कभी-कभी मैं सारिणी बनाकर उसे कुछ समय तक देखता हूं ताकि उसके प्रमुख बिंदु उभरकर आ सकें। अगर एक तस्वीर हजार शब्दों को बयां करती है तो एक बढिय़ा सारिणी भी कुछ सौ शब्दों की एक कहानी कह देती है जिसे पाठकों से साझा भी किया जा सकता है। यह उस तरह का लेख है जिसमें सारिणी ही पूरी कहानी कह देती है। इसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की तरफ से अप्रैल 2021 में जारी नवीनतम विश्व आर्थिक परिदृश्य और 2021 एवं 2022 में आर्थिक वृद्धि के पूर्वानुमानों का जिक्र है। इन आंकड़ों को देखने का मेरा नजरिया महामारी आपदा के सापेक्षिक विजेताओं एवं पराजितों की पहचान करने का रहा है। मैं कहना चाहता हूं कि यह चर्चा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि एवं स्तरों तक ही सीमित है। कोविड संकट के तमाम दुष्परिणाम देखे जा रहे हैं जिनमें रोजगार, आमदनी, गरीबी एवं स्वास्थ्य पहलू शामिल हैं।
समग्रता में देखें तो कोविड संकट में कोई भी जीता नहीं है, हर कोई हारा ही है। वैश्विक जीडीपी वर्ष 2020 में करीब चार फीसदी गिरी और वर्ष 2021 में मजबूत रिकवरी के बावजूद इसके 2019 के स्तर से सिर्फ 2 फीसदी ही अधिक होने की संभावना नजर आ रही है। अगर कोविड की चुनौती न होती तब भी वैश्विक आउटपुट पिछले दो वर्षों की तुलना में शायद 6-7 फीसदी ज्यादा होता। यानी वैश्विक जीडीपी में 4-5 फीसदी का ऐसा नुकसान हुआ है जिसे बहाल ही नहीं किया जा सकेगा। वर्ष 2020 में हरेक भौगोलिक क्षेत्र और देश को ऋणात्मक वृद्धि का सामना करना पड़ा जिसका अपवाद सिर्फ चीन ही रहा। वैसे चीन को भी पिछले साल वृद्धि में सुस्ती से गुजरना पड़ा।
वर्ष 2020 में कोविड का आर्थिक प्रभाव दुनिया भर में अलग-अलग रहा। आय स्तर, स्वास्थ्य प्रणाली, नीतिगत प्रतिक्रिया और महामारी के भौगोलिक प्रसार जैसी वजहों ने महामारी के असर को भी प्रभावित किया। सारिणी के पहले कॉलम से पता चलता है कि यूरोप एवं लातिन अमेरिका में आउटपुट पर सबसे ज्यादा असर पड़ा। यूरोप में आउटपुट छह फीसदी कम हो गया जबकि लातिन अमेरिकी क्षेत्र में सात फीसदी की गिरावट आई। एशिया के आउटपुट में सिर्फ एक फीसदी की गिरावट आने के पीछे चीन की विशाल अर्थव्यवस्था की धनात्मक वृद्धि है। सब-सहारा अफ्रीकी देशों में महज 2 फीसदी की आउटपुट क्षति इस लिहाज से थोड़ा अचंभित करती है कि वहां पर आय कम है, गृहयुद्धों की मार है और स्वास्थ्य व्यवस्था भी खस्ताहाल है। अगर देशों के हिसाब से देखें तो वर्ष 2020 में सबसे ज्यादा (10 फीसदी) आउटपुट नुकसान ब्रिटेन को झेलना पड़ा। उसके बाद मैक्सिको ( 8.4 फीसदी), भारत (7.3 फीसदी) और दक्षिण अफ्रीका (7 फीसदी) का स्थान आता है। वस्तुओं एवं सेवाओं के वैश्विक व्यापार में भी पिछले साल 8 फीसदी से अधिक गिरावट दर्ज की गई। अगर 2020 में लगे शुरुआती आर्थिक झटके तमाम अर्थव्यवस्थाओं में अलग-अलग रहे तो 2021 में आर्थिक रिकवरी की हालत भी अलहदा है। सारिणी के दूसरे एवं चौथे कॉलम यही बताते हैं। विश्व अर्थव्यवस्था में इस साल बेहतरीन वृद्धि होने की उम्मीद है जिसके पीछे अमेरिका एवं यूरोपीय देशों में सशक्त मौद्रिक एवं राजकोषीय प्रोत्साहनों का हाथ रहेगा। इन देशों में बड़े पैमाने पर कोविड टीकाकरण अभियान असरदार ढंग से जारी है। इसके