किसी भी आंदोलन के दौरान सबसे आसान निशाना रेलवे होता है। आंदोलन का आगाज होते ही आंदोलकारी रेलवे लाइन एवं रेलगाड़ी की ओर दौड़ पड़ते हैं।
जमकर तोड़फोड़ की जाती है। लेकिन रेलवे की तरफ से उन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ शायद ही कभी गंभीर कार्रवाई की जाती है। पिछले चार-पांच महीनों के दौरान हुए आंदोलन के कारण रेल को कम से कम 30 करोड़ रुपये तक की आर्थिक घाटा उठाना पड़ा है। चाहे राजस्थान हो या पंजाब या फिर पश्चिम बंगाल सभी जगहों पर आंदोलनकारियों ने सबसे पहले रेलवे पर ही धावा बोला। अब बिहार में रेलवे निशाने पर हैं।
राजस्थान
गुर्जर आंदोलन इस साल रेलवे को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे बड़ा आंदोलन रहा। मई महीने के दौरान रेलवे को 20 करोड़ रुपये नुकसान उठाना पड़ा। रेलवे लाइन को उखाड़ देने के कारण इस दौरान 70 एक्सप्रेस ट्रेन एवं 62 पैसेंजर ट्रेनों के रूट में बदलाव करना पड़ा।
पंजाब
जून के आखिरी सप्ताह में पंजाब में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख की गिरफ्तारी की मांग को लेकर सिख संगठनों ने रेल रोको आंदोलन चलाया। नतीजतन लंबी दूरी के 11 से अधिक ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। दो दिनों तक पंजाब की रेल यात्रा प्रभावित रही। किसी भी लंबी दूरी की गाड़ी के रद्द होने पर एक तरफ से मोटे तौर पर 4.5-5 लाख रुपये का नुकसान होता है।
दार्जिलिंग
जुलाई महीने में दार्जिलिंग में गोरखालैंड समर्थकों ने आंदोलन किया। पर्यटकों को लुभाने वाली दार्जिलिंग की आकर्षक ट्रेन लगभग एक माह तक बंद रही। इस ट्रेन से पर्यटन के मौसम में रोजाना लाख रुपये तक कमाई होती है।
बिहार
बिहार में दो दिनों से ट्रेन का संचालन बाधित है। दर्जन भर ट्रेन में तोड़फोड़ की गयी हैं तो कई में आग भी लगा दी गयी। दो दिनों के दौरान 50 से अधिक ट्रेन की सेवाएं बाधित हुईं। अगर शुक्रवार को भी बिहार के गुस्साए छात्रों का आंदोलन जारी रहा तो यह बाधित ट्रेनों की संख्या और बड़ जाएंगी। इसके साथ ही रेलवे को होने वाला आर्थिक नुकसान भी बढ़ता जाएगा।
आंदोलनकारियों द्वारा रेलवे को ही निशाना बनाए जाने के बारे में पूछे जाने पर रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी इस सवाल से बचते नजर आए।