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कांग्रेस में पीढ़ीगत बदलाव के प्रतीक सुखविंदर

Published by
आदिति फडणीस
Last Updated- December 14, 2022 | 12:09 AM IST

इस साल मार्च-अप्रैल में कांग्रेस की हिमाचल प्रदेश इकाई के पूर्व प्रमुख सुखविंदर सिंह सुक्खू को पार्टी की प्रचार समिति का प्रमुख नामित किया गया था। लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें उस समिति का प्रमुख बनाया गया जो विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन करता है। इसका मतलब यह था कि अगर उनके द्वारा चुने गए पर्याप्त उम्मीदवार जीत जाते तब कांग्रेस विधायक दल में उनका बहुमत हो सकता है और उस वजह से उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में चुना जा सकता है।यही कारण है कि वह उस वक्त काफी आशावान थे जब उनकी नियुक्ति के तुरंत बाद बिज़नेस स्टैंडर्ड ने उनसे पूछा कि क्या वह इस बात से निराश हैं कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) प्रमुख का पद उनके बजाय हिमाचल प्रदेश के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को दिया गया।

उन्होंने कहा, ‘वास्तव में नहीं। मैं पहले भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुका हूं। सच कहूं तो राजनीति में मैंने जब भी कुछ भी किया मुझे प्रमुख के रूप में हमेशा जिम्मेदारी मिली। मैंने एक छात्र के रूप में राजनीति की शुरुआत की और कांग्रेस की युवा शाखा का प्रमुख बन गया। मैं युवा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष था जब मनीष तिवारी और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता राष्ट्रीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे। मैं कांग्रेस की राज्य इकाई का प्रमुख बना और उस पद पर मेरा सबसे लंबा कार्यकाल रहा।’ उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों का चयन करने की जिम्मेदारी मिलना ही मेरे लिए पर्याप्त था।

ये शब्द भविष्यवाणी साबित करने के लिए पर्याप्त थे। हिमाचल प्रदेश की 60 सदस्यीय विधानसभा में चुने गए 40 कांग्रेस उम्मीदवारों में से 15 से अधिक सुक्खू के आदमी थे, ऐसे में लगभग मुख्यमंत्री बनना पहले से तय था। इससे भी बड़ी बात यह है कि वीरभद्र के निधन के बाद खाली हुई मंडी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एक साल से भी कम समय पहले प्रतिभा ने इतनी शानदार जीत दर्ज की थी लेकिन कांग्रेस एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत सकी, जिसकी वजह से वह दौड़ से बाहर हो गईं।

दरअसल मंडी पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का क्षेत्र है और मंडी, कुल्लू, लाहौल-स्पीति, किन्नौर और भरमौर (चंबा) जिले में 17 विधानसभा सीटें हैं। सुक्खू राज्य में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं, लेकिन वीरभद्र के साथ हमेशा उनका मतभेद बना रहा। इसकी एक वजह इन दोनों नेताओं की पृष्ठभूमि है क्योंकि वीरभद्र (और उनका परिवार) राजसी परिवार से ताल्लुक रखते थे।

वह रामपुर बुशहर राजवंश के अंतिम राजा थे और 2008 में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री बने जब कांग्रेस विधानसभा चुनावों में बाहर हो गई थी। वह पांच बार मुख्यमंत्री रहे, और केंद्र सरकार में दो दफा राज्य मंत्री और नेता भी थे जो 1962 में पहली बार सांसद भी बने। उनकी कार्यशैली भी अत्यधिक निरंकुश थी। इसके विपरीत, सुक्खू बहुत हद तक आम जनता के नेता हैं। वह मिलनसार हैं और उन तक सबकी पहुंच आसान है। उनके पिता राज्य परिवहन निगम के चालक थे।

सुक्खू संघर्ष को जानते हैं। वह शुरुआती वर्षों में जीवन यापन करने के लिए दूध बेचते थे। जब उनकी जिंदगी में कठिन समय आया तब वह राज्य बिजली विभाग में चौकीदार बन गए और उन्हें राज्य बिजली बोर्ड में टीमेट (एक सहायक के बराबर पद) के पद के लिए भी प्रस्ताव मिला। वह अपने आसपास के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने को लेकर प्रतिबद्ध रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारा जीवन बहुत कठिन है। मैं बस इतना चाहता हूं कि सभी को समान मौका मिले।‘

कांग्रेस के अपने घोषणापत्र में कई योजना के प्रस्ताव हैं जिन पर अब सुक्खू को अमल करना होगा। एक निश्चित आय सीमा से नीचे की महिलाओं के परिवारों को 1,500 रुपये का भत्ता और पुरानी पेंशन योजना को अपनाने की बात की गई है जिसे कांग्रेस ने शुरू किया था, लेकिन अब इसे सभी राज्य सरकारों ने खत्म कर दिया। सबसे अहम विचार दूध के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य है।

उन्होंने कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के तुरंत बाद कहा, ‘राज्य में दूध की खरीद अव्यवस्थित है और हम इसे व्यवस्थित करेंगे। हर परिवार से 10 किलो दूध खरीदने की पेशकश करेंगे, दूध को ठंडा रखने के लिए संयंत्र बनाएंगे और सब्सिडी पर दूध को बाजार में बेचेंगे। हम शराब की बिक्री पर उपकर लगाकर लागत वसूल करेंगे।’ नकारात्मक पक्ष यह है कि उनके पास कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है और वह कभी मंत्री नहीं रहे हैं।

सुक्खू के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में पीढ़ीगत बदलाव दिखेगा। लेकिन पार्टी में एक और बदलाव दिख सकता है। यह पार्टी का सबसे बड़ा रहस्य है कि प्रबंधक अहमद पटेल के निधन के बाद एक खालीपन आ गया है। ज्यादातर लोग यह नहीं जानते हैं कि पटेल ने गांधी परिवार के साथ निकटता के लिए अपनी ताकत का श्रेय दिया, लेकिन राज्य की राजनीति के बारे में उनकी गहरी और व्यापक समझ की वजह से भी, मुख्यमंत्रियों का चयन प्रभावित हुआ जो संरक्षण का एक रास्ता है।

इस चुनाव की रणनीति कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला ने बनाई है, जिन्हें आलाकमान ने जमीनी स्तर पर तैनात किया था। इस सफलता के साथ, पार्टी में शुक्ला का प्रभाव बढ़ जाएगा, साथ ही उनके नजरिये वाली नीति की उनकी मांग भी बढ़ेगी।
भविष्य में मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों चुनौतियों को देखते हुए, पार्टी में शुक्ला की भूमिका पर नजर रखने की जरूरत है।

First Published : December 14, 2022 | 12:08 AM IST