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कंपनियों की मांग से छाता उद्योग के फैले पंख

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 6:03 PM IST

पिछले दो साल से कोरोना के कहर से अधखुली छतरी इस बार पूरी तरह पंख फैलाने को तैयार है। बेहतर मॉनसून तथा स्कूल और दफ्तर पूरी तरह खुलने की वजह से इस बार छतरी इतराने को बेताब है। छतरी के पंखों पर सवार होकर छोटी-बड़ी कंपनियां भी बाजार में फैलना चाह रही हैं। बाजार में चीनी छतरियों के नदारद होने और मांग के मुताबिक आपूर्ति न होने के कारण छतरी पर भी महंगाई की मार पड़ी है।
देश में मॉनसूनी फुहार शुरू होते ही रंग बिरंगी छतरियों का बाजार सज गया। मॉनसून की आहट आते ही बाजार में छतरियों की मांग इस कदर बढ़ी जिसकी कारोबारियों को भी उम्मीद नहीं थी। अंब्रेला मैन्युफैक्चरर्स ऐंड ट्रेडर्स एसोसिएशन, मुंबई के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र जैन कहते हैं कि इस बार सबसे ज्यादा मांग कॉर्पोरेट सेक्टर की तरफ से हो रही है। सामान्यतः बाजार की कुल मांग का एक-दो फीसदी छतरियां उद्योग घराने खरीदते थे लेकिन इस बार यह मांग 6-7 फीसदी तक पहुंच गई है। दो साल बाद स्कूल-कॉलेज और दफ्तर भी पूरी तरह खुल गए हैं जिसके चलते थोक मांग के साथ रिटेल मांग भी तेज रहने वाली है। उनके मुताबिक शुरुआती मांग को देखकर कहा जा सकता है कि छतरियों की मांग को पूरा कर पाना मुश्किल है। 
बाजार में छतिरयों की कमी पर कारोबारियों का कहना है कि कोरोना के चलते पिछले दो साल छतरी कारोबार के लिए बहुत बुरा था। उत्पादक इकाइयों को डर था कि कहीं इस बार भी ऐसा ही हाल न हो इसलिए शुरुआत में उत्पादन पर खास ध्यान नहीं दिया गया, कंपनियों ने जनवरी से उत्पादन शुरू किया। इस बीच चीन में कोरोना दोबारा फैलने से छतरी व छतरी तैयार में होने में लगने वाले सामान का आयात बाधित हो गया जिसके कारण उत्पादन कम हुआ। छतरी तैयार करने में लगने वाले सामान पर आयात शुल्क बढ़ने व ईंधन की कीमतें महंगी होने के कारण उत्पादन लागत बढ़ी, जिसके कारण छतरियों के दाम 25-30 फीसदी तक अधिक हो गए। इस बार थोक बाजार में छतरी 125-300 रुपये तक मिल रही है जबकि पिछले साल यह 90-200 रुपये तक में बेची जा रही थी।
सिटिजन अंब्रेला के प्रमुख नरेश भाटिया कहते हैं कि मांग तो कोरोना पूर्व के करीब ही है लेकिन आपूर्ति कम होने के कारण बाजार में छतरियों की कमी देखने को मिल रही है। यह सीजन भारतीय छतरी उद्योग के लिए सारे घाटे पूरा कर देने वाला साबित होने वाला है। पिछले दो सालों से जमा स्टॉक खाली हो जाएगा, उधारी भी निकल आएगी, जो कारोबार को नई ऊर्जा देगी। इस साल बाजार में चीन से आने वाली छतरियां न के बराबर देखने को मिल रही है। कारोबारियों का कहना है कि डोकलाम विवाद के बाद से भारतीय आयात चीनी सामान से कन्नी काटने लगे। इसके अलावा दो साल कोरोना के चलते चीन से बहुत कम माल आया और इस पर तो चीन में कोरोना कहर बरपा रहा है जिसके चलते चीन से आने वाला माल लगभग ठप पड़ चुका है। यही वजह है कि बाजार में चीन से आने वाले छाते दिखाई नहीं दे रहे हैं।
अंब्रेला मैन्युफैक्चरर्स ऐंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के पूर्व सचिव राजेश चोपड़ा कहते हैं कि कुछ साल पहले भारतीय बाजार में बिकने वाले छातों में 70 फीसदी चीन के होते थे जबकि 30 फीसदी भारतीय कंपनियों के होते थे लेकिन अब माहौल बदल गया, भारतीय कंपनियों ने अपने उत्पादन में सुधार के साथ गुणवत्ता और कीमत पर भी ध्यान दिया, परिणाम स्वारुप घऱेलू बाजार का देसी कंपनियों की हिस्सेदारी 70 फीसदी तक पहुंच गई। वह कहते हैं कि इस उद्योग में भारतीय कंपनियों को चीन को पटखनी देने के लिए वैश्विक बाजार में अपने पंख फैलाने होगे। अब उत्पादन निर्यात के हिसाब से करना होगा लेकिन इसके लिए सरकार को अपनी नीतियों और आयात शुल्क के ढांचे में सुधार करना होगा।
सिटिजन अंब्रेला, टेलो, हैप्पी, मदरलैंड, सन ब्रांड, जैनसंस, शुभम, एसके इत्यादि ब्रांड की रंग बिरंगी छतरियां बाजार में देखने को मिल रही हैं। इन कंपनियों ने पिछले कुछ सालों में अपना उत्पादन बढ़ाकर चीनी छतरियों को भारतीय बाजार में सुकुड़ने के लिए मजबूर कर दिया। देश में छतरियों का उत्पादन बढ़ा लेकिन निर्यात लगभग न के बराबार है। कारोबारियों का कहना है दरअसल छतरी को तैयार करने में लगने वाला ज्यादातर सामान आयात किया जाता है जिसमें 20 फीसदी तक आयात शुल्क लगता है। छतरी को तैयार करने के बाद जब उसका निर्यात किया जाता है तो आयात शुल्क वापसी मुश्किल से एक-दो फीसदी मिल रही है जबकि दूसरे उद्योगों में निर्यात की स्थिति में 100 फीसदी आयात शुल्क की वापसी होती है। सरकार को अपने इस नीति में बदलवा करना होगा तभी भारतीय छाता वैश्विक बाजार में अपने पंख खोल पाएंगा। देश में उत्पादन बढ़ने के साथ कारोबार भी बढ़ा है इस समय भारत में छतरी उद्योग का सालाना कारोबार 10,000 करोड़ रुपये को पार कर चुका है। इस समय देश में छतरियों का उत्पादन करीब एक हजार करोड़ दर्जन के आसपास होने लगा है।  महाराष्ट्र में ही करीब 150 इकाइयां छतरी बनाकर अलग-अलग ब्रांडों के नाम से उतारती हैं। देश भर में 1,000 से ज्यादा छतरी कंपनियां हैं। छतरी विनिर्माण का सबसे बड़ा अड्डा कोलकाता है, जिसके बाद महाराष्ट्र के उमरगांव और भिवंडी तथा राजस्थान के पालना का नाम आता है। जबकि दक्षिण भारत की मांग केरल की छोटी इकाइयां पूरी करती हैं।

First Published : June 24, 2022 | 12:15 AM IST