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ज्यादा मुसीबत लाएगा ट्रंप का दूसरा कार्यकाल

यह सोचने की भी पर्याप्त अच्छी वजहें हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का अगला कार्यकाल, पिछले कार्यकाल की तुलना में अधिक उथलपुथल वाला होगा।

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मिहिर एस शर्मा   
Last Updated- December 04, 2024 | 10:02 PM IST

दुनिया ने डॉनल्ड ट्रंप के दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनने की बात को अप्रत्याशित रूप से स्वीकार कर लिया है। उन्होंने 2016 में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव जीता था और उस जीत का जिस आक्रोश, भय और तिरस्कार भाव के साथ स्वागत किया गया था, उसकी तुलना में इस बार उनकी जीत को कुछ हद तक आश्वस्ति के साथ देखा जा रहा है। यहां तक अमेरिकी उदारवादियों में भी आठ साल पहले की तुलना में कम आत्मावलोकन देखने को मिल रहा है और ‘प्रतिरोध’ को लेकर पहले जैसी प्रतिबद्धता भी नहीं नजर आ रही है। आम भावना यह नजर आ रही है कि वह एक बार सत्ता में रह चुके हैं और उनके रहने से दुनिया खत्म तो नहीं हो गई।

हालांकि यह सोचने की भी पर्याप्त अच्छी वजहें हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का अगला कार्यकाल, पिछले कार्यकाल की तुलना में अधिक उथलपुथल वाला होगा। ऐसी चार वजहों की बात करते हैं।

पहली वजह, इस बार उनके पास जबरदस्त जनादेश है। 2016 में वह लोकप्रिय वोट में हार गए थे और निर्वाचक मंडल में भी एक लाख से कम वोटों ने तीन अहम स्विंग राज्यों को उनके पक्ष में किया था। स्विंग राज्य उन्हें कहा जाता है जहां चुनाव परिणाम किसी भी दल की ओर जा सकते हैं। इस साल वे उन राज्यों में भी अपेक्षाकृत आसानी से चुनाव जीत गए।

पुराने स्विंग राज्यों मसलन फ्लोरिडा में उन्हें बड़े अंतर से जीत मिली। डेमोक्रेटिक पार्टी की ये उम्मीदें खत्म हो गई हैं कि टेक्सस अगला स्विंग राज्य होगा क्योंकि ट्रंप ने वहां अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी बढ़त हासिल कर ली। रिपब्लिकन पार्टी ने सीनेट पर नियंत्रण कर लिया और बहुत सहजता से वे सरकार की तीनों शाखाओं पर काबिज हैं। पारंपरिक रूप से डेमोक्रेट पार्टी के साथ रहे न्यूयॉर्क जैसे क्षेत्रों में ट्रंप के पक्ष में बड़ा बदलाव देखने को मिला।

अपने पहले कार्यकाल में सरकार के भीतर और बाहर उनके प्रतिद्वंद्वियों का माना था कि यह उनका नैतिक अधिकार और लोकतांत्रिक दायित्व है कि वे उनके कदमों का विरोध करें। अगले चार साल में विपक्ष सुनिश्चित तरीके से यह नहीं कह सकता।

दूसरा कारण, उन्होंने पारंपरिक रिपब्लिकन पार्टी से निर्णायक ढंग से राह अलग कर ली है। पहले कार्यकाल में उनकी कैबिनेट और व्हाइट हाउस के लिए चुने गए लोगों में पार्टी के प्रतिनिधियों का वर्चस्व था। जो लोग बाहर से चुने गए थे मसलन उनके पहले विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन या उनके पहले रक्षा मंत्री जिम मैटिस, को किसी भी रिपब्लिकन कैबिनेट के ऐसे सदस्य के रूप में देखा जा सकता है जिन्हें बाहर से लाया गया। इनमें से एक तेल कंपनी का पूर्व मुखिया था और दूसरा सेवानिवृत्त चार सितारा जनरल।

इस कार्यकाल में अब तक जितने नाम घोषित किए गए हैं वे इस दूसरे कार्यकाल के लिए बहुत अलग रुख प्रदर्शित करते हैं। फ्लोरिडा के विवादास्पद रिपब्लिकन मैट गेट्ज अब अटॉर्नी जनरल नहीं होंगे क्योंकि उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया है। परंतु न्याय विभाग में जेफ सेशंस जैसे रुढ़िवादी लेकिन मुख्यधारा के रिपब्लिकन सीनेटर की तैनाती और गेट्ज को नामित करने में बहुत अधिक अंतर है।

याद रहे कि सेशंस ने 2016 में रूसी हस्तक्षेप की जांच के मामलों में स्वतंत्र अभियान के लिए काफी समय तब दबाव बनाए रखा था। ऐसी ही चिंताएं ट्रंप द्वारा रक्षा मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री या राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के पदों पर चुने गए नामों को लेकर भी होनी चाहिए। 2016 की ट्रंप सरकार स्पष्ट रूप से एक रिपब्लिकन सरकार थी। ट्रंप 2024 में पूरी तरह दक्षिणपंथी सरकार बनाने की ओर बढ़ रहे हैं।

तीसरी बात, 2024 में दुनिया 2016 की तुलना में अधिक खतरनाक हो चुकी है। अब चूक की गुंजाइश बहुत कम है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में विदेश नीति को सबसे बड़ी चुनौती थी उत्तर कोरियाई मिसाइल परीक्षण। आज चीन की आक्रामकता को देखते हुए न केवल उत्तर-पूर्वी एशिया कहीं कम सुरक्षित है बल्कि यूरोप और पश्चिम एशिया में भी क्षेत्रीय स्तर पर हिंसक घटनाएं भड़क रही हैं। ये बातें दुनिया को और गहरे संकट की दिशा में ले जा सकती हैं।

चौथी बात, खुद ट्रंप की बात करें तो वे 78 साल के हो चुके हैं। पहली बार राष्ट्रपति बनते समय उनकी उम्र 70 वर्ष से कम थी। राष्ट्रपति पद का दबाव उन्हें प्रभावित करेगा। उनके भाषण बताते हैं कि उनमें भटकाव है। परंतु उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी शिकायतें भी बढ़ रही हैं। 2016 में उन्होंने संघीय सरकार को एक नए खिलौने की भांति देखा होगा जिसके साथ वे खेल सकते थे। 2024 में कई जांचों और अभियोगों के बाद शायद वे इसे एक शत्रु के रूप में देखें। उनका दूसरा कार्यकाल उस राज्य के विरुद्ध बागी होने का हो सकता है जिस पर उनका शासन है।

यह सही है कि सर्वोच्च न्यायालय जैसे एक-दो अपवादों को छोड़कर अमेरिकी घरेलू संस्थान, ट्रंप के पहले कार्यकाल में बरकरार रहे और उसके बाद दोबारा उठ खड़े हुए। उनके जलवायु समझौते से पीछे हटने तथा विश्व व्यापार संगठन को कमजोर करने से वैश्विक संचालन प्रभावित हुआ लेकिन जलवायु परिवर्तन के मोर्च पर जहां इसका असर नहीं हुआ वहीं विश्व व्यापार संगठन के मामले में उनके बाद राष्ट्रपति बने जो बाइडन ने उसी रुख को जारी रखा। परंतु मैं यह कहने की जल्दबाजी नहीं करूंगा कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के अंत में भी हम यही कहने में सफल होंगे।

First Published : December 4, 2024 | 9:48 PM IST