एमेजॉन प्राइम वीडियो की वेब सिरीज पंचायत को देखना आनंददायक अनुभव है। शहर का रहने वाला एक युवक अभिषेक त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश की फुलेरा ग्राम पंचायत में पंचायत सचिव की नौकरी स्वीकार कर लेता है क्योंकि उसके पास अन्य कोई विकल्प नहीं है। समुचित आवास, भोजन और बिजली की समस्या, गांव को खुले में शौच से मुक्ति का दर्जा दिलाने, सौर ऊर्जा आदि स्थापित करने की उसकी जद्दोजहद आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनसे पंचायत वेबसिरीज के आठ-आठ एपिसोड वाले दो सीजन हास्य और गुदगुदाहट के साथ निपटते हैं। जॉनी डेप और एंबर हर्ड के मानहानि के मुकदमे के छोटे-छोटे वीडियो की भरमार के बाद इस सिरीज को देखना खासतौर पर राहत पहुंचाने वाला था। अमेरिका में जून में समाप्त हुई उस मामले की अदालती कार्रवाई के छोटे-छोटे वीडियो हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भरे पड़े हैं।
जून में ही किसी समय मैंने नेटफ्लिक्स पर एस एस राजामौलि की फिल्म आरआरआर देखी। टॉम क्रूज की टॉप गन की सीक्वल और राज मेहता की जुगजुग जियो जैसी फिल्म मैंने थिएटर में देखी जो शादी को लेकर समझदारी भरा हास्य प्रस्तुत करती है। बीच में मैंने सोनीलिव पर टीवीएफ की प्रस्तुति गुल्लक और मेरी पसंदीदा द बिग बैंग थियरी (चक लोरे, बिल प्राडी) भी देखी। यानी तमाम अन्य महीनों की तरह यह जून भी शॉर्ट वीडियो, सिटकॉम, लंबी फिल्मों और गंभीर सिरीज के नाम रहा। 10 सेकंड के वीडियो से लेकर 10 घंटे के वीडियो तक अब टेलीविजन पर आप अपनी चाह के मुताबिक कुछ भी देख सकते हैं। थिएटरों का विकल्प भी उपलब्ध है। यहां पर इस स्तंभ की बात आती है। इस पूरे परिदृश्य में वज टेलीविजन स्क्रीन अपनी जगह कहां बनाती है जिसने इतने लंबे समय तक वीडियो देखने वालों के दिलों पर राज किया। अब टीवी कौन देख रहा है और कहां देख रहा है? ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक सन 2021 में करीब 87.8 करोड़ भारतीयों ने रोजाना औसतन तीन घंटे 50 मिनट तक टीवी देखा। 72,000 करोड़ रुपये के राजस्व के साथ यह अभी भी देश के 161,400 करोड़ रुपये के मीडिया और मनोरंजन उद्योग में 45 फीसदी के साथ सबसे बड़ा योगदान करने वाला क्षेत्र है। ओटीटी पर देखी जाने वाली सामग्री में से करीब आधी पहले टेलीविजन चैनलों मसलन जी टीवी या कलर्स आदि पर प्रसारित होती है। देश के सबसे बड़े ओटीटी ब्रांड में से कुछ मसलन डिज्नी+हॉटस्टार, सोनीलिव आदि का स्वामित्व प्रसारकों के पास है। यहां तक कि शॉर्ट वीडियो ऐप, टीवी शो की क्लिप और समाचारों की क्लिप भी खूब देखी जाती हैं। सामग्री स्रोत के रूप में टेलीविजन नई व्यवस्था में अच्छी जगह बना चुका है।
देश के दबदबे वाले मीडिया के रूप में इसकी स्थिति जरूर थोड़ा कठिनाई से गुजर रही है। 2019 में जहां 21 करोड़ परिवारों में 89.2 करोड़ लोग टीवी देखते थे वहीं अब यह आंकड़ा घटकर 19.3 करोड़ परिवारों के 87.8 करोड़ लोगों तक रह गया है।
