आप वैश्विक महामारी के दौरान भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन का कैसे मूल्यांकन करते हैं?
सरकार ने प्रमुख भूमिका निभाई और टीकाकरण अभियान प्रशंसनीय रहा। जिस तरह सरकारी अस्पताल भी इस चुनौती के लिए तैयार थे, वह उल्लेखनीय है।
वैश्विक महामारी के दौरान भारत में सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल, दोनों ने ही काफी अच्छा काम किया। कोविड से निपटने में भारत दुनिया में सबसे आगे रहा।
अपोलो में हमने 4,000 हॉस्पिटल बेड और 5,000 होटल बेड खोले ताकि सभी बीमार लोगों को अस्पतालों में न जाना पड़े। साथ ही हम अपोलो 24×7 सेवा लेकर आए, जिसके जरिये डॉक्टरों ने पूरे दिन टेली-परामर्श प्रदान किया।
अपोलो प्रोहेल्थ सह-रुग्णता (co-morbidities) के लिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य जांच कार्यक्रम है। हमारे पास इसे पूरे देश में विकसित करने की बड़ी योजना है।
वर्ष 2030 तक आप अपोलो को कहां देखना चाहते हैं?
आज तकरीबन 70 संस्थान हैं। अगले तीन सालों में हम 10 से 15 और संस्थान जोड़ने तथा वर्ष 2030 तक लगभग 100 अस्पतालों तक पहुंचने की योजना बना रहे हैं।
हम विदेश भी जाना चाहेंगे। अभी हम विदेशों में केवल सुविधाओं का प्रबंधन ही कर रहे हैं। हम संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन और इंडोनेशिया में अपनी सुविधाएं शुरू करने के लिए संभावित साझेदारों के साथ शुरुआती बातचीत कर रहे हैं।
हम अफ्रीका पर भी विचार कर सकते हैं। हम क्लीनिक खोलने के लिए ब्रिटेन पर भी विचार करेंगे। धन जुटाने का नजरिया आज कोई बड़ी बात नहीं है। उन्हें अपोलो पर भरोसा है। सही मौके आने पर हम इस पर विचार करेंगे। हम सह-निवेश के लिए लोगों से बात कर रहे हैं।
आप भारत में चिकित्सा पर्यटन के परिदृश्य का किस तरह आकलन करते हैं?
गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा में इजाफे के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में अधिक जागरूकता है। मैंने पिछले साल प्रधानमंत्री से ‘हील इन इंडिया’ कार्यक्रम के जरिये भारत को वैश्विक स्वास्थ्य सेवा गंतव्य घोषित करने का आग्रह किया था।
सरकार इस पर काम कर रही है। आज भारत किफायत के साथ वैश्विक स्तर पर समान स्तर की देखभाल प्रदान कर सकता है। विभिन्न देशों से लोग हमारे पास आ रहे हैं, लेकिन पश्चिम से बड़ी संख्या में लोग नहीं आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि भारतीय स्वास्थ्य सेवा सस्ती है, लागत प्रभावी नहीं है।
पश्चिम में उनकी प्रतीक्षा अवधि दो से तीन साल है तथा उनके पास डॉक्टरों और नर्सों की कमी है। मैंने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया है कि हमें वैश्विक कार्यबल प्रदान करने की दिशा में काम करना चाहिए। इस दशक के आखिर तक डॉक्टरों, नर्सों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों की 1.5 से 1.8 करोड़ तक की कमी होगी।
मुझे खुशी है कि सरकार और ज्यादा प्रशिक्षण संस्थान खोलकर इसे उपलब्ध करा रही है। वर्ष 2030 तक अपोलो जैसे निजी संगठन और अधिक चिकित्सा संस्थान खोलेंगे।
हमें देखना चाहिए कि हम दुनिया के लिए उस अंतर को कैसे पूरा कर सकते हैं। उस अंतर को भरने से आप देखेंगे कि चिकित्सा शिक्षा वही कर रही है, जो आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) ने विदेशी मुद्रा अर्जित करने और रोजगार पैदा करने के लिहाज से देश के लिए किया है।
इस समय तकनीक पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है। यह कहां जा रही है?
जब एनसीडी (गैर-संचारी रोग) से बड़ा खतरा होता है, तो कृत्रिम मेधा (एआई), मशीन इंटेलिजेंस (एमआई), रोबोटिक्स और जीनोमिक्स जैसी नई तकनीकों के बारे में जागरूकता भी होती है। अपोलो ने पिछले चार से पांच साल में यहीं ध्यान केंद्रित किया है।
हम यह पता लगा रहे हैं कि हम अपनी प्रणाली का कैसे निर्माण करें। एआई और एमएल के जरिये मरीज की देखभाल में काफी सुधार हुआ है। हम पहले ही 10,000 रोबोटिक सर्जरी कर चुके हैं।
वैकल्पिक चिकित्सा के संबंध में आपकी क्या राय है?
आज भी ऑटोइम्यून रोगों के लिए एलोपैथिक प्रणाली में कोई उपचार नहीं है, लेकिन आयुर्वेद में है। आयुर्वेद पर और शोध की जरूरत है, जो सरकार कर रही है।