एक और दीवाली करीब है और भारत तथा यूनाइटेड किंगडम के बीच मुक्त व्यापार समझौते (India-Britain FTA) पर अब तक हस्ताक्षर नहीं हो सके हैं। गौरतलब है कि एक दीवाली पहले भी इस समझौते पर हस्ताक्षर का वादा किया गया था।
उम्मीद है कि यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की दीवाली के आसपास होने वाली अचानक भारत यात्रा के दौरान इस पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। परंतु मसले इतने हैं कि यह संभावना दूर की कौड़ी नजर आ रही है।
इन मसलों को देखते हुए अगर मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हो भी जाते हैं तो यह बहुत हल्का और संकीर्ण होगा जबकि दोनों अर्थव्यवस्थाओं के वास्तविक एकीकरण के लिए कहीं अधिक गहन समझौते की जरूरत होगी।
इस देरी के लिए दोनों देशों के राजनीतिक और अफसरशाही प्रतिष्ठान समान रूप से उत्तरदायी हैं। भारत सरकार ने जहां एफटीए पर चर्चा करने की अपनी पुरानी अनिच्छा को बदल दिया है, वहीं अभी भी वह व्यापार से होने वाले लाभों को लेकर बहुत हिचकिचा रही है। वह विशिष्ट क्षेत्रों से झटका लगने को लेकर भी चिंतित है।
यहां तक कि वे क्षेत्र जिनकी रोजगार में बहुत बड़ी हिस्सेदारी नहीं है तथा जो अपेक्षाकृत विशेषाधिकार वाले हैं , वे भी एफटीए में देरी की वजह बनने में सक्षम हैं।
उदाहरण के लिए भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच समझौतों में एक मुद्दा पेशेवर सेवाओं से जुड़े प्रश्न का भी है। भारत अपने बाजार को पेशेवर सेवाओं के लिए खोलने का इच्छुक नहीं नजर आता। खासकर विधिक सेवा जैसे क्षेत्रों में।
ऐसा तब है जब इस बात पर लगातार जोर दिया जाता रहा है कि श्रमिकों की आवाजाही सभी मुक्त व्यापार समझौतों का अहम हिस्सा है। एक ओर जहां पेशेवर गिल्ड और कंपनियां बेहतर संपर्क वाली और मजबूत राजनीतिक पकड़ वाली होती हैं, वहीं यह दावा शायद ही किया जा सकता है कि उनके कारोबार पर कोई भी संभावित प्रभाव इतना गहरा होगा कि वह नए मुक्त व्यापार समझौते के सभी लाभों से परे हो।
भारत सरकार को हर हितधारी समूह की बात सुननी बंद कर देनी चाहिए और अपनी नजरें अंतिम नतीजे पर रखनी चाहिए जो है: यूनाइटेड किंगडम के बाजार तक पहुंच। ध्यान रहे यूनाइटेड किंगडम अचानक अपने प्रमुख कारोबारी साझेदारों के साथ तरजीही रिश्तों से वंचित हो चुका है।
इस बीच यूनाइटेड किंगडम की सरकार राजनीतिक गतिरोधों से जूझ रही है। पिछली दीवाली तक यह समझौता पूरा करने का वादा करने वाले पिछले प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन बहुत पहले जा चुके हैं और उसके बाद उनकी जगह लेने वाली उदारवादी मुक्त व्यापार समर्थक लिज ट्रस भी पद से बहुत पहले हट चुकी हैं।
मौजूदा प्रधानमंत्री भारतीय पृष्ठभूमि के हैं। सुनक ऐसे किसी भी आरोप को लेकर काफी संवेदनशील रहेंगे कि उन्होंने भारत को कुछ ज्यादा रियायत दे दी। उनके पारिवारिक संपर्कों को देखें तो उन्हें भारत को कोई भी रियायत देने को लेकर खास सावधानी बरतनी होगी क्योंकि उसकी व्याख्या भारतीय कारोबारी जगत का पक्ष लेने के रूप में की जा सकती है।
उदाहरण के लिए भारतीय आईटी कंपनियों के लिए लाभदायक हो सकने वाले अतिरिक्त वर्क वीजा सुनक के कार्यकाल में जाहिर तौर पर अधिक विवादित होंगे, बनिस्बत कि जॉनसन या ट्रस के कार्यकाल की तुलना में।
खेद की बात यह है कि समय तेजी से बीत रहा है। अगर भारत-यूनाइटेड किंगडम मुक्त समझौता अगले कुछ सप्ताह में नहीं निपटाया गया तो उसे अगले कुछ महीनों के लिए टालना पड़ सकता है।
भारत में अगले वर्ष के आरंभ में आम चुनाव होने हैं और लगता नहीं है कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल के अंतिम कुछ महीनों में मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होंगे। परंतु तब यूनाइटेड किंगडम में भी चुनाव करीब होंगे और ऐसे में सुनक के लिए भी बाजार संबंधी कोई साहसी कदम उठाना मुश्किल होगा।
इस गंवाए अवसर के लिए किसी एक व्यक्ति या संस्थान को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। परंतु भारतीय कंपनियां और कर्मचारियों को एक ऐसे देश तक पहुंच गंवाने का खेद हो सकता है जो नए कारोबारी साझेदारों को लेकर उत्साहित है।