सरकार ने हाल के दिनों में जो आंकड़े जारी किए हैं वे इस बात की साफ तस्वीर पेश करते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी और मार्च के अंत में लगे कड़े प्रावधानों वाले देशव्यापी लॉकडाउन से कैसे उबर रही है।
मार्किट मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई पर नजर डालें तो कुछ आशा भरे संकेतक नजर आते हैं। जून में यह संकेतक 47.2 पर रहा जबकि मई में यह 30.8 और अप्रैल में 27.4 था। यकीनन इससे विस्तार के संकेत नहीं मिलते हैं क्योंकि 50 के नीचे का आंकड़ा कमतरी वाला ही माना जाता है। परंतु इससे यह संकेत मिलता है कि सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से कई, पहले के महीनों की तुलना में अब सुधार की अपेक्षा रख रहे हैं। यह ध्यान देने वाली बात है कि भारत में पीएमआई में सुधार कुछ अन्य देशों की तुलना में बेहतर है।
ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि अर्थव्यवस्था व्यापार आधारित मांग पर कम निर्भर रही। अच्छे मॉनसून की खबर ने भी इसमें मदद की। कुछ अन्य संकेतक भी इस धारणा के पक्ष में हैं-उदाहरण के लिए बिजली की मांग अब अनुमानित स्तर के 90 प्रतिशत के बराबर है और रेल मालवहन अप्रैल में तिहाई स्तर तक गिरने के बाद अब पिछले साल के स्तर से केवल 6 फीसदी नीचे है।
आठ बुनियादी उद्योगों के सूचकांक के इस सप्ताह सामने आए आंकड़ों से भी इस बात को बल मिलता है कि अर्थव्यवस्था अप्रैल के निचले स्तर से सुधार पर है। यह सूचकांक मई में सालाना आधार पर 23.4 फीसदी गिरा था जबकि अप्रैल में इसमें 37 फीसदी की गिरावट आई थी।
वस्तु एवं सेवा कर संग्रह भी कहीं अधिक नियमित स्तर पर आ रहा है और कुछ अधिकारियों का मानना है कि अब शिथिल किए गए शिड्यूल में नए रिटर्न दाखिल होने से आंकड़ों में और सुधार होगा। अप्रैल में जीएसटी संग्रह महज 32,000 करोड़ रुपये था जो मई में सुधरकर 62,000 करोड़ रुपये हो गया। परंतु अब जून में यह आंकड़ा सुधरकर 90,000 करोड़ रुपये का स्तर पार कर चुका है।
काफी संभव है कि यह अर्थव्यवस्था का नया चलन हो। द इकनॉमिस्ट ने हाल ही में आश्चर्य जताया था कि क्या महामारी के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था पूरी क्षमता के 90 प्रतिशत तक सिमट जाएगी? उस लिहाज से देखा जाए तो सरकार की वित्तीय तंगी के बीच राजस्व के संकट का गहरा असर होने वाला है। वर्ष 2020-21 के पूरे वर्ष के राजकोषीय घाटा लक्ष्य का 60 फीसदी वर्ष के शुरुआती दो महीनों अप्रैल और मई में ही इस्तेमाल हो गया। प्रधानमंत्री का कहना है कि कई कल्याण उपाय मसलन खाद्यान्न वितरण आदि त्योहारी मौसम तक बरकरार रहेंगे।
सरकार का प्रयास है कि राहत उपायों और प्रोत्साहन के राजकोषीय प्रभाव को नियंत्रण में रखा जाए। परंतु राजस्व की कमी घाटे के आंकड़ों पर असर डालेगी और कई विश्लेषकों का मानना है कि हम लक्ष्य से दूर रह जाएंगे।
हालांकि बाहरी खाते के मामले में कुछ सुरक्षा नजर आ रही है। वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद पिछली तिमाही में पहली बार भारत चालू खाते के मामले में अधिशेष की स्थिति में रहा। यह शायद इस अवधि की अनिश्चित मांग को दर्शाता है क्योंकि इस बदलाव में सबसे अहम भूमिका वस्तु आयात में आई भारी गिरावट की रही। रुपये का भी अवमूल्यन हुआ और वह अधिक प्रतिस्पर्धी कीमत के आसपास कारोबार कर रहा है। केंद्रीय बैंक ने आश्वस्त करने वाले स्तर का मुद्रा भंडार एकत्रित किया है। ऐसे में आंतरिक चुनौतियों के बीच बाह्य खाता सरकार को कुछ राहत प्रदान कर रहा है।