आदिवासियों को लुभाने की जुगत में भाजपा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 11:08 PM IST

मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन किया। यह आयोजन नागपुर के लोकप्रिय आदिवासी व्यक्तित्व बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया। दरअसल सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कोशिश इस आयोजन के जरिये प्रदेश के 1.5 करोड़ आदिवासियों को संबोधित करने की थी जो प्रदेश की करीब 7.2 करोड़ की आबादी में 21 फीसदी के हिस्सेदार हैं। सन 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतों के छिटकने से पार्टी चिंतित हो गई है और अब 2023 के चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं।
जनजातीय गौरव दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि अतीत की कांग्रेस सरकारों ने हमेशा आदिवासियों के हितों की अनदेखी की है। मध्य प्रदेश में कुल 84 विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां आदिवासी मतदाताओं का दबदबा है। भाजपा को 2018 में इनमें से केवल 34 पर जीत मिली जबकि 2013 में पार्टी को 59 सीट पर जीत मिली थी।
घोषणाओं की बौछार
बीते कुछ महीनों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत भाजपा के कई बड़े नेताओं ने आदिवासियों के हित में अनेक घोषणाएं कीं। आदिवासी परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत घर-घर राशन पहुंचाने के लिए ‘राशन आपके द्वार’ योजना शुरू की गई। चौहान ने कहा कि प्रदेश के आदिवासियों को सामुदायिक वनों पर अधिकार दिया जाएगा जहां वे अपना जंगल तैयार करके उसकी वनोपज के मालिक होंगे। चौहान ने यह भी कहा कि राज्य सरकार एक नई आबकारी नीति पर विचार कर रही है जिसके तहत आदिवासी समुदायों को पारंपरिक शराब बनाने की छूट होगी और जिसे ‘हेरिटेज शराब’ के नाम से बेचा जा सकेगा। इसके अतिरिक्त आदिवासियों पर से छोटे मोटे कानूनी मामले समाप्त करने और घर बनाने के लिए नि:शुल्क रेत देने जैसी घोषणाएं भी की गईं।

आदिवासी नायकों के नाम पर जगहों के नाम
आदिवासियों तक पहुंच बनाने के अपने एजेंडे के तहत ही सरकार ने भोपाल के हबीबगंज (देश का पहला निजी तौर पर विकसित रेलवे स्टेशन) स्टेशन का नाम बदलकर भोपाल की अंतिम आदिवासी (गोंड) शासक रानी कमलापति के नाम पर कर दिया गया। चौहान ने पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर टंट्या भील रेलवे स्टेशन करने तथा इंदौर के एक प्रमुख चौराहे का नाम बदलकर टंट्या भील चौराहा करने की भी घोषणा की।
राजनीतिक विश्लेषक राकेश दीक्षित कहते हैं कि ऐसे कदम उठाकर पार्टी आदिवासी मतदाताओं को दोबारा अपने साथ जोडऩा चाहती है। पार्टी 2013 तक उन्हें अपना वोटबैंक मानती थी लेकिन 2018 के चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 30 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल करके भाजपा को स्तब्ध कर दिया था। उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने 2023 के विधानसभा चुनावों की तैयारी गंभीरता से शुरू कर दी है उसे इन कदमों से समझा जा सकता है।’
एक भाजपा नेता ने कहा कि कुछ माह पहले मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाने की आशंका थी। उन्होंने कहा, ‘पार्टी ने बहुत कम अंतराल पर चार मुख्यमंत्री बदले और माना जा रहा था कि अगली बारी चौहान की है। बहरहाल, चौहान शायद इसलिए बच गए क्योंकि वह राज्य में अब भी सबसे लोकप्रिय पार्टी नेता हैं और पंचायत चुनाव, नगर निकाय और 2023 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए उनका नेतृत्व जरूरी है।’
बढ़ती जागरुकता
राज्य की राजनीति में इस समय आदिवासी समुदाय केंद्रीय भूमिका में है। जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) के रणनीतिकार और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय ने कहा कि चौहान आदिवासियों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे इसलिए भाजपा अब मोदी की छवि के सहारे उन्हें लुभाना चाहती है। राय ने कहा, ‘यही कारण है कि पार्टी ने जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन किया और मोदी विशेष रूप से आदिवासियों के लिए योजनाओं की घोषणा करने आए। लेकिन अब आदिवासी युवा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं। मध्य प्रदेश में 89 आदिवासी ब्लॉक हैं। यहां वन अधिकार अधिनियम का ठीक से क्रियान्वयन नहीं हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन और बेरोजगारी यहां आदिवासियों के बहुत बड़े मसले हैं। सन 2018 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी मध्य प्रदेश के युवाओं ने भाजपा के खिलाफ मतदान किया था जिसके चलते उसे सत्ता से बाहर जाना पड़ा। अब आरएसएस ने उन्हें लुभाने के लिए मोदी को आगे किया है।’ इस बीच कांग्रेस ने भी आदिवासियों का समर्थन बनाए रखने के लिए प्रयास किए हैं। पार्टी ने हाल ही में आदिवासी अधिकार यात्रा का आयोजन किया था। दोनों दलों की इन कोशिशों से यह स्पष्ट है कि आदिवासी समुदाय प्रदेश में विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।

First Published : December 1, 2021 | 11:42 PM IST