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क्षेत्रीय व्यापार सुदृढ़ीकरण का भारत पर असर

क्षेत्रीय स्तर पर व्यापार का सुदृढ़ीकरण मजबूत हो रहा है। ऐसे में भारत के अलग-थलग पड़ने का खतरा उत्पन्न हो गया है। विस्तार से बता रही हैं अमिता बत्रा

Published by
अमिता बत्रा
Last Updated- April 10, 2023 | 10:13 PM IST

वैश्विक व्यापार की क्षेत्रीय रूपरेखा अब स्पष्ट हो रही है जहां वह मजबूत होता नजर आ रहा है। व्यापारिक क्षेत्र में अब चुनिंदा व्यापार नीतियों को आधार मिल रहा है, खासकर उत्तर अटलांटिक और यूरोपीय संघ जैसे बड़े क्षेत्रीय कारोबारी ब्लॉकों या गुटों में। इस रुख की शुरुआत अमेरिका और चीन के बीच 2018 में कारोबारी तनाव बढ़ने के बाद हुई थी जिसने कोविड महामारी और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद जोर पकड़ लिया। अमेरिका ने 2018 में चुनिंदा जिंस निर्यात पर उच्च शुल्क लगाया और यह द्विपक्षीय अवधारणा में बदल गया। व्यापार का असंतुलन चीन के पक्ष में झुका हुआ था और देश में रोजगार बढ़ाने की मांग अमेरिका की घरेलू राजनीति को प्रभावित कर रही थी। अमेरिका का यह एकपक्षीय कदम विश्व व्यापार संगठन के सर्वाधिक तरजीही देश के सिद्धांत के खिलाफ था लेकिन अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए इसका प्रभाव बहुत अधिक नहीं था। बाद में घटी घटनाएं मसलन महामारी और यूक्रेन संकट आदि वैश्विक व्यापार के लिए अधिक गंभीर और दीर्घकालिक प्रभाव वाली बातें साबित हो सकती हैं। बहरहाल, इन दोनों घटनाओं ने वैश्विक व्यापार की बुनियादी व्यवस्था को प्रभावित किया जो है वैश्विक मूल्य श्रृंखला।

महामारी के प्रसार और लॉकडाउन तथा चीन की कोविड शून्य नीति के कारण मूल्य श्रृंखलाएं बुरी तरह प्रभावित हो गईं। कच्चे माल और प्रोडक्शन असेंबली के लिए चीन के रूप में एक मात्र स्रोत पर निर्भरता उजागर हो गई। वित्तीय संकट के बाद मूल्य श्रृंखला में विविधता के लिए चीन के अलावा किसी अन्य देश का इस्तेमाल करने की नीति सामने आई थी लेकिन इसकी प्रगति बहुत धीमी थी। महामारी ने इसे गति प्रदान की।

यूक्रेन संकट ने इन चिंताओं को बढ़ाया लेकिन साथ ही उसने इन मूल्य श्रृंखलाओं को एक रणनीतिक आयाम और पुनर्गठन का अवसर भी दिया। भू-राजनीतिक कारक अब इन श्रृंखलाओं की मजबूती में एक अहम कारक हैं। अब कम लागत वाले उत्पादन और क्षमता की कीमत पर सुरक्षित और मित्र राष्ट्रों को वैकल्पिक केंद्र माना जा रहा है। व्यापार नीति अब अक्सर रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।

रणनीतिक स्वायत्तता को अक्सर कम निर्भरता के रूप में व्याख्यायित किया जाता है। इसमें जोखिम और अहम रणनीतिक उत्पादों/क्षेत्रों का वर्गीकरण शामिल होता है जिसमें तकनीक, पर्यावरण और ऊर्जा आदि क्षेत्र आते हैं।

अमेरिका में इन्फ्लेशन रिडक्शन ऐक्ट (आईआरए) और यूरोपीय संघ में 2022 में पारित कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकनिज्म (सीबीएएम) ऐसी रणनीतियों का उदाहरण हैं। इनमें जोखिम से दूर विविधता को सक्षम बनाने के साथ-साथ यह संभावना होती है कि वे क्षेत्रीय ब्लॉकों तथा गठजोड़ों में व्यापारिक और आर्थिक एकीकरण को गहन बनाने में मदद करें।

सीबीएएम के माध्यम से प्रयास यह है कि व्यापार नियमों को जलवायु परिवर्तन और उत्सर्जन में कमी से जोड़ा जाए और कीमतों को ऐसा बनाया जाए कि वे आयातित वस्तुओं में कार्बन सामग्री के सटीक संकेतक शामिल हों। इसके तहत व्यापार और उत्पादन को उन देशों में स्थापित करने की बात शामिल है जहां जलवायु नीतियां एक समान ऊंची हों और जलवायु नियामक ढांचा यूरोपीय संघ के अनुरूप हो।

