जानकारी के मुताबिक सरकार और उसका थिंक टैंक नीति आयोग चीनी उद्योग के लिए मूल्य स्थिरीकरण फंड तैयार करने पर काम कर रहे हैं। रंगराजन समिति की ओर से सुझाई गई राजस्व साझेदारी व्यवस्था में भी संशोधन की चर्चा है ताकि उसे गन्ना किसानों के पक्ष में किया जा सके। प्रस्तावित फंड का इस्तेमाल जहां गन्ना किसानों तथा चीनी उत्पादकों को मूल्य संबंधी जोखिम से बचाने के लिए किया जाएगा वहीं राजस्व बंटवारे की व्यवस्था, गन्ने की कीमत तय करने की मौजूदा व्यवस्था का स्थान लेगी।
गन्ना किसानों की आय को उनके द्वारा उत्पादित गन्ने से प्राप्त होने वाली चीनी के साथ जोडऩे की भी योजना है। यदि ये सभी कदम समझदारी से उठाए गए तो इनसे बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। गन्ने की कीमतों को चीनी के साथ जोडऩे से यह सुनिश्चित होगा कि कीमतें बाजार ताकतें तय करें। इसके अलावा किसान भी गन्ने की बेहतर किस्म बोने के लिए प्रोत्साहित होंगे। सबसे अहम बात यह है कि इन कदमों के कारण चीनी उद्योग के सामने बार-बार उठ खड़े होने वाले वित्तीय संकट भी कम होंगे। आमतौर पर ऐसे संकट कच्चे माल और उत्पादन मूल्य के असंबद्ध होने के कारण उत्पन्न होते हैं और इनकी परिणति गन्ने की बकाया कीमत में लगातार इजाफे के रूप में सामने आती है।
हालांकि आशंका यह भी है कि सरकार शायद राजनीतिक रसूख वाले गन्ना और चीनी उत्पादकों की लॉबी को नाराज न करना चाहे और इस चक्कर में इन उपायों का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो सके। रंगराजन समिति की कई अन्य अनुशंसाओं को भी स्वीकार किया गया है और उनका क्रियान्वयन किया गया है लेकिन राजस्व साझेदारी की जो अनुशंसा सबसे अहम थी उसे अब तक ठंडे बस्ते में रखा गया। इस व्यवस्था के कई फायदे हैं। चूंकि इसमें मूल्य निर्धारण पूरी तरह बाजार आधारित होता है इसलिए गन्ने का उत्पादन भी बाजार की मांग के अनुरूप होगा। इसके परिणामस्वरूप गन्ने के अत्यधिक उत्पादन की संभावना कम होगी और इसके कारण कीमतों में गिरावट और चीनी उद्योग में उत्पन्न होने वाले नकदी संकट की आशंका घटेगी। यदि घरेलू या विदेशी कारणोंं से अचानक कीमत गिरती है तो मूल्य स्थिरीकरण फंड काम आएगा। बहरहाल, इसके लिए जरूरी है कि नीति आयोग के कार्यबल की अनुशंसा के अनुरूप फंड और राजस्व साझेदारी व्यवस्था को एक साथ शुरू किया जाए। एक दूसरे के बिना ये दोनों अधूरी हैं।
कटु सत्य यह है कि इन सुधारों की राह में नई बाधाएं खड़ी होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उद्योग जगत आय में किसानों की बढ़ी हिस्सेदारी को खुशी से स्वीकार कर लेगा। प्रस्ताव है कि गन्ना किसानों के कोटा को रंगराजन समिति की चीनी की बिक्री से हासिल राशि के 75 फीसदी से 5 फीसदी बढ़ाने या चीनी तथा सह उत्पादों की कुल बिक्री से 70 फीसदी किया जाए। यह स्तर 62 से 66 फीसदी के वैश्विक औसत से बहुत अधिक है। यदि इसमें किसी तरह का इजाफा हुआ तो उद्योग का मुनाफा कम होगा। इसके अलावा किसानों के लिए गन्ने की खेती और लुभावनी हो जाएगी। गन्ने की खेती मेंं पानी की बहुत खपत होती है और इसका रकबा बढऩा सही नहीं होगा। इस मसले को हल करने के लिए नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि गन्ने की खेती को किसान के कुल रकबे के अधिकतम 85 प्रतिशत तक सीमित कर दिया जाए तथा उन्हें कम पानी वाली फसल बोने के लिए नकद प्रोत्साहन दिया जाए। परंतु ऐसे कदम उठाने के पहले किसानों को भरोसे में लेना होगा वरना तीन कृषि विपणन सुधारों के समान विरोध की स्थिति निर्मित हो सकती है।