इसकी वजह तलाश करना मुश्किल नहीं है। जब 2019 के आरंभ में बिना सोचे समझे नयी टैरिफ व्यवस्था लागू की गई तो कई केबल ऑपरेटरों के पास ऐसी तकनीक ही नहीं थी कि वे एक चैनल को आसानी से शामिल कर सकें या निकाल सकें। कीमतों में इजाफा और बदलाव की जटिलता के कारण लोगों ने ओटीटी या दूरदर्शन की नि:शुल्क डीटीएच सेवा का इस्तेमाल शुरू कर दिया। महामारी और 2019 में शुल्क को लेकर दूसरे आदेश ने इस रुझान को तेज किया। माना जा रहा है कि इस समय भुगतान करके केबल और डीटीएच देखने वाले परिवारों की तादाद 18 करोड़ से घटकर 12-13 करोड़ रह गई है। टीवी सिग्नल जारी करने वाली तमाम तकनीकों में केबल पर सबसे बुरा असर पड़ा और अब केबल टीवी करीब 10 करोड़ घरों से सिमटकर 7.5 या 8 करोड़ घरों तक रह गया है। सबसे ज्यादा लाभ डीडी की नि:शुल्क डिश सेवा को हुआ और वह 2.5 करोड़ से 5 करोड़ घरों तक पहुंच गया। ध्यान रहे कि दर्शकों की संख्या जानने के लिए इस संख्या में 4.8 का गुणा करना होगा जो एक औसत भारतीय परिवार का आकार है। दूसरा सबसे बड़ा लाभार्थी है ओटीटी, खासतौर पर यूट्यूब। कॉमस्कोर के आंकड़ों के मुताबिक इसके विशिष्ट दर्शकों की संख्या सितंबर 2019 के 28.5 करोड़ से बढ़कर इस फरवरी में 48.5 करोड़ हो गई। अब यह भारत का सबसे बड़ा नि:शुल्क प्रसारक है। डीडी फ्रीडिश को सबसे बड़ी चुनौती भी इसी से मिल रही है। भारत में जो हो रहा है, वही रुझान वैश्विक बाजारों में भी देखा जा सकता है। यूनाइटेड किंगडम की विश्लेषण और सलाहकार कंपनी ओम्डिया के टीवी, वीडियो और विज्ञापन विभाग के प्रधान विश्लेषक टोनी गुन्नारसन कहते हैं कि दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और फ्रांस समेत कई देशों में भुगतान सहित देखा जाने वाला टीवी प्रगति कर रहा है जबकि अमेरिका, भारत और ब्राजील जैसे कई देशों में इसमें तेजी से गिरावट आ रही है। महंगे केबल चैनल और ओटीटी तथा इंटरनेट को एक साथ उपलब्ध कराने वाले पैकेज में रुचि बरकरार है और इसकी वृद्धि और खपत बढ़ रही है। अभी भी दुनिया में ऐसे परिवार अधिक हैं जो सबस्क्रिपशन आधारित मांग पर आधारित टीवी की जगह भुगतान वाले टीवी को तवज्जो देते हैं। भारत में केबल अमेरिका की तरह ब्रॉडबैंड सेवा प्रदाता नहीं बन सका है। अमेरिका में अधिकांश लोग ब्रॉडबैंड सक्षम केबल सुविधाओं में ओटीटी देखते हैं।
यदि फिल्मों, टेलीविजन और ओटीटी को शामिल किया जाए तो देश में वीडियो कारोबार का राजस्व करीब 96,300 करोड़ रुपये रहा। टेलीविजन कारोबार वीडियो कारोबार का चार गुना और फिल्मों का करीब आठ गुना है। यह अधिक मुनाफे वाला भी है। अधिकांश बड़े प्रसारक मसलन सोनी, जी, वायकॉम, डिज्नी आदि ने ऑनलाइन बदलाव के दौरान अपने दर्शकों को जोड़े रखकर अच्छा किया है।
गुन्नारसन कहते हैं, ‘एक यूरोपियन के रूप में जब मैं ब्रॉडकास्ट मीडिया के बारे में सोचता हूं तो मैं बीबीसी (ब्रिटेन) या एनआरके (नॉर्वे) जैसे सार्वजनिक प्रसारक के बारे में सोचता हूं। अधिकांश सार्वजनिक प्रसारकों ने यह बदलाव सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। ब्रॉडकास्टिंग का भविष्य पहले ही आईप्लेयर (बीबीसी की डिजिटल पेशकश) आदि के रूप में सामने आ रहा है और इसकी नेटफ्लिक्स/स्काई आदि से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं। वे वही कर रहे हैं जो अच्छी तरह कर सकते हैं यानी स्थानीय सामग्री में निवेश। ऐसे में ब्रॉडकास्टिंग टीवी नए तरीकों को अपनाकर काम करता रहेगा।’ नई वीडियो वाली इस व्यवस्था में टेलीविजन अपनी जगह बना रहा है।