अलावा चीन में वृद्धि के 8 फीसदी से भी अधिक रहने और अफ्रीका एवं अधिकांश एशिया में अच्छी रिकवरी होने से भी विश्व अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलेगा। वैश्विक जीडीपी के इस साल करीब 6 फीसदी की दर से बढऩे का अनुमान है जबकि वैश्विक व्यापार 8 फीसदी दर से बढ़ सकता है। वर्ष 2020 में सिर्फ 3.5 फीसदी की दर से बढ़ी अमेरिकी अर्थव्यवस्था के कई वर्र्ष बाद इस साल 6 फीसदी की दर हासिल करने की उम्मीद है। दूसरी तरफ पिछले साल गहरी खाई में जा गिरी यूरोप की वृद्धि एक हद तक शांत रह सकती है। लातिन अमेरिका में भी ऐसी ही वृद्धि होने की संभावना है जबकि विकासशील एशिया में वृद्धि दर 8 फीसदी से अधिक रह सकती है। एशिया में सुधार के पीछे चीन की मजबूत स्थिति और भारत में भी एक हद तक अच्छी रिकवरी होने के अलावा आसियान-5 (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड एवं वियतनाम) के भी अच्छे प्रदर्शन का हाथ रहेगा। अफ्रीका का जीडीपी पिछले साल हुई गिरावट से कहीं ज्यादा बढ़ेगा।
इस असमान विकास का नतीजा यह होगा कि वर्ष 2021 में अमेरिका एवं अफ्रीका में जीडीपी स्तर 2019 से थोड़ा अधिक होगा जबकि विकासशील एशिया में इसका स्तर खासा ज्यादा होगा। इसकी तुलना में यूरोप एवं लातिन अमेरिका दोनों महाद्वीपों में जीडीपी 2019 के स्तर से कम ही रहेगी। ब्रिटेन, मैक्सिको एवं दक्षिण अफ्रीका में इस साल जीडीपी स्तर सुधार के बावजूद 2019 से कम ही रहने के आसार हैं। इस तरह ये देश कोविड संकट के स्पष्ट ‘पराजित’ हैं। यह बात यूरोपीय संघ में शामिल कई देशों के लिए भी सही साबित होगी। दूसरी तरफ, जापान, ब्राजील, भारत, आसियान-5 एवं नाइजीरिया के 2019 का वृद्धि स्तर एक हद तक हासिल कर लेने की संभावना है। वैसे सबसे बड़ा विजेता तो चीन होगा जिसकी वृद्धि दर 2019 की तुलना में 11-12 फीसदी ज्यादा रह सकती है। यह वाकई में बड़ी विडंबना होगी कि कोविड-19 महामारी ने जिस देश में जन्म लिया, उसी देश के सबसे ज्यादा लाभ में रहने की संभावना है।
सारिणी का अंतिम कॉलम दिखाता है कि 2019 की तुलना में 2022 में जीडीपी अनुमान किस स्तर पर होगा? अगर 2021 एवं 2022 के लिए जीडीपी वृद्धि पूर्वानुमान सही साबित होते हैं (जो आईएमएफ के मामले में अक्सर नहीं होता है) तो चीन एक बार फिर विजेता की हैसियत में होगा जिसकी जीडीपी 2019 में तुलना में करीब 17 फीसदी ज्यादा रहने का अनुमान है। कोई और देश इस असाधारण उछाल के आसपास भी पहुंचता हुआ नहीं दिख रहा। उसके बाद अमेरिका और आसियान-5 का स्थान आता है जिनकी आउटपुट वृद्धि तीन वर्षों में क्रमश: 6 एवं 7.5 फीसदी रहेगी। वर्ष 2022 में किसी अन्य देश की जीडीपी वृद्धि 2019 की तुलना में 5 फीसदी भी नहीं ढ़ेगी। वैसे भारत और रूस उसके करीब पहुंच सकते हैं।
कुल मिलाकर, अगर जीडीपी पूर्वानुमान सही साबित होते हैं तो सापेक्षिक रूप से चीन कोविड-19 आपदा का स्पष्ट ‘विजेता’ बन सकता है जबकि अमेरिका एवं आसियान-5 कुछ हद तक अच्छी स्थिति में हैं। वहीं यूरोप, ब्रिटेन, मैक्सिको एवं दक्षिण अफ्रीका साफ तौर पर ‘हारे हुए’ होंगे। और भारत इन सबके बीच की स्थिति में नजर आ रहा है।
(लेखक इक्रियर में मानद प्रोफेसर और भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)