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Opinion: भारतीय क्रिकेट का उभार और उससे निकले सबक

यह कहानी भारत की उस क्रिकेट टीम की है जो दो दशकों में उभरती है। यह 1983 में प्राप्त गौरव की तरह क्षणिक उपलब्धि नहीं है। इसमें व्यवस्थित बदलाव, तेज गेंदबाजी, फिटनेस अहम स्तंभ ब

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शेखर गुप्ता   
Last Updated- November 19, 2023 | 9:04 PM IST

जब भारत ने इस विश्व कप में अपना अभियान शुरू किया तो उसके आलोचकों और प्रशंसकों दोनों की एक ही शिकायत थी कि उसने पूरे एक दशक से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की कोई ट्रॉफी नहीं जीती है। आखिरी बार 2013 में बर्मिंघम में चैंपियंस ट्रॉफी में जीत हासिल हुई थी।

टीम हमेशा नॉकआउट दौर तक पहुंचती है लेकिन वहां उसे हार का सामना करना पड़ता है। 2017 में ओवल में चैंपियंस ट्रॉफी के नॉकआउट मुकाबले में पाकिस्तान से शिकस्त खानी पड़ी थी। इसका मतलब यही था कि भारतीय क्रिकेट के साथ कुछ बुनियादी दिक्कत है। आलोचक टीम के प्रदर्शन पर जितने नाखुश होते हैं प्रशंसकों का व्यवहार उतना ही चंचल होता है। इन विरोधाभासी भावनाओं में दोनों वास्तविक वजह से चूक सकते हैं।

भारतीय क्रिकेट में ऐसी क्रांति आई है जिसकी हमारी पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती थी। एक ऐसी क्रांति जो एक या दो सितारा बल्लेबाजों के इर्दगिर्द नहीं बल्कि दुनिया के सबसे प्रभावी तेज गेंदबाजों की टीम के रूप में आई है। तेज गेंदबाजी का उदय, बेहतर फिटनेस और क्षेत्ररक्षण तथा खिलाड़ियों की बढ़ती संपदा वे तीन स्तंभ हैं जिनके इर्दगिर्द यह क्रांति घटित हुई।

भारत इतने लंबे समय तक आईसीसी ट्रॉफी क्यों नहीं जीत सका? इसका दोषी कौन था- बोर्ड, चयनकर्ता, खिलाड़ी या फिर ये सभी? प्राय: आईपीएल को इसका दोषी माना जाता है। कहा जाता है कि इसने अनुशासन को खत्म किया और साथ ही भारतीय क्रिकेटरों की प्रतिभा और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को भी। सबसे बुरी बात यह कि उसने इन खिलाड़ियों को दंभी और लालची बना दिया जो अपनी नीलामी राशि को राष्ट्रीय गौरव से ऊपर रखते थे।

परंतु भारतीय क्रिकेट की सेहत को आंकने का एक और तरीका है। आईसीसी ट्रॉफी के दशक भर के सूखे को छोड़ दिया जाए तो इस समय भारतीय क्रिकेट टीम खेल के तीनों स्वरूपों यानी टेस्ट, एकदिवसीय और 20-20 में दुनिया में नंबर एक टीम है। कई लोगों को इन रैंकिंग पर शंका हो सकती है लेकिन सच यह है कि अगर ये रैंकिंग कमजोर पड़ती हैं तो प्रशंसक निराश होंगे। बीते दो दशक में हम धीरे-धीरे नंबर एक रहने के आदी हो गए हैं। ऐसे में कुछ आंकड़ों पर नजर डालना उचित होगा।

