ऋण और जमा वृद्धि के बीच व्यापक अंतर इनके संबंधित आधार (बेस इफेक्ट) की वजह से हैं और उच्च ऋण वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांत को दर्शाती है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट (BFSI Summit) में आज ये बातें कहीं। कार्यक्रम के दौरान बातचीत में दास ने कहा, ‘जिस तरह पिछले वर्ष के कम आधार के कारण ऋण वृद्धि बहुत अधिक दिखती है, उसी तरह पिछले वर्षों के आधार प्रभाव की वजह से जमा वृद्धि भी काफी कम नजर आ रही है।’
आरबीआई द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार 2 दिसंबर तक बैंकों की ऋण वृद्धि 17.5 फीसदी रही जबकि इस दौरान जमा में 9.9 फीसदी का इजाफा हुआ। एक साल पहले इस अवधि में ऋण वृद्धि 7.3 फीसदी और जमा वृद्धि 9.4 फीसदी थी। दास ने कहा कि बीते एक साल में कुल ऋण वृद्धि 19 लाख करोड़ रुपये रही जबकि जमा वृद्धि 17.4 लाख करोड़ रुपये रही। उन्होंने कहा, ‘इसलिए इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए मेरा मानना है कि मौजूदा समय में ऋण वृद्धि को बेहतर कहा जा सकता है लेकिन उत्साहजनक स्तर से यह अभी काफी दूर है।’
दास के अनुसार वृद्धि के आंकड़े पिछले दो वर्षों में टाली गई ऋण की मांग अब बढ़ने तथा अर्थव्यवस्था के अंतर्निहित बुनियादी सिद्धांतों को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि ताजा ऋण की भारित औसत उधारी दर करीब 117 आधार अंक बढ़ी है जबकि औसत जमा दर में 150 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि जमा दरों में तेजी आ रही है और इसमें थोड़ा और इजाफा हो सकता है।’
मुद्रास्फीति के अनुमान पर चर्चा करते हुए दास ने कहा कि अचानक आए किसी घटनाक्रम के मद्देनजर आरबीआई नियमित तौर पर कीमत का अनुमान लगाने के अपने मॉडल में सुधार करता रहता है। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति के दृष्टिकोण से आंकड़ों के बजाय मुद्रास्फीति की दिशा और गति महत्त्वपूर्ण थी। उनके अनुसार मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति की दिशा यानी मुद्रास्फीति में तेजी या कमी की रफ्तार पर आधारित है।
दिसंबर की मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रीपो दर 35 आधार अंक बढ़ा दी थी। 2022 में अब तक नीतिगत दर में कुल 225 आधार अंक का इजाफा किया जा चुका है। नवंबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति घटकर 5.88 फीसदी रही। यह 2022 में पहला मौका है जब खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के सहज दायरे 2 से 6 फीसदी के अंदर रही। इसके बावजूद खुदरा मुद्रास्फीति लगातार 38 महीने से आरबीआई के 4 फीसदी के लक्षित दायरे से ऊपर बनी हुई है।
आरबीआई गवर्नर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन में विश्वास व्यक्त करते हुए उल्लेख किया कि आरबीआई द्वारा उपयोग किए जाने वाले कई उच्च आवृत्ति के संकेतक ‘ग्रीन जोन’ यानी वृद्धि का संकेत दे रहे थे। हालांकि उन्होंने वैश्विक आर्थिक मंदी के संभावित प्रभाव पर चिंता व्यक्त की क्योंकि इससे देश का निर्यात प्रभावित हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप जीडीपी वृद्धि पर भी असर पड़ सकता है।
जुलाई-सितंबर तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 6.3 फीसदी रही जो इससे पिछली तिमाही के 13.5 फीसदी वृद्धि से कम है। इस महीने की शुरुआत में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपने विकास दर अनुमान को 7 फीसदी से मामूली घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया था।
