गत सप्ताह पश्चिमी दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने संकेत दिया कि मौद्रिक नीति को लेकर वे अलग-अलग रास्ते पर हैं। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व, यूरोपीय केंद्रीय बैंक और बैंक ऑफ इंगलैंड में से किसी ने ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया। परंतु अपने-अपने कदमों और अर्थव्यवस्था को लेकर उनके नजरिये में काफी अंतर है।
इस बीच अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में इजाफे को वापस लेने का सिलसिला आरंभ कर दिया। उक्त इजाफा भी दशकों में काफी अधिक था। इसकी प्रतिक्रिया में बाजार तेजी से आगे बढ़े और कुछ लोग इस बात को लेकर भी चिंतित थे कि वे मार्च में ब्याज दरों में कटौती की तैयारी कर रहे थे।
फेड के अधिकारियों ने कहा कि अभी दरों में कटौती के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन जो नुकसान होना था, वह हो चुका था: वे पहले ही अगले वर्ष की कटौती का संकेत दे चुके थे। इससे उनके पास पहले ही सीमित गुंजाइश थी।
फेडरल रिजर्व के प्रमुख ने यह संकेत भी दिया कि केंद्रीय बैंक दरों में इजाफा करने को तैयार होगा, बशर्ते कि मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय कमी आए। परंतु अधिकांश पर्यवेक्षकों ने निष्कर्ष निकाला कि फेडरल रिजर्व को यकीन था कि उसने अमेरिका में मुद्रास्फीति से जूझते हुए उच्च रोजगार दर बरकरार रखकर हालात संभाल लिए हैं।
यूरो क्षेत्र में भी मुद्रास्फीति में कमी आई और यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों को स्थगित रखा। बहरहाल, उसका आगे का निर्देशन फेडरल रिजर्व से अलग था। उसने संकेत दिया कि वह केंद्रीय बैंक द्वारा महामारी के दौरान शुरू की गई बॉन्ड खरीद योजना को वापस लेने की गति तेज करेगा। इसका यूरोप के मौद्रिक हालात पर सख्ती भरा प्रभाव होगा।
बाजार यह उम्मीद कर सकते हैं कि अगले वर्ष के आरंभ में फेड के साथ ही यूरोपीय केंद्रीय बैंक भी दरों में कटौती कर सकता है, लेकिन यूरोपीय केंद्रीय बैंक दरों के मार्ग और मुद्रास्फीति को लेकर फेड की तुलना में कहीं अधिक सतर्क है।
इस बीच बैंक ऑफ इंगलैंड ने विशेष तौर पर कहा कि मुद्रास्फीति के साथ उसकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है और ऐसा प्रतीत होता है कि तीनों केंद्रीय बैंकों में से नीतिगत सहजता लाने वाला यह अंतिम बैंक होगा।
यूनाइटेड किंगडम निश्चित रूप से अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अनिश्चित स्थिति में है, क्योंकि उसकी वित्तीय स्थिति में निवेशकों के भरोसे को गत वर्ष क्षति पहुंची थी। ऐसे में बैंक ऑफ इंगलैंड को बीते 15 वर्षों की तुलना में दरों में अधिक इजाफा करना पड़ा।
ऐसे में 2024 में व्यापक वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने तीन एकदम अलग परिस्थितियां हैं। निवेशकों और बाजार के बीच गहरा विभाजन हो सकता है, जिन्हें यकीन है कि नीति निर्माता इस बात को कम करके आंक रहे हैं कि अर्थव्यवस्था से मुद्रास्फीति कितनी तेजी से कम हो सकती है और वे उस नुकसान को भी कम करके आंक रहे हैं जो लंबे समय तक ऊंची दरें वृद्धि संभावनाओं को पहुंचा सकती हैं।
फेडरल रिजर्व ने गत सप्ताह के वक्तव्यों के बाद नीतिगत गुंजाइश बहुत सीमित कर ली है और उसके नीतिगत चूक करने का खतरा है। वह ऐसा दरों में बहुत जल्दी कटौती करके भी कर सकता है और लंबे समय तक दरें ऊंची रखकर भी। ऐसा करने से वित्तीय हालात तंग होंगे और उपभोक्ताओं तथा निवेशकों को प्रभावित करेंगे।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में वृद्धि की गति और आशावाद अमेरिकी उपभोक्ताओं, महामारी के युग के प्रोत्साहन पर आधारित है। असाधारण रोजगार वृद्धि ने उसे गति दी है। भारत जैसे देशों के लिए अमेरिकी वृद्धि का प्रभावित होना नकारात्मक होगा। वर्ष 2024 में वैश्विक वृद्धि का अनुमान पहले ही तीन फीसदी से कम यानी 2.7 फीसदी है, जबकि चालू वर्ष में यह 3.1 फीसदी रहने का अनुमान है। अब केंद्रीय बैंक की गलतियों से वृद्धि में गिरावट के जोखिम को भी ध्यान में रखना होगा।