बढ़ती महंगाई के खिलाफ लड़ाई जारी रखते हुए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने जुलाई के अंतिम सप्ताह में ब्याज दरें बढ़ा दीं जो 22 साल का उच्चतम स्तर है। मौजूदा चक्र में यह 11 वीं दर वृद्धि है जो 40 वर्षों में लगभग शून्य से मौजूदा वर्तमान स्तर तक फेडरल रिजर्व की सबसे आक्रामक दर वृद्धि मानी जा सकती है। अमेरिका में महंगाई में लगातार 12 महीनों तक गिरावट आई है और जून में यह 3 प्रतिशत के स्तर पर थी जो एक साल पहले के 9 प्रतिशत से कम है और दो साल से अधिक समय में सबसे कम थी। दरों में ताजा बढ़ोतरी के बाद फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने कहा कि केंद्रीय बैंक सितंबर में होने वाली अगली बैठक से पहले आर्थिक आंकड़ों पर करीब से नजर रख रहा है।
एक दिन बाद यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने एक-चौथाई प्रतिशत अंक की दर वृद्धि की घोषणा की, जिससे इसकी मुख्य दर 3.75 प्रतिशत हो गई और इसके साथ ही जुलाई 2022 से यूरोजोन में दरों में लगातार वृद्धि का एक वर्ष पूरा हो गया। मुख्य मुद्रास्फीति मई के 6.1 प्रतिशत से घटकर जून में 5.5 प्रतिशत हो गई, लेकिन यह अब भी ईसीबी के 2 प्रतिशत के लक्ष्य से बहुत ऊपर है।
पिछले सप्ताह बैंक ऑफ इंगलैंड ने लगातार 14वीं बार ब्याज दरों को 5 फीसदी से बढ़ाकर 5.25 फीसदी कर दिया था जो 15 साल का उच्च स्तर है। इस बीच, ब्राजील के केंद्रीय बैंक ने अपनी बेंचमार्क ब्याज दर को आधा प्रतिशत कम करते हुए अपने दर-कटौती चक्र की शुरुआत की और ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंक ने अगस्त की बैठक में ब्याज दरों को 4.1 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा। अब भारत का केंद्रीय बैंक इस सप्ताह क्या करेगा?
भारत में वार्षिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति की दर जून में तीन महीने के उच्च स्तर 4.81 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो मई में अपने 25 महीने के निचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर आ गई थी। यह तेजी, सब्जियों और दालों की कीमतों में वृद्धि के चलते आई है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने जून में भी दरें न बढ़ाने का फैसला जारी रखा जिसे इसने बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए मई 2022 से अपनी नीतिगत दर को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत करने के बाद अप्रैल में जोर दिया था।
पिछली बार उसने फरवरी में नीतिगत दर में एक-चौथाई प्रतिशत की वृद्धि की थी, जो मई 2022 में ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू होने के बाद से सबसे कम है। इससे नीतिगत दर बढ़कर 6.5 प्रतिशत हो गई, जो आखिरी बार फरवरी 2019 में देखी गई थी जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति 2.57 प्रतिशत थी। फरवरी में ब्याज दर बढ़ाते समय नीतिगत दरों से जुड़े बयान में आगे कोई दिशानिर्देश नहीं दिए गए थे।
अप्रैल की मौद्रिक नीति समीक्षा में भी यह आशावाद नजर आता रहा और जून में आरबीआई ने देखा कि ‘अनिश्चितता तुलनात्मक रूप से कम दिखती है और आगे का रास्ता कुछ हद तक स्पष्ट है।’ इसमें इस बात पर जोर डाला गया कि ‘भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र इस दौर की अभूतपूर्व प्रतिकूल परिस्थितियों वाली दुनिया में बेहद मजबूत और काफी हद तक लचीली है।’
यह रुझान अब तक जारी है, लेकिन इसके लिए टमाटर (और अन्य सब्जियों और दालों) की बढ़ी कीमतों को दोष दें या नहीं फिर भी यह कहा जा सकता है कि आरबीआई की पिछली नीतिगत समीक्षा के बाद से महंगाई के प्रति दृष्टिकोण बदल गया है। कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि यह जुलाई में 6.5 प्रतिशत के आसपास रहेगी और अगस्त में भी ऊंची बनी रहेगी।
आईसीआईसीआई बैंक के एक हाल के शोध नोट में कहा गया है कि मौजूदा बारिश के प्रभाव से सितंबर तक टमाटर का उत्पादन कम होगा और इसकी कीमतों में भी बदलाव की संभावना है और उसके बाद कीमतें कम होने की उम्मीद होगी। मई की तुलना में जून में टमाटर की कीमतें 64.5 प्रतिशत अधिक थीं वहीं जुलाई में जून की तुलना में 210 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे अगले कुछ महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ेगी। चावल, दाल और मसालों की कीमतों में भी तेजी देखी जा रही है।