टेस्ट क्रिकेट को इस खेल का सबसे चुनौतीपूर्ण स्वरूप माना जाता है। भारत 2009 में पहली बार इसकी रैंकिंग में शीर्ष पर आया यानी पहला टेस्ट खेलने के 77 वर्ष बाद। तब से हम सात बार शीर्ष पर कायम रहे हैं और इसकी कुल अवधि 70 महीने यानी तकरीबन छह साल रही है। इन 70 महीनों की अवधि में से 49 महीने जनवरी 2016 और जनवरी 2022 के बीच रहे। ऑस्ट्रेलिया ने जनवरी 2022 से मई 2023 के बीच भारत को दूसरे स्थान पर धकेला और भारत ने फिर वापसी कर ली। भारत इकलौती ऐसी टीम है जिसने लंबे समय में ऑस्ट्रेलिया को लगातार चार बार हराया। इनमें से दो जीत घर में मिलीं तो दो ऑस्ट्रेलिया में।

एकदिवसीय मैचों में भारत जनवरी 2013 में पहली बार दुनिया में नंबर एक बना यानी मुंबई में विश्व कप जीतने के करीब दो वर्ष बाद। तब से अब तक टीम आठ बार नंबर एक रह चुकी है। इस वर्ष के आरंभ में कुछ समय के लिए पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया ने उसे पहले स्थान से अपदस्थ किया था और उस समय दर्शकों की निराशा चरम पर थी। विश्व कप शुरू होते होते हम फिर पहले पायदान पर आ गए।

टी-20 क्रिकेट का व्यावसायिक दृष्टि से सबसे तेजी से उभरता स्वरूप है। इसमें भारत के प्रदर्शन में बहुत निरंतरता नहीं रही है। इसके बावजूद 2011 से अब तक हम पांच बार शीर्ष पर रहे हैं। फरवरी 2022 से हम लगातार 21 माह से शीर्ष पर हैं।

यही सही है कि एक बड़ी प्रतियोगिता का निर्णय फाइनल मैच के दिन टीम के प्रदर्शन से तय होता है और वहां रैंकिंग मायने नहीं रखती। इस बात को भारत से बेहतर भला कौन जानता होगा जिसने 1983 में अप्रत्याशित रूप से लॉर्ड्स के मैदान पर पहला विश्व कप जीता था।

उस वक्त आईसीसी की रैंकिंग नहीं होती थीं लेकिन सब मानते थे कि क्लाइव लॉयड के नेतृत्व वाली वेस्टइंडीज की टीम दूसरी टीमों से बहुत बेहतर थी। भारतीयों का भ्रम भी जल्दी दूर हो गया था जब विश्व कप फाइनल के तत्काल बाद भारत आई वेस्टइंडीज की टीम ने टेस्ट और एकदिवसीय मैचों में भारत को जबरदस्त शिकस्त दी थी।

तब से अब तक विश्व क्रिकेट में काफी बदलाव आया है और इस बार तो वेस्टइंडीज विश्व कप के लिए अर्हता तक नहीं प्राप्त कर सका जबकि अफगानिस्तान ने असाधारण प्रदर्शन किया। नीदरलैंड ने भी दक्षिण अफ्रीका को हराकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। भारत ने सबसे अधिक सुधार तेज गेंदबाजी में किया है।

पाकिस्तान की तेज गेंदबाजी का स्तर गिरा है और वह गेंद से छेड़छाड़ के मामलों और आईसीसी की जांच के बाद कभी अपने पहले जैसे स्तर पर नहीं पहुंच पाई। हालांकि अंग्रेजी मीडिया में मोहम्मद आमिर और शाहीन शाह अफरीदी जैसे कुछ सितारे यदाकदा उभरते रहे। ऑस्ट्रेलिया की टीम तेज गेंदबाजी में एक बेहतर टीम है जबकि दक्षिण अफ्रीका और इंगलैंड की टीमों का पुनर्गठन चल रहा है। अगर लंबे समय तक शीर्ष पर रहना है तो तेज गेंदबाजी का बेहतर होना बहुत आवश्यक है।

यह भारत की सफलता की कहानी है। दो दशकों में उभरी नीली क्रांति सन 1983 की तरह कोई अचानक मिली कामयाबी नहीं है। ऐसा इसलिए हुआ कि देश में क्रिकेट के खेल में बेहतरी के लिए बदलाव हुआ है। इस सफलता की सबसे बड़ी वह है सही मायनों में श्रेष्ठता का उभार। जैसा कि शाहरुख खान की हालिया फिल्म जवान ने दिखाया हम सभी को देश में ‘सिस्टम’ को गाली देने और उस पर हमला बोलने में बहुत आनंद आता है।

