Editorial: क्या मुद्रास्फीति को लक्षित करना वास्तव में काम करता है?

सर्वाधिक विकसित देशों में मुद्रास्फीति का लक्ष्य दो फीसदी का है। परंतु अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 3.7 फीसदी है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 28, 2023 | 12:38 AM IST

सर्वाधिक विकसित देशों में मुद्रास्फीति का लक्ष्य दो फीसदी का है। परंतु अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 3.7 फीसदी है, यूरो क्षेत्र में यह 5.6 फीसदी, ब्रिटेन में 6.8 फीसदी और जापान में 2.9 फीसदी है। शून्य वृद्धि से जूझ रहे जर्मनी में यह 4.3 फीसदी है।

भारत में जहां मुद्रास्फीति की दर इन विकसित देशों से कहीं अधिक है, वहां इसकी दर 5 फीसदी है। भले ही 5 फीसदी की दर मौद्रिक नीति समिति के 4 फीसदी के लक्ष्य से अधिक है लेकिन यह ऐसा आंकड़ा है जिसकी रिजर्व बैंक को आने वाली तिमाहियों में उम्मीद नहीं है।

प्रमाण की बात करें तो मुद्रास्फीति को लक्षित करना केवल तभी कारगर होता है जब विश्व अर्थव्यवस्था सामान्य स्थिति में हो और मांग में उतार-चढ़ाव ऐसे छोटे चक्रों में हो जिससे मौद्रिक नीति निपट सके। असामान्य समय में यानी 2008 के वित्तीय संकट और कोविड जैसे समय में दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने सामान्य नियमों को त्याग दिया और असाधारण उपायों की तलाश में लग गए। अब ऐसा लगता है कि कम असामान्य समय में भी सामान्य नियम कायदे शायद कारगर नहीं साबित हों।

भूराजनीतिक विवाद और नया शीतयुद्ध आदि नए तथ्य हैं और उन्होंने तेल बाजार तथा विभिन्न खाद्य और जिंस बाजारों को प्रभावित किया है। यह उथलपुथल जारी रहेगी क्योंकि पूरी दुनिया प्रतिस्पर्धी ब्लॉक में बंट रही है जो स्रोत बिंदु को नए सिरे से तय करना चाहते हैं।

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे अन्य प्रकार की लागत उत्पन्न करते हैं। ऐसे में मांग कमजोर होने पर भी कीमत बढ़ेगी। इस स्थिति में मौद्रिक नीति के पास कोई उत्तर नहीं है। इसके प्रभारी अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए ब्याज दरों के लंबे समय तक ऊंचा बने रहने के जुमले उछालते हैं।
परंतु इससे नुकसान नहीं छिप पाता है।

अमेरिका और चीन के बेहतर प्रदर्शन के बावजूद वैश्विक मंदी के हालात हैं। ऋण के महंगा होने के कारण बैंकों और कंपनियों के बहीखाते पर दबाव उत्पन्न हो रहा है। ऐसे में इनका प्रभाव विस्तारित होने की संभावना उत्पन्न हो गई है। निवेश पर इसलिए असर पड़ रहा है कि उसे पूंजी की उच्च लागत की भरपाई के लिए उच्च रिटर्न देना होगा।

जिन देशों पर कर्ज बहुत अधिक है और जो ब्याज का बोझ महसूस कर रहे हैं उनके लिए हालात ज्यादा कठिन हैं। आर्थिक पूंजी की उच्च ब्याज दर आसपास के बाजारों को भी प्रभावित करती है क्योंकि वैश्विक पूंजी को सुरक्षा की आवश्यकता होती है। यह बात भारत जैसे बाजारों को प्रभावित करती है।

कई देशों में सरकारी ऋण पत्रों पर रिटर्न रिकॉर्ड स्तर पर हैं। अगर केंद्रीय बैंकरों ने अनुदेश को गंभीरता से लिया और दो फीसदी मुद्रास्फीति का लक्ष्य हासिल करने का प्रयास किया तो यह और अधिक होगा। परंतु उन सभी ने मिलकर अपने हाथ रोके रखे क्योंकि पहले ही ऊंचे स्तर पर मौजूद दरें और बढ़ेंगी तो आर्थिक लागत में भी इजाफा होगा।

परोक्ष रूप से उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि वे अनुदेश का पालन नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास पर्याप्त उपायों की कमी है। यही वजह है कि वे हेराफेरी करते हैं।

मौद्रिक नीति एक चौराहे पर है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन ने व्यापार एवं विकास पर अपनी ताजा सालाना रिपोर्ट में कहा है कि केंद्रीय बैंकों को अपना दो फीसदी का उल्लिखित लक्ष्य त्याग देना चाहिए और नीति निर्माण करते समय ऋण संकट, बढ़ती असमानता और धीमी वृद्धि जैसे अन्य मसलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत में भी जब 4 फीसदी का लक्ष्य रखा गया तो ऐसे ही तर्क दिए गए। मुद्रास्फीति की कई वजह हैं और अतिरिक्त मांग उनमें से केवल एक है। ऐसे में रिजर्व बैंक के पास ऐसे नीतिगत उपाय नहीं हैं कि वह एकल बिंदु वाला लक्ष्य प्राप्त कर सके। कुछ लोगों का तर्क है कि ऐसी कोशिश करना भी गलत होगा क्योंकि अन्य वृहद आर्थिक लक्ष्य भी उतने ही अहम हैं।

भारत की स्थिति अन्य देशों से बेहतर है। भारत पर अधिक कर्ज भी नहीं है और वृद्धि की गति बेहतर है। ऐसे में रिजर्व बैंक के पास यह गुंजाइश है कि वह दरों में इजाफा करे और 4 फीसदी के लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश करे। इसके बावजूद रिजर्व बैंक ने अपना हाथ रोक रखा है और उसने अनुमान जताया है कि मुद्रास्फीति का लक्ष्य अगली ​तीन तिमाहियों में हासिल नहीं होगा।

यहां बचाव का रास्ता रिजर्व बैंक का वह अनुदेश है जो 4 फीसदी के लक्ष्य के दो फीसदी इधर या उधर रहने की इजाजत देता है। यहां सवाल यह है कि अगर 4 फीसदी मुद्रास्फीति का लक्ष्य 2019 से हासिल ही नहीं हो सका है तो उसे रखना कितना प्रासंगिक है? अगर केवल संयोग से ही लक्ष्य हासिल हो जाए तो भला क्या होगा? दुनिया के तमाम हिस्सों में और भारत में भी क्या मुद्रास्फीति को लक्षित करने से कुछ बात बनती है?

First Published : October 27, 2023 | 11:28 PM IST