अस्सी के दशक की शुरुआत में मारुति सुजूकी में विपणन निदेशक के रूप में मैंने राहुल बजाज को हस्तक्षेप कर हमारे कर्मचारियों के लिए अति मांग वाले बजाज स्कूटरों का बिना बारी के आवंटन प्राप्त करने के लिए पत्र लिखा था, क्योंकि इसकी प्रतीक्षा सूची लंबी थी। बजाज ने तुरंत उत्तर दिया, लेकिन उत्तर जोरदार ढंग से ‘नहीं’ में था। उन्होंने कहा कि माफ कीजिए, हम मारुति को कोई तरजीह नहीं दे सकते हैं।
मेरे लिए वह सर्वोत्कृष्ट राहुल बजाज थे, जो पारदर्शी, मुखर और नियम तोडऩे को तैयार नहीं थे। वह एक सच्चे राष्ट्रवादी थे, जिनका मेक इन इंडिया गाथा में विश्वास था।
वह वर्ष 1993 में तथाकथित बॉम्बे क्लब के संभवत: सबसे मुखर सदस्य रहे होंगे, लेकिन आत्मविश्लेषण में वह जो कह रहे थे, वह सही था। उस समय हम सभी सुधारों, तेजी से किए जाने वाले फैसलों पर जोर दे रहे थे, लेकिन मैं शायद कुछ गलत था। राहुल जिस बात की मांग कर रहे थे, वह घरेलू उद्योग के लिए काम करने की समान स्थिति थी, ताकि वैश्विक कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करते समय उन्हें मुश्किल न हो। वह प्रतिस्पर्धा के खिलाफ नहीं थे। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत तथा मेक इन इंडिया का भी यही सार है। राहुल घरेलू उद्योग के लिए बाधाओं को दूर करने की भी बात कर रहे थे।
हमारी पहली बातचीत भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) में बैठकों के जरिये हुई थी। हम सीआईआई की कई बैठकों में भी एक साथ गए, अमेरिका, ब्रिटेन और एक बार मॉस्को वाली बैठक में गए। इसके अलावा एक बार जब मैं दावोस गया, तो उन्हीं के साथ था और जल्द ही हम करीबी दोस्त बन गए। वह मुझे और मेरी पत्नी को पुणे में अपने घर रात के खाने के लिए बुलाया करते थे, जहां सबसे अच्छा मारवाड़ी भोजन परोसा जाता था (हम दोनों शाकाहारी थे, यह एक और ऐसी बात थी कि हमारी स्वाभाविक दोस्ती हुई) और हमारा संबंध मजबूत हो गया, क्योंकि वह नरेश चंद्रा के भी करीबी थे, जो आईएएस में मेरे बैचमेट थे और हम तीनों ताज पैलेस में एक साथ मिला करते थे। जब वह दिल्ली में होते थे, तो वह हमेशा वहीं एक स्वीट में रहते थे। अलबत्ता कोविड-19 की वजह से हमारा मिलना नहीं हो पाया क्योंकि ज्यादातर समय वह पुणे में ही रहे।
सरकार और सुजूकी के बीच लड़ाई के दौरान बेशक उन्होंने हमारे रुख का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने यह भी माना कि जापानियों को भारत में बहुत कुछ मिला है। इसने उन्हें अपनी कंपनी में विदेशी कंपनियों को हिस्सेदारी देने से दूर रखा। इसलिए उन्होंने दोपहिया वाहनों के लिए फोर स्ट्रोक तकनीक हासिल की जल्दी नहीं की। लेकिन इसने होंडा के साथ करार करने वाली हीरो के मुंजाल को वॉल्यूम के लिहाज से बाजार में बजाज से आगे निकलने का मौका उपलब्ध कर दिया था। लेकिन यह राहुल के लिए सही या गलत रणनीति की बात नहीं थी, यह विश्वास की बात थी।
लेकिन भले ही उन्होंने बाजार हिस्सेदारी के लिहाज से शीर्ष स्थान खो दिया हो, लेकिन अगर आप वित्तीय अनुपात और लाभ की स्थिति को देखें, तो बजाज कारोबार में सदैव सर्वश्रेष्ठ रही है। और राहुल के लिए यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।
उनके अपने पुत्र राजीव के साथ भी मतभेद थे, जो स्कूटर का उत्पादन पूरी तरह बंद करने और मोबाइक की ओर जाने की उनकी रणनीति के संबंध में सार्वजनिक थे। शायद राहुल सही थे, मोबाइक का जुनून तो था, लेकिन बाजार वापस स्कूटरों की ओर जा रहा है तथा स्कूटर और मोबाइक दोनों को रखना का आदर्श संयोजन है।
(लेखक मारुति सुजूकी इंडिया लिमिडेट के चेयरमैन हैं। सुरजीत दास गुप्ता के साथ उनकी बातचीत पर आधारित)