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कोलकाता में बीते 9 अगस्त को जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और उनकी हत्या पर विरोध प्रदर्शनों एवं सुप्रीम कोर्ट की ओर से कड़ी आलोचना का सामना कर रही ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार पिछले कुछ सप्ताह से अपराधियों को गिरफ्तार करने और पीड़ित परिवार को शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डाल रही है।
राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने शुरुआत में यह दिखाने का प्रयास किया कि वह मामले की जांच सीबीआई को सौंपे जाने का स्वागत करती है, लेकिन राज्य सरकार ने बीते मंगलवार को राजनीतिक चाल चलते हुए अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक 2024 विधान सभा में पेश किया, जिसे सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया।
इस विधेयक में दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म, दुष्कर्म के बाद मौत अथवा निर्जीव अवस्था में पहुंच जाने के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। विधेयक में दुष्कर्म जैसे गंभीर मामलों की जांच पूरी करने के लिए एफआईआर दर्ज होने के बाद से 21 दिन की समय सीमा निर्धारित की गई है। पहले दो माह में रिपोर्ट सौंपने का प्रावधान था। इसके अलावा पहले चार्जशीट सौंपे जाने के बाद 30 दिन में ट्रायल पूरा करने की अनिवार्यता रख दी गई है। पहले यह 60 दिन थी।
विधेयक में महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की जांच के लिए जिला स्तर पर एसपी के दिशानिर्देशन में ‘अपराजिता’ स्पेशल टास्क फोर्स गठित करने का भी प्रावधान किया गया है। जांच टीम का नेतृत्व महिला पुलिस अधिकारी करेंगी। एसपी रैंक की अधिकारी केस डायरी में विलंब का उचित कारण दर्ज किए जाने के बाद जांच का समय 21 दिन के बाद अतिरिक्त 15 दिन और बढ़ा सकती हैं।
इस विधेयक में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम में संशोधन का भी प्रस्ताव है, ताकि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों के लिए शीघ्र जांच और ट्रायल के लिए ढांचा तैयार करने के साथ अपराधियों के लिए सजा भी बढ़ाई जा सके।
विधान सभा में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी से अनुरोध किया कि वे राज्यपाल सीवी आनंद बोस से अतिशीघ्र इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने एवं राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजने में सहयोग करें। संविधान के अनुच्छेद 254(2) के अनुसार राज्य विधान सभा द्वारा बनाया गया समवर्ती सूची में शामिल कोई भी कानून यदि संसद द्वारा पहले बनाए गए कानून से विरोधाभास पैदा करता है तो उसे लागू करने से बचा जाएगा। हां, यदि उस कानून को राष्ट्रपति की अनुमति मिल जाती हो तो वह संबंधित राज्य में लागू किया जा सकता है।
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्प्ताल में 31 वर्षीय डॉक्टर की दुष्कर्म के बाद हत्या के बाद बवाल मच गया था और न केवल सिविल सोसायटी और डॉक्टरों ने पश्चिम बंगाल के साथ-साथ देशभर में प्रदर्शन किए, बल्कि राज्य में कांग्रेस, वाम दलों और भाजपा ने भी न्याय की मांग करते हुए आवाज बुलंद की।
कोलकाता की इस डॉक्टर के साथ हुए जघन्य अपराध के विरोध में प्रदर्शनों ने वर्ष 2012 में दिल्ली में निर्भया मामले में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों की याद ताजा कर दी। उस समय हुए विरोध प्रदर्शनों ने तत्कालीन संप्रग सरकार को न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति बनाने को मजबूर कर दिया था, जिसने आपराधिक कानून में संशोधन की सिफारिश की थी, ताकि यौन उत्पीड़न और महिलाओं के खिलाफ यौन हमलों से जुड़े मामलों की सुनवाई तेजी से पूरी एवं कड़ी सजा का प्रावधान किया जा सके।
कोलकाता की रहने वाली राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी के अनुसार शहरी मतदाता खासकर शिक्षित मध्य वर्ग ममता बनर्जी और उनकी सरकार से खासा नाराज है। हालांकि सिविल सोसायटी, पूजा समितियों एवं फुटबॉल क्लाबों द्वारा किए विरोध प्रदर्शन अभी गैर राजनीतिक ही रहे हैं।
इन विरोध प्रदर्शनों के कारण ममता बनर्जी की सरकार पर दबाव बना, लेकिन वाम दलों एवं भाजपा में अभी ऐसा कोई नेता दिखाई नहीं देता जो इस नाराजगी को भुना सके और व्यापक नेतृत्व देकर बंगाल की मुख्यमंत्री के मुकाबले खड़ा हो सके। मुखर्जी कहती हैं, ‘यह कहना अभी मुश्किल है कि इन विरोध प्रदर्शनों का राज्य की राजनीति या चुनावों पर कोई खास असर पड़ेगा। राज्य में 2026 के अप्रैल-मई में विधान सभा चुनाव होने हैं। बनर्जी को विधान सभा में बहुमत प्राप्त है और हालात को अपने पक्ष में करने के लिए उनके पास समय है। ‘
इस मामले में पुलिस ने एक गिरफ्तारी की थी, इसके बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया, लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसी इसके बाद एक भी अतिरिक्त अपराधी को गिरफ्तार नहीं कर सकी, जिससे ममता पर दबाव काफी कम हो गया। अब प्रदर्शनकारी डॉक्टरों पर हर गुजरते दिन काम पर लौटने के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है।