समुद्र के भीतर बिछी केबल (सबमरीन केबल) डिजिटल दौर की मूक जीवनरेखाएं हैं, जो वैश्विक इंटरनेट ट्रैफिक के 99फीसदी का संचालन करने में अहम भूमिका निभाती हैं और हमारी अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक विकास को गति देती हैं। इन केबल की क्षमता हर दो से ढाई साल में दोगुनी हो जाती है। हर साल इनमें 70,000 से एक लाख किलोमीटर का इजाफा होता है और इन पर 10 अरब डॉलर का निवेश होता है।
वर्ष 2024 तक, दुनिया भर में 550 से ज्यादा केबल सिस्टम बिछे हुए थे जिनकी कुल लंबाई 14 लाख किलोमीटर है यानी ये इतनी लंबी हैं कि इनसे पृथ्वी को 35 बार घेरा जा सकता है। भारत में डेटा इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में उसके लिए भी समुद्र के भीतर केबल नेटवर्क का बढ़ना बहुत जरूरी है। अभी तक, निजी कंपनियों के बदौलत इस उद्योग में तेज वृद्धि हुई है लेकिन यह काम थोड़ा बेतरतीब रहा है। लूजोन स्ट्रेट और मलक्का स्ट्रेट जैसे कुछ खास जगहों पर इन केबलों का बेहद घना क्लस्टर है, जिससे उनके टूटने का खतरा बना हुआ है। इन सबमरीन केबल के बेहतर प्रबंधन के लिए कोई औपचारिक नियम-कानून नहीं है, जिससे सुरक्षा संबंधी दिक्कतें पैदा होने पर भविष्य में गंभीर रणनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
एक रणनीतिक बदलाव यह परिभाषित कर रहा है कि देश समुद्र के नीचे केबलों को किस प्रकार अहमियत दे रहे हैं। दरअसल, अब इन्हें सिर्फ वाणिज्यिक बुनियादी ढांचा ही नहीं बल्कि देश की संप्रभुता और वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने वाली चीज मानी जा रही है। अमेरिका का लंबे समय से इस क्षेत्र में दबदबा रहा है, लेकिन चीन अपनी ‘बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव’ योजना का इस्तेमाल कर, प्रमुख संचार मार्गों पर अपना नियंत्रण करने में तेजी से आगे बढ़ रहा है। पाकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाकर, चीन के साथ मिलकर ‘डिजिटल सिल्क रोड’ में अपनी भूमिका तैयार कर रहा है।
चीन द्वारा बनाई गई केबल को लेकर बढ़ती चिंता के कारण, अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान ‘स्वच्छ केबल’ समूह बनाने पर जोर दे रहे हैं। भूराजनीतिक दबाव के कारण, दक्षिण पूर्व एशिया-पश्चिम एशिया-पश्चिमी यूरोप 6 केबल परियोजना से चीन की कंपनियों के हटने के बाद, उन्होंने यूरोप-पश्चिम एशिया-एशिया परियोजना के तहत फिर से मिलकर काम शुरू किया। चाइना टेलीकॉम, चाइना मोबाइल और चाइना यूनिकॉम के नेतृत्व में, चीन अब हॉन्गकॉन्ग, हेन्नान, सिंगापुर, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मिस्र और फ्रांस को जोड़ रहा है जिसके लिए हुआवे मरीन टेक्नॉलजीज भी मुख्य ठेकेदार कंपनी के रूप में मौजूद है।
दुर्घटना से होने वाले नुकसान के अलावा, सबमरीन केबलों को क्षतिग्रस्त करने का एक बड़ा खतरा है, क्योंकि इसे आसानी से अंजाम दिया जा सकता है। हाल ही में, चीन के एक जहाज शुनशिंग-39 ने ताइवान के कीलंग हार्बर के पास समुद्र के नीचे की केबलों को काट दिया जो चीन की सीधे-सीधे युद्ध घोषित किए बिना किसी को परेशान करने की नीति के तहत ही केबल हमलों के इस्तेमाल का संकेत है।
स्नोडेन लीक से पता चला कि दुश्मनों द्वारा स्प्लाइस चैंबर (जोड़ने वाले हिस्से) और ऑप्टिकल स्प्लिटर का उपयोग करके केबल को टैप किया जा रहा है। लूजोन स्ट्रेट, दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में चीन के खोजी जहाजों की बढ़ती गतिविधि, वास्तव में केबलों का नक्शा बनाने और जासूसी उपकरण लगाने के संकेत देती है ताकि जरूरत पड़ने पर संभावित सामरिक बाधा के लिए तैयारी की जाए।
चीन केबल बिछाने, केबल शिप बनाने और दोहरे उपयोग वाले समुद्री बुनियादी ढांचा तैयार करने में अपनी भूमिका तेजी से बढ़ा रहा है। पश्चिमी देशों और जापान की कंपनियां अब भी केबल मरम्मत में आगे हैं, लेकिन चीन अपनी क्षमता को बढ़ा रहा है और चार से छह मरम्मत करने वाले जहाजों का संचालन कर रहा है, जिनमें से कम से कम एक का संबंध, पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीन की सेना से बताया जाता है।
इसके विपरीत, भारत के पास ऐसा केवल एक निजी जहाज है और यह बड़े पैमाने पर विदेशी जहाजों पर निर्भर है। यह निश्चित रूप से कमजोर स्थिति को दर्शाता है खासतौर पर संकट के दौरान, क्योंकि इससे देरी का खतरा बना रहता है। भारत को अपनी केबल मरम्मत क्षमता बढ़ाने पर विचार करना चाहिए और यह संभवतः किसी सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्ड के माध्यम से होना चाहिए। इससे न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि चीन के जहाजों से सावधान रहने वाले क्षेत्रीय भागीदारों को भी सहयोग मिलेगा।