चुनावी साल में मौद्रिक नीति निर्माण का काम चुनौतीपूर्ण रहने के बारे में पूछे जाने पर दास ने कहा कि चुनाव का मौद्रिक नीति पर कोई असर नहीं पड़ता है। 2024 के मध्य में देश में आम चुनाव होने हैं। अगले साल का आम बजट चुनाव से पहले का अंतिम संपूर्ण बजट होगा। आम तौर पर सरकार चुनाव से पहले लोकलुभावन बजट पेश करती हैं जो केंद्रीय बैंक के दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर तब जब मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के उच्च सहज स्तर के करीब हो।
दास ने कहा कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सरकार भी गंभीर प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा, ‘… यह तथ्य है कि अगले साल चुनाव होगा लेकिन भारत में हर साल चुनाव होता है, कई राज्यों में भी चुनाव की तैयारी चल रही है। इसलिए जहां तक मौद्रिक नीति की बात है तो चुनाव का इस पर कोई असर नहीं पड़ता है। मौद्रिक नीति के तहत वही किया जाएगा जो अर्थव्यवस्था के सर्वोत्तम हित में होगा।’
दास ने कहा कि पिछले तीन-चार साल के दौरान आरबीआई ने बैंकिंग क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए अपनी निगरानी के दायरे में उल्लेखनीय वृद्धि की है। उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों में बैंक विफल हो सकते हैं लेकिन भारत में ऐसी घटनाएं कतई बर्दाश्त नहीं की जाती हैं। दास ने कहा, ‘अमेरिका में बैंक विफल हो रहे हैं और यह कोई असामान्य बात नहीं है। बैंक विफल होने के तमाम मामले हैं, ऐसा हो रहा है और इसे सब जानते हैं। भारत में बैंकों की विफलता को जनता या कोई भी बर्दाश्त नहीं करता है।’
आरबीआई के गवर्नर ने कहा, ‘हर कोई आरबीआई की ओर देखता है। इसलिए नियामक एवं बैंकिंग व्यवस्था के पर्यवेक्षक के तौर पर यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि बैंकिंग प्रणाली स्थिर, मजबूत और भारतीय अर्थव्यवस्था की उभरती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार रहे।’ दास ने ऐसे तमाम उपायों के बारे में बताया जिनके जरिये केंद्रीय बैंक ने अपने नियामकीय दृष्टिकोण को बेहतर करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि प्रक्रिया रचनात्मक और संवादों पर आधारित हो। दास ने कहा, ‘अब हम बैंकों के बिजनेस मॉडल को देख रहे हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम बिना रेहन वाले खुदरा ऋण पोर्टफोलियो पर गौर करते हैं और पाते हैं कि उसमें तेजी से वृद्धि हो रही है या बैंकों के कुल उधारी पोर्टफोलियो में उसकी हिस्सेदारी बढ़ी है तो हम हस्तक्षेप करने के बजाय तुरंत बैंक को अपनी चिंताओं से अवगत कराते हैं।’
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भारत को मिली जी20 की अध्यक्षता के बारे में दास ने बहुपक्षवाद के प्रभाव और भरोसे को बहाल करने की आवश्यकता पर जोर दिया। जब बहुपक्षीय सहयोग पर नए सिरे से गौर करने की बात आती है तो भारत की स्थित अनोखी है जहां उसके अपने दर्शन की झलक मिलती है। दास ने कहा, ‘एक समूह के तौर पर जी20 के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बहुपक्षवाद के प्रभाव और भरोसे को बहाल किया जाए। मैं समझता हूं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुपक्षवाद अपना प्रभाव खोता हुआ दिखा है।’ आरबीआई ने निजी क्रिप्टोकरेंसी पर अपना रुख दोहराया। दास ने उन परिसंपत्तियों को बिना किसी सुरक्षा के कारण वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा बताया।
दास ने कहा, ‘मैं अपने रुख पर कायम हूं कि इस पर रोक लगनी चाहिए। हालांकि इस मुद्दे पर अन्य देशों के विचार अलग हो सकते हैं लेकिन हमारा नजरिया स्पष्ट है कि इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यदि आप इस विनियमित करते हैं और इसे फलने-फूलने का अवसर देते हैं तो मेरी बात याद रखिये कि अगला वित्तीय संकट निजी क्रिप्टोकरेंसी से आएगा।’