अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि भारत को हर साल कितनी नौकरियां पैदा करने की जरूरत है? इस सवाल के कई कारण हैं। पहला, परंपरागत अर्थशास्त्र बताता है कि अगर एक अर्थव्यवस्था बढऩे की इच्छा रखती है तो उसे अधिक श्रम को उत्पादक नौकरियों में लगाना होगा। दूसरा, भारत के पास विशाल एवं बढ़ती हुई युवा आबादी होने से उन्हें बढिय़ा नौकरियां मुहैया कराने से जीवन में एक बार मिलने वाला जनांकिकी लाभांश भुनाया जा सकता है।
तीसरा, अगर इस विशाल एवं युवा आबादी को रोजगार नहीं मिलता है तो वे अशांत हो सकते हैं और एक सीमा से अधिक होने पर वह असंतोष सामाजिक अस्थिरता का भी सबब बन सकता है। चौथा, भारत में श्रम भागीदारी दर बेहद कम है और रोजगार दर भी कम है। वैश्विक मानकों की तुलना में भारत में कामकाजी उम्र वाली आबादी का एक बेहद छोटा हिस्सा ही काम कर रहा है या काम करने की इच्छा रखता है। तेजी से बढ़ती हुई विशाल अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत की छवि के लिए यह अटपटा है।
यह उन कारणों की कोई विस्तृत सूची नहीं है कि भारत को हर साल कितने रोजगार पैदा करने चाहिए? इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं।
पहला कारण इस लिहाज से प्राथमिक है कि आर्थिक वृद्धि होने पर वस्तुओं एवं सेवाओं का अधिक उत्पादन होता है और इसके लिए तार्किक रूप से अधिक श्रम नियोजन एवं पूंजी की जरूरत होनी चाहिए। ऐसा तभी किया जा सकता है जब अधिक रोजगार पैदा किए जाएं और अधिक लोगों को रोजगार मिले। लेकिन भारत की वृद्धि के इस किस्से की एक पुरानी एवं मशहूर पहेली यह है कि वृद्धि तो दशकों से होती आ रही है लेकिन शुद्ध रूप में इसकी वजह से कोई नया रोजगार नहीं पैदा हो रहा है।
वर्ष 1993-94 से लेकर 2011-12 के दौरान वास्तविक सकल मूल्य-वद्र्धन (जीवीए) सालाना 6.5 फीसदी रहा था। आधिकारिक आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए संतोष मेहरोत्रा ने रोजगार के बारे में यह अनुमान लगाया है कि इस अवधि में सालाना रोजगार वृद्धि महज 1.3 फीसदी ही रही। इसी तरह 2011-12 से लेकर 2017-18 के दौरान वास्तविक जीवीए भले ही 6.9 फीसदी वार्षिक रहा लेकिन इस दौरान रोजगार में तो गिरावट ही आ गई। सीएमआईई के सर्वे की मानें तो वर्ष 2016-17 और 2019-20 के दौरान 5.5 फीसदी की वार्षिक वृद्धि होने के बावजूद इस अवधि में रोजगार में फिर गिरावट आई।
साफ है कि बीते तीन दशकों में औसतन 5 फीसदी से अधिक दर से वास्तविक आर्थिक वृद्धि करने के बावजूद भारत की रोजगार वृद्धि 1 फीसदी से भी कम रही है। पिछले आठ वर्षों में भारत इसी दर से वृद्धि करता रहा है और इस दौरान उसके कार्यबल में सिकुडऩ आई है। इस तरह हम रोजगार-रहित वृद्धि से कम रोजगार वाली वृद्धि की तरफ बढ़े हैं।
इसके बावजूद विश्व बैंक की दक्षिण एशिया इकनॉमिक फोकस स्प्रिंग 2018 रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अपनी मौजूदा रोजगार दर को बरकरार रखने के लिए हर साल 80 लाख रोजगार पैदा करने होंगे। इसके लिए उसे अपनी आर्थिक वृद्धि को मौजूदा स्तर से ऊंचा उठाना होगा। भारत ने वर्ष 2016-17 से ही इस जरूरी संख्या का आधा रोजगार भी नहीं पैदा किया है। जहां तक रोजगार दर का सवाल है तो वह गिरती ही जा रही है। हर साल 80 लाख रोजगार का सृजन भारत के लिए एक मोटा आकलन ही है।
कामकाजी उम्र वाली आबादी (15 साल से अधिक उम्र के लोग) में हर महीने करीब 20 लाख की बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इनमें से सभी लोग रोजगार की तलाश में नहीं लगते हैं। औसत कार्यबल भागीदारी दर 42 फीसदी के करीब है। इस तरह यह माना जा सकता है कि कामकाजी उम्र वाली आबादी में शामिल होने वाले 20 लाख नव-प्रवेशियों में से 42 फीसदी लोग हर महीने रोजगार की तलाश में होंगे। इस तरह हर महीने 8.4 लाख और साल भर में करीब 1 करोड़ नए रोजगार की दरकार होती है। अगर हम स्वीकार्य बेरोजगारी दर को 10 फीसदी मान लें तो भी भारत को सालाना 90 लाख रोजगार अवसरों की जरूरत पड़ेगी।
यहां पर चर्चा बेहद कम रोजगार दर होते हुए भी कार्यबल में शामिल नए लोगों के मुद्दे पर हो रही है। वर्ष 2019-20 तक भारत में काम करने के ख्वाहिशमंद करीब 4.5 करोड़ बेरोजगार लोग थे। इनमें से 3.3 करोड़ लोग पूरी शिद्दत से काम की तलाश में जुटे हुए थे लेकिन उन्हें नाकामी ही मिल रही थी जबकि बाकी 1.2 करोड़ लोग प्रच्छन्न बेरोजगारी के शिकार थे। कुल 4.5 करोड़ बेरोजगारों में से 3.1 करोड़ लोगों की उम्र 30 साल से कम थी।
ऐसे में असली चुनौती श्रम भागीदारी एवं रोजगार दरों में बढ़ोतरी की है। युवा आबादी की बढ़ती संख्या के बावजूद नए रोजगार पैदा कर पाने में भारत की नाकामी को देखते हुए इन दरों में वृद्धि की कोई भी चर्चा बेमानी ही लगती है। तात्कालिक चिंता यह होनी चाहिए कि इन दरों में गिरावट न आए। पिछले चार वर्षों में श्रम भागीदारी दर 46 फीसदी से गिरकर 2019-20 में 43 फीसदी पर आ गई। वर्ष 2020-21 के मध्य तक यह और भी गिरावट के साथ 41 फीसदी से भी नीचे आ गई है। वहीं रोजगार दर 43 फीसदी से गिरकर 2019-20 में 39 फीसदी पर आ गई थी और सितंबर 2020 तक इसका आंकड़ा 38 फीसदी पर खिसक चुका है।
रोजगार दर को फिर से वर्ष 2016-17 के 43 फीसदी स्तर पर ले जाने के लिए भारत को आज 5 करोड़ नए रोजगार की जरूरत होगी। भारत में हालिया इतिहास को देखें तो यही लगता है कि भारत सालाना 80-90 लाख रोजगार ही पैदा कर सकता है। हालांकि अगले कुछ दशकों में भारत की युवा आबादी कम होने लगेगी जिससे घटती रोजगार दर की समस्या भी दूर हो सकती है। लेकिन हम जनांकिकी लाभांश का अवसर हमेशा के लिए गंवा देंगे।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ हैं)