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Editorial: दिवालिया मामलों का समय पर समाधान जरूरी, दबाव कम करने पर जोर

यह सातवां मौका है जब आईबीसी में संशोधन हो रहा है। पिछले कुछ समय से इस विधेयक का इंतजार हो रहा था।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 13, 2025 | 11:21 PM IST

केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को लोक सभा में दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया। इस संशोधन विधेयक से दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में सुधार का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। यह विधेयक चर्चा के लिए संसद की प्रवर समिति को भेजा गया है। यह सातवां मौका है जब आईबीसी में संशोधन हो रहा है। पिछले कुछ समय से इस विधेयक का इंतजार हो रहा था। विभिन्न पक्षों एवं नीति विश्लेषकों ने समाधान प्रक्रियाओं के लंबे समय तक खिंचने और उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने के लिए आईबीसी की आलोचना की है।

हाल में जिस मामले का जून 2025 के अंत तक समाधान निकल कर आया उसमें औसतन 602 दिन लग गए। हाल में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद पूरी आईबीसी प्रक्रिया पर प्रश्न चिह्न खड़ा हो गया था। न्यायालय ने अपने उक्त आदेश में एक समाधान योजना खारिज कर दी थी और निगमित कर्जधारक के परिसमापन का आदेश दिया था। हालांकि, अच्छी बात यह रही कि यह आदेश वापस ले लिया गया है और अब मामले पर दोबारा सुनवाई हो रही है। दिवालिया प्रक्रिया का मकसद मामलों का त्वरित समाधान करना और परिसंपत्तियों का मूल्य ह्रास रोकना है।

समाधान निकालने में देरी से परिसंपत्तियों का मूल्यांकन कम हो जाता है जिससे न केवल ऋणदाता प्रभावित होते हैं बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता पर असर होता है। हालांकि, सरकार की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि वह आईबीसी में लगातार सुधार के लिए प्रयासरत रही है और नवीनतम विधेयक उपयुक्त दिशा में उठाया गया कदम है। इस विधेयक का मकसद आईबीसी में सुधार कर मामलों का समय पर निपटारा करना है।

संशोधन विधेयक में जिन प्रमुख बातों की चर्चा है उनमें ऋणदाता की पहल पर शुरू होने वाली ऋण शोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया भी एक है। इसमें न्यायालय से बाहर मामलों के त्वरित एवं कम खर्च पर समाधान करने का भी प्रावधान है। इस प्रक्रिया का मकसद इस पर भी ध्यान देना है कि कारोबार को कोई व्यवधान न पहुंचे या यह कम से कम रहे।

स्पष्ट है कि संशोधन विधेयक का लक्ष्य न्यायिक प्रक्रिया पर दबाव कम करना है। आईबीसी में संशोधन के बाद न्यायिक प्रक्रिया 150 दिनों में पूरा हो जाने की उम्मीद है। न्याय निर्णयन प्राधिकरण आवश्यकता पड़ने पर समाधान प्रक्रिया अधिकतम 45 दिनों के लिए बढ़ा सकता है। लोक सभा में पेश इस संशोधन विधेयक में समूह ऋण शोधन अक्षमता एवं सीमा पार ऋण शोधन अक्षमता के लिए भी प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। समूह ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया का उद्देश्य पेचीदा ऋण शोधन अक्षमता का सामना करने वाली जटिल कंपनी समूह संरचनाओं से निपटना है।

इससे एक साझा पीठ गठित करने और ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया में समन्वय स्थापित करने में मदद मिलेगी जिससे समाधान में लगने वाला समय कम हो जाएगा और समय रहते ठोस नतीजे मिल जाएंगे। सीमा पार ऋण शोधन अक्षमता ढांचे का मकसद भारत और किसी अन्य देश में कार्यवाही के दौरान अंशधारकों के हितों की रक्षा करना है।

सरकार इस संबंध में नियम तैयार करेगी। इस विधेयक में वित्तीय ऋणदाता की तरफ से शुरू ऋण शोधन प्रक्रिया से संबंधित प्रावधान में संशोधन का प्रस्ताव है। ऋण नहीं चुकाने की बात साबित होने और प्रक्रियात्मक आवश्यकताएं पूरी होने पर न्याय निर्णयन प्राधिकरण को अनिवार्य रूप से आवेदन स्वीकार करना होगा। जिन आवेदनों में प्रावधान में वर्णित सभी शर्तें पूरी की जा चुकी हैं उनमें न्याय निर्णयन प्राधिकरण आवेदन अस्वीकार करने के लिए किसी अन्य कारण पर विचार नहीं कर पाएगा। प्राधिकरण को 14 दिनों के भीतर आवेदन पर निर्णय लेना होगा या देरी के लिए कारण बताने होंगे। इससे समय रहते मामलों पर सुनवाई शुरू होने के साथ ही समय पर उनके समाधान भी आने में भी मदद मिलेगी।

कानून में सुधार एवं विभिन्न प्रावधान मजबूत करने से आईबीसी से ठोस नतीजे निकलने की उम्मीद है। किंतु, एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। समाधान प्रक्रिया में देरी होने के कई कारण हैं जिनमें राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील पंचाट में मानव संसाधनों की कमी भी एक है। जब तक इन दोनों संस्थाओं में पर्याप्त मानव संसाधन सुनिश्चित नहीं किए जाएंगे तब तक मामलों के समाधान में देरी से निजात नहीं मिल पाएगी। कानून में सुधार अवश्य किया जाना चाहिए लेकिन सरकार को इन संस्थाओं में पर्याप्त क्षमता सुनिश्चित करने पर भी ध्यान देना चाहिए। प्रवर समिति को भी इस विषय पर अवश्य विचार करना चाहिए।

First Published : August 13, 2025 | 11:13 PM IST