वाहन फर्मों के लिए रॉयल्टी, तकनीक का शुल्क ज्यादा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 2:59 AM IST

यदि वित्त वर्ष 2020 या वित्त वर्ष 2019 के आंकड़ों पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि सुजूकी, हुंडई, होंडा, टोयोटा, फोर्ड, और निसान जैसी वैश्विक वाहन दिग्गजों की भारतीय इकाइयों ने रॉयल्टी और टेक्निकल शुल्क पर 8,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए।
यह उनकी संयुक्त शुद्घ बिक्री के लगभग 4 प्रतिशत के बराबर था। मारुति सुजूकी के लिए आंकड़े वित्त वर्ष 2020 के लिए हैं जबकि अन्य कंपनियों के लिए वित्त वर्ष 2019 के आंकड़े इस्तेमाल किए गए हैं।
रॉयल्टी भुगतान पर विदेशी मुद्रा खर्च, उनके निर्यात के जरिये होने वाले खर्च की तुलना में ज्यादा रहा है। पिछले साल, इन कंपनियों ने 44,150 करोड़ रुपये मूल्य की यात्री कारों और दोपहिया का निर्यात किया था, जो रॉयल्टी और टेक्निकल शुल्कों पर हुए उनके खर्चों का करीब पांच गुना है।
मारुति सुजूकी ने इस उद्योग में सबसे बड़ा रॉयल्टी संबंधित बिल दर्ज किया और उसने वित्त वर्ष 2020 में इस मद में करीब 3,800 करोड़ रुपये खर्च किए, जो उसकी शुद्घ बिक्री के 5 प्रतिशत के बराबर है। इसके बाद होंडा मोटरसाइकिल ऐंड स्कूटर है जिसने रॉयल्टी पर 1,252 करोड़ रुपये खर्च किए।
केंद्रीय वाणिज्यि मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले सप्ताह बहुराष्ट्रीय कंपनियों से विदेशी मुद्रा खर्च नियंत्रित करने के लिए रॉयल्टी भुगतान में कमी लाने और घरेलू निर्माण एवं उत्पाद विकास को बढ़ावा दिए जाने को कहा था।
टाटा मोटर्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, हीरो मोटोकॉर्प, बजाज ऑटो, और टीवीएस मोटर्स जैसी घरेलू वाहन निर्माता कंपनियों ने शोध एवं विकास पर बड़ी रकम खर्च की, क्योंकि उन्होंने एमएनसी के साथ प्रतिस्पर्धा में बने रहने पर जोर दिया है। वित्त वर्ष 2020 में, देश की 6 वाहन निर्माताओं ने आरऐंडडी पर संयुक्त रूप से करीब 6,000 करोड़ रुपये खर्च किए, जो उनकी शुद्घ बिक्री के करीब 3.4 प्रतिशत के बराबर है।
टोयोटा किर्लोस्कर मोटर्स के एक अधिकारी ने कहा, ‘नई प्रौद्योगिकियों तक पहुंच भारत के तेज आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। रॉयल्टी भुगतान को तब तक मददगार के तौर पर देखा जाना चाहिए जब तक वे उचित दायरे में हों और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी हों।’ वैश्विक वाहन निर्माताओं की भारतीय सहायक इकाइयों का सभी वाहन निर्यात में करीब दो-तिहाई का योगदान है। कैपिटालाइन के आंकड़े के अनुसार, फोर्ड इंडिया वित्त वर्ष 2019 में 16,700 करोड़ रुपये के निर्यात के साथ इस चार्ट पर सबसे ऊपर है और उसके राजस्व में निर्यात का 70 प्रतिशत योगदान है। तुलनात्मक तौर पर कंपनी ने वर्ष में रॉयल्टी और तकनीकी शुल्कों पर 564 करोड़ रुपये खर्च किए।
उसके बाद हुंडई मोटर्स इंडिया का स्थान है जिसने वित्त वर्ष 2019 में 12,000 करोड़ रुपये के वाहनों का निर्यात किया और उसके राजस्व में इसका 28 प्रतिशत का योगदान रहा। इस संबंध में कंपनी ने रॉयल्टी और तकनीकी शुल्कों पर 1,132 करोड़ रुपये खर्च किए। दोपहिया निर्माता बजाज ऑटो देश की तीसरी सबसे बड़ी वाहन निर्यातक है और उसका वित्त वर्ष 2020 में कुल बिक्री में निर्यात का करीब 40 प्रतिशत का योगदान रहा। किएर्नी के प्रिंसिपल राहुल मिश्रा का मानना है कि स्थानीय प्रौद्योगिकी और बौद्घिक संपदा विकास को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत होगी। मिश्रण का कहना है, ‘स्थानीय निर्माण को बढ़ावा दिए जाने के बाद, हमें स्थानीय शोध एवं विकास क्षमताओं को मजबूत बनाने की जरूरत होगी। स्थानीय आरऐंडडी को प्रोत्साहित किए जाने के लिए पहलें शुरू की गई हैं, लेकिन अब इस दिशा में बड़ा बदलाव लाए जाने की जरूरत होगी क्योंकि यह दीर्घावधि आर्थिक हित से संबंधित है और देश को आत्मनिर्भर बनाए जाने की दिशा में उठाया जा रहा कदम है।’

मूडीज ने एसबीआई की रेटिंग घटाई
रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारतीय स्टेट बैंक की बेसलाइन क्रेडिट एसेसमेंट (बीसीए) रेटिंग ‘बीए1’ से घटाकर ‘बीए2’ कर दी है, क्योंकि कोविड-19 महामारी से आर्थिक झटके की वजह से बैंक का पहले से ही कमजोर पड़ चुका कर्जदारों का क्रेडिट प्रोफाइल और ज्यादा कमजोर हो सकता है। इससे भारतीय बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता प्रभावित होगी। रेटिंग एजेंसी ने एसबीआई की बीएए3 डिपॉजिट रेटिंग की पुष्टि कर दी है। बीसीए रेटिंग में कमी से इस आशंका का संकेत मिलता है कि बैंक की परिसंपत्ति गुणवत्ता और लाभप्रदता प्रभावित होगी।
जून 2020 में समाप्त हुई तिमाही में एसबीआई की परिसंपत्ति गुणवत्ता सुधरी है और उसका सकल एनपीए अनुपात एक साल पहले के 7.5 प्रतिशत से घटकर 5.4 प्रतिशत रह गया। हालांकि इस अनुपात को संभावित तौर पर कम समझा गया है। बीएस

First Published : August 26, 2020 | 12:09 AM IST