पिछले साल जब देश ने वैश्विक महामारी कोविड-19 से जूझना शुरू किया था, तब आंध्र प्रदेश की बिजली पारेषण कंपनी-ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ऑफ आंध्र प्रदेश (एपीट्रांसको) ने राज्य में बिजली की बढ़ती लागत कम करने के लिए एक नया तरीका अपनाया था।
बिजली क्षेत्र की लागत में 80 प्रतिशत अंश खुले बाजार से बिजली खरीद का रहता है, इसलिए लागत नियंत्रित करने के लिए अगले दिन की बिजली मांग की सटीक भविष्यवाणी करना महत्त्वपूर्ण होता है। पिछले 20 साल से एपीट्रांसको अगले दिन की बिजली मांग का यह पूर्वानुमान लगाने के लिए मैनुअल तरीकों पर निर्भर थी। इस तरीके में लोड डिस्पैच परिचालक सत्र, मौसम और छुट्टियों जैसे कारकों के आधार पर मांग का अनुमान लगाया करते थे। काफी कुछ उसी दिन की मांग पर निर्भर रहता था। आंध्र प्रदेश के ऊर्जा सचिव श्रीकांत नागुलापल्ली बताते हैं ‘मान लीजिए किसी खास दिन शाम 6 बजे 9,000 मेगावॉट की मांग थी। अधिकतम 90 प्रतिशत की सटीकता के साथ अगले दिन यह मांग उसी मात्रा में रहने की भविष्यवाणी की जा सकती है।’
आंध्र प्रदेश के स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर (एसएलडीसी) के अधिकारियों को पता था कि कोई डिजिटल प्रारूप बिजली खपत के पूर्वानुमान की इस सटीकता को बढ़ा सकता है, जिससे खुले बाजार से बिजली खरीद की लागत कम हो सकती है और शुल्क में कमी आ सकती है। बिजली की मांग का पूर्वानुमान करना एसएलडीसी के लिए एक बड़ा काम होता है, जिसे बिजली की खरीद या बिक्री के लिए हर रोज तैयार करना पड़ता है। लोड और मांग बेमेल होने पर राष्ट्रीय ग्रिड से अधिक या कम बिजली ली जाती है, जिससे भारी जुर्माना लगता है और साथ ही साथ कभी-कभी बिजली आपूर्ति भी रुक जाती है। आंध्र प्रदेश में एसएलडीसी ने इस समस्या को हल करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने का फैसला किया। उन्होंने राज्य में उन सभी कारकों की सूची बनानी शुरू की, जिनसे राज्य में ऊर्जा की खपत प्रभावित होती, जैसे सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, वर्षा और आद्र्रता। कृत्रिम मेधा (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) के आधार पर पूर्वानुमान बताने वाला प्रारूप तैयार करने के लिए इन सभी मापदंडों पर पिछले तीन सालों का डेटा जुटाया गया जिसमें लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद अनलॉकिंग के दौरान मांग का परिदृश्य भी शामिल था। यह प्रारूप निर्मित करने के लिए गूगल के ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म – टेंसओरफ्लो का इस्तेमाल किया गया था, जो हर 15 मिनट बाद मेगावॉट में अगले दिन की बिजली मांग का स्पष्ट अनुमान देता था।
अगले दिन का पूर्वानुमान करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि उन्हें इस बात का आभास होता है कि कोयला संयंत्रों में कितनी बिजली पैदा की जानी चाहिए तथा खुले बाजार के जरिये कितनी बिजली खरीदी जानी चाहिए। 24 घंटे का यह पूर्वानुमान इसलिए भी महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि दिन को 96 खंडों के साथ 15 मिनट वाली अवधि में विभाजित किया जाता है।
अगर यह पूर्वानुमान प्रत्येक खंड के लिए सटीक रूप से किया जाता है, जैसा कि इस एआई-एमएल प्रारूप द्वारा किया जाता है, तो अगले दिन के लिए आवश्यक बिजली की सही मात्रा प्रत्येक जेनरेटिंग स्टेशन से हर 15 मिनट में भेजी जा सकती है, जिससे बिजली खरीद की लागत कम होती है और अपव्यय में कमी आती है। नागुलापल्ली बताते हैं ‘अगर पूर्वानुमान का पता नहीं हो, तो हमारी योजना गड़बड़ा जाएगी और लागत बढ़ जाएगी।’ एपीट्रांसको पिछले साल से इस प्रारूप के कई संस्करण लेकर आई है। सर्वाधिक उन्नत प्रारूप डोव 6 है, जिसकी सटीकता 97 प्रतिशत है। इसके परिणामस्वरूप सालाना 30,000 करोड़ रुपये की बिजली खपत करने वाला यह राज्य बिजली की सही मात्रा में खरीद और पारेषण करते हुए हर रोज दो लाख रुपये से तीन करोड़ रुपये की बचत कर सकता है। नागुलापल्ली कहते हैं कि राज्य को एक दिन पहले के अन्य पूर्वानुमानों के लिए इस प्रारूप का उपयोग करने में सक्षम करने पर भी काम चल रहा है, जिसमें पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और बाजार की कीमतों के पूर्वानुमान के लिए भी इसका इस्तेमाल शामिल है। चूंकि राज्य की 25 प्रतिशत बिजली मांग नवीकरणीय स्रोतों से पूरी होती है, इसलिए पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का पूर्वानुमान बताने वाला प्रारूप जरूरी हो जाता है। नागुलापल्ली का अनुमान है कि इस प्रारूप का इस्तेमाल कीमतों के पूर्वानुमान के लिए भी किया जाएगा, जो बिजली उत्पन्न और वितरण करने वाली कंपनियों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि वे बोली लगाने की अपनी रणनीतियां तैयार करने के लिए इस जानकारी पर निर्भर होती हैं। अगर किसी बिजली उत्पादक के पास कीमतों का सटीक पूर्वानुमान हो, तो वह अपना लाभ अधिकतम करने के लिए बोली लगाने की रणनीति तैयार कर सकती है।