सबमरीन केबल से जानकारी चुराने के खतरे से निपटने के लिए, महत्त्वपूर्ण रास्तों की लगातार निगरानी करने के साथ ही समुद्र तल के नीचे आधुनिक क्षमताएं विकसित करना जरूरी है, जिनमें सेंसर और मानवरहित जहाज शामिल हैं। आईडेक्स पहल के तहत एक दर्जन से अधिक ऐसी तकनीकें खरीदी जा रही हैं और इन्हें तेजी से पूरा किया जाना चाहिए।
कई देशों ने अपने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (ईईजेड) और महाद्वीपीय क्षेत्र के दायरे के भीतर सबमरीन केबलों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं। अमेरिका में, कानूनों के तहत संस्थाओं को सबमरीन केबल बिछाने के लिए औपचारिक अनुमति लेनी होती है और साथ ही कोई भी गतिविधि न करने वाले सुरक्षित क्षेत्र बनाने होते हैं। इसके अलावा ईईजेड और महाद्वीपीय क्षेत्र के भीतर उल्लंघन करने पर जुर्माना लगता है। इसके विपरीत, भारतीय कानून समुद्री तल के संसाधनों और प्रतिष्ठानों की स्थापना के लिए अधिकार तो देता है, लेकिन नियम तभी लागू करने की अनुमति देता है जब किन्हीं गतिविधियों के कारण सीधे इन अधिकारों में हस्तक्षेप होता है। यह एक बड़ी कमी है जिसे दूर करने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में सबमरीन केबलों की सुरक्षा करना बहुत मुश्किल है क्योंकि वहां कानून को ठीक से लागू करने की स्थिति कमजोर है और साथ ही अंतरराष्ट्रीय कानून में भी कमियां हैं।
समुद्री क्षेत्र से जुड़े कानून पर संयुक्त राष्ट्र समझौता सभी देशों को खुले समुद्र में केबल बिछाने की अनुमति देता है और उनसे यह भी कहता है कि वे अपने नागरिकों या अपने देश के झंडे वाले जहाजों द्वारा जानबूझकर या लापरवाही से हुए नुकसान को अपराध मानें और इसे लागू करने में सहयोग करें। लेकिन, जब कानून को लागू करने का काम उन जहाजों वाले देश पर छोड़ दिया जाता है तब किसी देश के सरकार समर्थित नुकसान से निपटना बिल्कुल ऐसा ही है जैसे चोर को घर की चाबियां सौंपकर घर के सुरक्षित रहने की उम्मीद करना।
अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) केबल बिछाने और सुरक्षित क्षेत्रों के लिए तकनीकी मानकों और दिशानिर्देशों पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन नियमन पर नहीं। आईटीयू के तहत अंतरराष्ट्रीय केबल संरक्षण समिति (आईसीपीसी), केबल संरक्षण क्षेत्रों के लिए बेहतर कदम और मानदंड की बात करती है। आईसीपीसी के तहत हाल ही में एक और अंतरराष्ट्रीय सलाहकार निकाय स्थापित किया गया है, लेकिन यह भी केवल सलाहकार की भूमिका तक ही सीमित है। कोई अंतरराष्ट्रीय समुद्री निगरानी व्यवस्था न होने के कारण, भारत को खुले समुद्र में सबमरीन केबलों की सुरक्षा के लिए अपने साधन विकसित करने होंगे। इसमें अंतरिक्ष और नौसेना के संसाधनों का उपयोग करके संदिग्ध जहाजों, खासतौर पर चीन के सर्वेक्षण जहाजों की निगरानी करना और हिंद महासागर के प्रमुख गलियारों के पास नौसेना की मौजूदगी बनाए रखना शामिल है।
भारत को निजी परिचालकों के साथ मिलकर छेड़छाड़ रोधी केबल डिजाइन करने, उन्हें समुद्र तल की अधिक गहराई में दबाने और मजबूत इन्क्रिप्शन (गोपनीयता) सुनिश्चित करने के लिए भी काम करना चाहिए। इसके लिए क्वाड सहित मित्र देशों के साथ गंभीर सहयोग आवश्यक है। केबल को इरादतन क्षतिग्रस्त किए जाने के लिए तैयार रहने के लिए, भारत को अतिरिक्त व्यवस्था करने के साथ ही, वैकल्पिक सबमरीन केबल मार्ग तैयार करने होंगे। केबल को राष्ट्रीय स्तर के महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र के तहत औपचारिक रूप से महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना’ घोषित की जानी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा समन्वयक एक राष्ट्रीय सबमरीन केबल सुरक्षा ढांचा बनाने का नेतृत्व कर सकता है, जिसमें सरकार, भारतीय नौसेना, तटरक्षक और निजी केबल ऑपरेटरों जैसे प्रमुख हितधारकों को एक साथ लाया जा सकता है।
आज की दुनिया में, सबमरीन केबलों की सुरक्षा सिर्फ इंटरनेट परिचालन से ही नहीं बल्कि यह देश को सक्षम करने से जुड़ी है। इनकी रखवाली करना केवल अच्छी नीति नहीं है बल्कि यह परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में राष्ट्र की संप्रभुता और रणनीति के प्रमुख आधार की रक्षा करना है।
(लेखक केंद्रीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और पूर्व रक्षा सचिव हैं। ये उनके निजी विचार हैं)