क्रिकेट में यह सिस्टम क्या है? आज जय शाह, बीते हुए कल में अनुराग ठाकुर और उससे भी पहले शरद पवार, जगमोहन डालमिया, एन श्रीनिवासन, माधव राव सिंधिया या आईएस बिंद्रा और राजीव शुक्ला तो हमेशा ही उसका हिस्सा रहते हैं। इन सभी पर कभी भी निशाना साधा जा सकता है। चूंकि ये क्रिकेटर नहीं थे तो इस खेल के प्रशासन में इनकी रुचि की वजह क्या हो सकती है? जाहिर है उन पर हमला करना आसान था।

यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसमें दखल दिया और बीसीसीआई को अनुराग ठाकुर से लेकर जय शाह को सौंप दिया। भारतीय अफसरशाही के सबसे ताकतवर लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय से हाथ मिलाकर भारतीय क्रिकेट को राजनेताओं और कारोबारियों की मौजूदा पकड़ से मुक्त कराने का प्रयास किया। वे बुरी तरह नाकाम रहे और इसी बात ने भारतीय क्रिकेट को बचा लिया।

इससे पता चलता है कि भारतीय क्रिकेट कितनी मजबूत है और उसे चलाने वाले कथित बदनाम समूह की प्रतिबद्धता कितनी अधिक है। बीसीसीआई को इसके लिए लिए 20-30 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। यह पैसा शुल्क के रूप में और न्यायालय के आदेश के पालन में लगा जिसके तहत एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश-अफसरशाह को दूसरी जगह काम पर लगाया गया। परंतु इन बातों ने निष्पक्ष चयन, क्रिकेट में निवेश और उसके विकास को बचा लिया।

इसके नतीजे में हमने देखा कि भारतीय क्रिकेट देश में सर्वाधिक निष्पक्ष और काबिलियत के आधार पर चयन वाला क्षेत्र बना। यह राजनीति, अफसरशाही और यहां तक कि न्यायपालिका से भी अधिक निष्पक्ष है। लंबे समय से चयन को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ। बोर्ड को चाहे जो चला रहा हो उन्हें पता है कि अगर वे चयन में गड़बड़ी करेंगे और टीम का प्रदर्शन खराब होगा तो बाजार इसकी सजा देगा। आप न्यायाधीशों से भले न डरें लेकिन प्रशंसकों से डरना होता है क्योंकि वही इस खेल के उपभोक्ता हैं और बाजार के जरिये अपनी बात रखते हैं।

आप गूगल पर भारतीय टीम के सदस्यों के क्षेत्र, जाति या धर्म का पता लगा सकते हैं। आपको ऐसा कोई अन्य संस्थान नहीं मिलेगा जो विविधता का इतना ध्यान रखता हो। यहां हर कोई अपनी काबिलियत पर है। दक्षिण अफ्रीका की तरह भारत ने कभी खेलों में आनुपातिक व्यवस्था या उपचारात्मक कदमों को जगह नहीं दी।

भारतीय क्रिकेट टीम की विविधता को देखें तो वह केंद्रीय मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्रियों, अफसरशाहों, सशस्त्र बलों के नेतृत्व और न्यायपालिका तथा हमारे मीडिया के समाचार कक्षों से भी अधिक विविधता भरा है।

भारतीय क्रिकेट के उभार से निकला यही सबसे बड़ा संकेत है। योग्यता शीर्ष पर अपनी जगह बना लेती है, बशर्ते कि आप काबिलियत को सही जगह दें। यह भी कि ऐसा केवल बाजार ही सुनिश्चित कर सकता है, न कि कोई सरकारी आदेश या न्यायिक हस्तक्षेप।

First Published : November 19, 2023 | 9:04 PM IST