यह लगभग दो दशकों में इस समूह की ओर से पहली प्राथमिक बाजार पेशकश है। इस इश्यू के माध्यम से 475 से 500 रुपये प्रति शेयर की दर से करीब 3,042 करोड़ रुपये की राशि जुटाने का लक्ष्य है।
अनाधिकारिक प्रतिभूति बाजार (ग्रे मार्केट) के 350 रुपये के प्रीमियम को देखते हुए माना जा सकता है कि यह शेयर ओवरसबस्क्राइब होगा तथा प्रीमियम दर पर सूचीबद्ध होगा।
टाटा टेक्नॉलजीज को इंजीनियरिंग से जुड़ी सुविधाओं के लिए अच्छी ख्याति हासिल है और यह देश के सबसे बड़े कारोबारी समूहों में से एक की ओर से संचालित है। इस कंपनी के अलावा भी यह वर्ष आमतौर पर उन कंपनियों के लिए बेहतर रहा है जो प्राथमिक बाजार में पहुंच कायम करना चाहती हैं।
वर्ष 2023 के शुरुआती नौ महीनों में भारत में औसतन 848 करोड़ रुपये के आकार वाले 170 आईपीओ आए। यह किसी भी अन्य बाजार की तुलना में बड़ा था। सबसे अधिक 4,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाई गई जबकि कुछ आईपीओ 100 करोड़ रुपये से कम मूल्य के भी थे।
इसके अलावा 25 से अधिक अन्य कंपनियों ने ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस पेश किया है, यानी वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ऐसे और इश्यू सामने आ सकते हैं। यह प्रॉस्पेक्टस तब पेश किया जाता है जब संभावित निवेशकों के समक्ष कोई नया कारोबार या उत्पाद पेश किया जाता है।
यह गतिविधि प्रमुख रूप से दो वजहों से प्रेरित रही है। पहला है एक मजबूत द्वितीयक बाजार जहां अधिकांश क्षेत्र अच्छा कारोबार करते हैं। कंपनियां तब चोट करना चाहती हैं जब लोहा गर्म हो। मजबूत द्वितीयक रुझान और प्रदर्शन अनुकूल प्राथमिक बाजार का माहौल तैयार करते हैं।
कंपनियां चाहती हैं कि बाजार रुझान में संभावित बदलाव आने के पहले जरूरत की धनराशि जुटा लें। दूसरा कारक एक व्यापक वापसी जैसा प्रतीत होता है। छोटे फाइनैंस बैंक, आभूषण, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, अधोसंरचना, स्वागत उद्योग और जैव प्रौद्योगिकी जैसे विविध क्षेत्रों में इश्यू देखने को मिले हैं। इनका मझोला आकार यही दर्शाता है कि मध्यम आकार की कंपनियां भी बाजार तक पहुंचने में कामयाब हैं। यह छोटे और मझोले उपक्रम क्षेत्र में सुधार का संकेत हो सकता है जो बहुत उत्साहित करने वाली बात है क्योंकि सबसे अधिक रोजगार वहीं सृजित होते हैं।
प्राथमिक बाजार को उस समय संघर्ष करना पड़ता है जब खुदरा भागीदारी कम होती है। फिलहाल ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस अवधि में खुदरा कोटा ओवरसबस्क्राइब रहा है। निश्चित तौर पर खुदरा निवेशक अपनी बचत लगातार कई सालों से शेयरों में लगा रहे हैं। उन्हें म्युचुअल फंड के माध्यम से भी योगदान दिया गया है जो इक्विटी म्युचुअल क्षेत्र में निरंतर पूंजी प्रवाह में नजर भी आता है।
यह मोटे तौर पर सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के माध्यम से किया गया। इससे यह संकेत भी निकलता है कि कुछ हद तक घरेलू बचत शेयरों की ओर स्थानांतरित हो रही है। आईपीओ इश्यू के सख्त मानदंडों, सूचीबद्धता के शेड्यूल और बाजार नियामक द्वारा समुचित जांच परख से भी सहजता मिली होगी।
एक ओर जहां घरेलू निवेशकों में सकारात्मक माहौल है, वहीं विदेशी संस्थागत निवेशकों का रुझान मिलाजुला रहा है। हालांकि ये निवेशक बाजार नियामक से मांग करते रहे हैं कि आवंटन कोटा बढ़ाया जाए तथा प्रक्रियाओं को सहज किया जाए ताकि भागीदारी में इजाफा किया जा सके।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के सख्त रुख के कारण जोखिम से बचाव का रवैया अपनाया गया है जिसका परिणाम कई महीनों की विशुद्ध बिकवाली के रूप में सामने आया है। घरेलू मोर्चे पर मुद्रास्फीति कम होती दिख रही है जो आमतौर पर बाजार के लिए अच्छी बात है। आने वाले महीनों में वैश्विक हालात के अलावा घरेलू राजनीतिक घटनाक्रम भी रुझान तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे।
बाजार और निवेशक स्थिरता तथा नीतिगत निरंतरता को तवज्जो देते हैं। व्यापक स्तर पर देखें तो नई सूचीबद्धता और प्राथमिक बाजार की स्थिति उत्साह बढ़ाने वाली है। इससे न केवल कंपनियों को बाजार से धन जुटाने में मदद मिल रही है बल्कि यह आर्थिक गतिविधियों के लिए भी सकारात्मक रहेगा। सूचीबद्ध कंपनियों की बढ़ती सूची धन प्रबंधकों को फंड के किफायती आवंटन में भी सक्षम बनाएगी।