सीमेंट, बिजली, एल्युमीनियम, लौह और इस्पात, उर्वरक तथा हाइड्रोजन जैसे कार्बन आधारित आयात पर शुल्क लगाने से जोखिम वाले देशों से दूर विविधता को अपनाने में तो मदद मिलती है लेकिन यह अन्य विकासशील तथा कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की कार्बन उत्सर्जन मानक से जुड़ी कम क्षमताओं के कारण उन्हें नुकसान पहुंचाता है। यह भेदभावकारी प्रकृति विश्व व्यापार संगठन के तरजीही राष्ट्र के सिद्धांत के साथ विरोधाभासी है।

इसी प्रकार अमेरिका में आईआरए पर्यावरण संबंधी चिंताओं का समाधान करता है और ऊर्जा सुरक्षा का समर्थन करता है। अधिनियम का स्थानीय सामग्री संबंधी नियम अमेरिका में घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देता है और वह उत्तरी अमेरिका में गहरे एकीकरण के लिए आपूर्ति श्रृंखला को मित्रवत देशों में रखने की हिमायत करता है। बिजली से चलने वाले वाहन बनाने के क्षेत्र में उत्तरी अमेरिका के उत्पादकों को रूल ऑफ ओरिजिन का लाभ दिया जाता है जिसके तहत ऐसे वाहनों पर कर क्रेडिट को बैटरी में लगने वाले खनिज से जोड़ दिया जाता है जिसका खनन अमेरिका में या उसके साथ मुक्त व्यापार समझौते वाले देशों में होता हो। या फिर जिसे अमेरिका में पुनर्चक्रीकृत किया जाता हो।

यह भी संकेत किया गया कि खनिज घटक और घटक मूल्य दोनों का प्रतिशत जो कर क्रेडिट से संबद्ध होगा, समय के साथ बढ़ेगा। ध्यान रहे कर क्रेडिट दूसरे देशों से आने वाले घटकों के लिए लागू नहीं होगा। जाहिर है इस कवायद का अर्थ है ईवी के क्षेत्र में उत्तर अमेरिकी मूल्य श्रृंखला को मजबूत करना।

तीसरा क्षेत्रीय कारोबारी ब्लॉक आसियान-पूर्वी एशिया का है और वह भी उच्च आर्थिक एकीकरण की दिशा में बढ़ रहा है। यूरोपीय संघ और उत्तरी अमेरिका के उलट एशियाई आर्थिक एकीकरण की प्रक्रिया विश्व व्यापार संगठन के नियमों तथा बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौतों यानी क्षेत्रीय व्यापक एवं आर्थिक साझेदारी यानी आरसेप तथा व्यापक एवं प्रगतिशील प्रशांत पार साझेदारी (सीपीटीपीपी) के पालन के साथ मजबूत हो रही है। यहां समेकित स्थानीय उत्पत्ति नियम के साथ सुसंगत नियामकीय प्रक्रियाएं, तकनीकी नियमन, मानक एवं व्यापार संबंधी हल आदि सभी एशिया में गहन आर्थिक एकीकरण में मददगार साबित होंगे।

आरसेप का परिचालन जनवरी 2022 में शुरू हुआ था और कई तरह के लचीलेपन और सदस्य देशों के अलग-अलग आर्थिक विकास को देखते हुए भिन्न भिन्न समय सीमा के साथ इसने बीते समय में काफी गहन एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया है। आरसेप के सात सदस्य अधिक कठोर उच्च व्यवस्था वाले सीपीटीपीपी के भी सदस्य हैं और वह पहले ही सक्रिय है। ऐसे में आसियान व्यापार ब्लॉक में आर्थिक एकीकरण अपरिहार्य है।

संभावित तकनीकी, प्रविधि संबंधी और संस्थागत चुनौतियों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एशिया में क्षेत्रीय कारोबारी सुदृढ़ीकरण और यूरोपीय संघ तथा उत्तरी अमेरिका में आंतरिक दृष्टि वाली भेदभावकारी व्यापार तथा मूल्य श्रृंखलाएं अनिवार्य तौर पर देखने को मिलेंगी। यह बात एक तथ्य के रूप में उभर कर सामने आ रही है।

विकासशील संदर्भों में बात करें तो एक बड़ा प्रश्न उत्पन्न होता है: भारत मध्यम और दीर्घ अवधि में किसके साथ व्यापार करेगा? वह आरसेप का सदस्य नहीं है और न ही उसने सीपीटीपीपी की सदस्यता के लिए आवेदन किया है। यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौता अभी भी बातचीत के अधीन है और अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौता अभी बहुत दूर की कौड़ी है। जरूरत यह है कि हम अल्पावधि से परे एक व्यवहार्य और वृद्धि बढ़ाने वाली व्यापार नीति को लेकर अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करें।

(ले​खिका जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं)

First Published : April 10, 2023 | 10:13 PM IST