प्राचीन काल में जब राजाओं ने सड़कों, स्मारकों या नगरों का निर्माण किया था, तब हजारों लोगों को रोजगार मिला था और आसपास के क्षेत्र उन श्रमिकों को आश्रय देने के लिए राज्य के साथ एकजुट हो गए थे जो कभी-कभार अन्य देशों से पलायन किया करते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद इसी दृष्टिकोण पर भरोसा कर रहे थे, जब इस वर्ष अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में उन्होंने कहा कि नैशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) से छोटे और बड़े उद्यमों और यहां तक ??कि किसानों को भी लाभ मिलेगा। मोदी ने कहा कि प्राय: यह कहा जाता है कि संकटों के दौरान बुनियादी ढांचे पर जोर दिया जाना चाहिए ताकि आर्थिक गतिविधियों को गति और लोगों को रोजगार मिले तथा इससे व्यापक प्रभाव उत्पन्न हो।
सरकार को उम्मीद है कि एनआईपी के तहत केंद्र, राज्यों और निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए 110 लाख करोड़ रुपये का व्यय किया जाएगा। विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 7,000 परियोजनाओं की पहचान की जा चुकी है। एनआईपी के 40 प्रतिशत या 44 लाख करोड़ रुपये मूल्य वाली परियोजनाओं का कार्यान्वयन होना है और 33 लाख करोड़ रुपये (30 प्रतिशत) मूल्य वाली परियोजनाएं सैद्धांतिक स्तर पर हैं। विकासाधीन परियोजनाओं का मूल्य 22 लाख करोड़ रुपये है।
बुनियादी ढांचे के सभी उप-क्षेत्रों के विभिन्न हितधारकों द्वारा प्रदान की गई जानकारी एकत्र करके एनआईपी को सर्वश्रेष्ठ-प्रयास के आधार पर तैयार किया गया है। हालांकि जीडीपी में 3.2 प्रतिशत के संकुचन की विश्व बैंक की भविष्यवाणी सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्र के लिए भी वित्त पोषण की एक चुनौती बन सकती है। केपीएमजी (इंडिया) के चेयरमैन और मुख्य कार्याधिकारी अरुण कुमार कहते हैं कि इस विश्वव्यापी महामारी की व्यापकता और परिणामस्वरूप संसाधनों पर इसके दबाव को देखते हुए यह लाजिमी हो जाता है कि हितधारक क्षेत्र और परियोजनाओं की प्राथमिकता का पूनर्मूल्यांकन करें। उनके अनुसार भारत आजादी के बाद से अपने सबसे चुनौतीपूर्ण दौर का सामना कर रहा है तथा बुनियादी ढांचे के व्यय से आर्थिक गतिविधियों और रोजगार सृजन में मदद मिल सकती है। केंद्र संपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास में एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार कर रहा है, चाहे वह मल्टीमॉडल परिवहन हो या बिजली क्षेत्र में एक विश्व, एक सूर्य, एक ग्रिड की अवधारणा।
मोदी ने कहा है कि हमें ऐसी स्थिति की जरूरत नहीं है जहां बुनियादी ढांचा और सड़क क्षेत्र केवल सड़कों के लिए तथा रेल क्षेत्र केवल रेल के लिए ही काम करे। रेलवे और रोडवेज के बीच, एयरपोर्ट और पोर्ट के बीच, रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन के बीच कोई समन्वय नहीं है। इस तरह की स्थिति वांछनीय नहीं है। लेकिन पहले एकीकरण नहीं था। जब मोदी ने मई 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाला था, तो पीयूष गोयल को बिजली, अक्षय ऊर्जा और कोयला तथा नितिन गडकरी को सड़क परिवहन और जहाजरानी मंत्रालय दिया गया था, लेकिन बाद में उन्होंने राजग सरकार के दूसरे कार्यकाल में जहाजरानी गंवा दिया जो एकीकरण से अलग हो गया था। हालांकि ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय एक ही मंत्री आरके सिंह के पास ही रहे हैं, लेकिन प्रशासनिक जटिलताओं की वजह से उन्हें एकीकृत नहीं किया जा सका था।
परिवहन क्षेत्र के लिए एकीकृत दृष्टिकोण 1990 के दशक की शुरुआत से विभिन्न सरकारों की कार्यसूची में शामिल रहा है। शहरी विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव एम रामचंद्रन ने कहा कि माल ढुलाई का मल्टीमॉडल परिवहन अधिनियम वर्ष 1993 में लागू किया गया था और इसके दायरे में सड़क, रेल, अंतर्देशीय जलमार्ग, समुद्र तथा वायु द्वारा माल परिवहन को रखा गया था, लेकिन देश में एकीकृत परिवहन पैर नहीं जमा पाया है। उन्होंने कहा कि कोई एकीकृत परिवहन मंत्रालय नहीं है और फिर राज्य सरकारें भी हैं। बेहतर तालमेल के लिए कोई एक मंत्रालय बनाया जाना चाहिए। मार्च 2017 में गडकरी ने माल ढुलाई और वितरण को जोडऩे, मल्टीमॉडल परिवहन, भंडारण और मूल्य संवर्धित सेवा केंद्रों के रूप में 35 मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक पार्क विकसित करने की योजना की बात की थी। इसके अलावा रेल, सड़क, मास रैपिड ट्रांजिट प्रणाली, बस रैपिड ट्रांजिट, ऑटोरिक्शा, टैक्सी और निजी वाहनों को एकीकृत करने वाले 10 इंटरमॉडल स्टेशनों की परिकल्पना की गई थी। लॉजिस्टिक पार्क विकसित करने के लिए मल्टीमॉडल कंपनी (एमएमसी) की योजना थी।
इसमें भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), भारतीय रेलवे, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई), भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) और भारतीय बंदरगाह संघ (आईपीए) की भागीदारी होनी थी। एमएमसी को डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया जैसे अन्य सरकारी संगठनों के साथ संस्थानिक साझेदारी करनी थी। हालांकि यह दायित्व गडकरी के मंत्रालय से गोयल के मंत्रालय के पास चला गया। अलबत्ता शहरी बुनियादी ढांचे में एक तरह से एकीकरण वाली परिवहन सेवा की शुरुआत की गई है। इसमें बड़े शहरों में बस सेवाओं और मेट्रो स्टेशनों को हवाई अड्डों तथा रेलवे स्टेशनों के साथ जोड़ गया है। रामचंद्रन ने कहा कि वर्ष 2006 की राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (एनयूटीपी) में 10 लाख से अधिक आबादी वाले सभी शहरों में यूनिफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (यूएमटीए) की सिफारिश की गई थी, लेकिन केवल कुछ राज्य सरकारों ने ही इस संबंध में कदम उठाया है।
तमिलनाडु ने वर्ष 2011 में चेन्नई यूनिफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी अधिनियम लागू किया था, जबकि तिरुवनंतपुरम, कोच्चि और कोझिकोड के लिए पिछले साल केरल मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी अधिनियम बनाया गया है। यूएमटीए का गठन उन क्षेत्रों के लिए अनिवार्य है, जहां मेट्रो प्रस्तावित है या वर्ष 2017 की केंद्र की मेट्रो रेल नीति के तहत कार्यान्वयन किया जा रहा है। केंद्र सरकार का भारतीय रेलवे स्टेशन विकास निगम भी मल्टीमॉडल परिवहन केंद्र के रूप में स्टेशनों का पुनर्निर्माण कर रहा है। लेकिन लंबी दूरी की निर्बाध आवाजाही अब भी एक चुनौती बनी हुई है।