वैश्विक जिंसों की कीमतें, मुख्य महंगाई के लिए कोई खतरा नहीं हैं लेकिन तेल निर्यातक देशों के संगठन, ओपेक की आपूर्ति से जुड़ी सख्ती के कारण तेल की कीमतें बढ़ रही हैं। इस पृष्ठभूमि में, विश्लेषकों ने फिर से अपने मुद्रास्फीति अनुमान को बढ़ाया है। पिछली मौद्रिक नीति समीक्षा में रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024 के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति को मामूली रूप से घटाकर 5.1 प्रतिशत कर दिया जो जून में 5.2 प्रतिशत थी।
फिच ने पहली तिमाही के लिए मुद्रास्फीति 4.6 प्रतिशत, दूसरी तिमाही के लिए 5.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही के लिए 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही के लिए 5.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है जिसमें जोखिम समान रूप से है।
यह निश्चित है कि वित्त वर्ष 2024 की दूसरी और तीसरी तिमाही में सीपीआई मुद्रास्फीति आरबीआई के अनुमान से अधिक होगी।
क्या ऐसे समय में आरबीआई दरों में बढ़ोतरी करेगा? जून में, आरबीआई गवर्नर ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यह रोक केवल उस बैठक के लिए थी और मंहगाई से जुड़ी उम्मीदों को मजबूती से बनाए रखने और मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक लाने के लिए आवश्यक रूप से आगे की मौद्रिक कार्रवाई तुरंत और उचित रूप से की जाएगी। मैं इस सप्ताह दरों में बढ़ोतरी पर जोर नहीं दे रहा हूं। रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति पर पैनी नजर रखते हुए नीतिगत दर और अपने रुख दोनों के लिए यथास्थिति बनाए रखने का विकल्प चुनेगा।
आरबीआई का लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्य 4 प्रतिशत या ऋणात्मक 2 प्रतिशत अंक है। महामारी के बाद, यह दायरा उच्च स्तर पर महंगाई को संभालने में सफल था। अब निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ आधार पर इसे कम कर 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक लाने पर ध्यान दिया जा रहा है।
यह कदम वास्तव में समायोजन खत्म करने के तरीके के रूप में दिखेगा क्योंकि सरकारी नकदी शेष, सहित पूरे तंत्र में नकदी 3.6 लाख करोड़ रुपये है। नकदी में योगदान देने वाले तीन कारक 2,000 रुपये के नोटों को बाजार से वापस लिए जाने, सरकार को आरबीआई का लाभांश भुगतान (87,416 करोड़ रुपये) करने और केंद्रीय बैंक की बाजार से डॉलर की खरीद शामिल है। यह जो भी डॉलर खरीदता है, उसके बदले तंत्र में रुपये की बराबर राशि आती है।
रिजर्व बैंक ने 1 अगस्त को कहा था कि 2,000 रुपये के नोटों में से 88 प्रतिशत (मार्च में चलन में रहे 3.62 लाख करोड़ रुपये में से 3.14 लाख करोड़ रुपये) बैंकिंग तंत्र में वापस आ गए हैं। ऐसे नोटों को जमा करने की आखिरी तारीख 30 सितंबर है।
आरबीआई ने अपने नकदी प्रबंधन में सक्रियता दिखाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है जिससे यह सुनिश्चित हो कि वृद्धि के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं और वित्त वर्ष 2024 में सरकार के रिकॉर्ड 15.4 लाख करोड़ रुपये के सकल बाजार उधारी कार्यक्रम को व्यवस्थित तरीके से पूरा किया जाए।
आरबीआई ने जून में वर्ष के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के लिए अपने 6.5 प्रतिशत के अनुमान को नहीं बदला है। वृद्धि दर के अनुमान में बदलाव की संभावना नहीं है, लेकिन क्या इससे साल के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के अनुमान में बदलाव होगा?
जून में आरबीआई ने कहा था कि धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के कारण अनुमान में 10-12 आधार अंक (बीपीएस) का असर पड़ सकता है, भले ही बढ़ोतरी का एक हिस्सा पहले ही अनुमान में शामिल हो चुका है।
वह या तो मुद्रास्फीति के अनुमान में मामूली वृद्धि कर सकता है या इसे कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ सकता है। फिलहाल दरों में बढ़ोतरी पर रोक जारी रहेगी। हालांकि जरूरत पड़ने पर आरबीआई कदम उठाने के लिए तैयार है। रुख में बदलाव भी जल्द होने की संभावना नहीं है। हमें अप्रैल 2024 से शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष तक दरों में कटौती का इंतजार करना पड़ सकता है।