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China+1 में अड़चन? कितनी कारगर होगी Apple और Foxconn के खिलाफ चीनी कार्रवाइयाँ

चीनी सरकार द्वारा हाल ही में उठाए गए कदम लाभ की अपेक्षा अधिक नकारात्मक परिणाम दे सकते हैं, बता रहे हैं

Last Updated- July 09, 2025 | 9:52 PM IST
China

ताइवान की कंपनी दुनिया भर के लिए उत्पाद बनाने का काम भारत में करने जा रही है मगर चीन की सरकार उसकी इन कोशिशों में अड़चन डालने लगी है। वास्तव में इससे चीन का दमखम नहीं बल्कि कमजोरी नजर आती है। हालांकि चीन की सरकार को लग रहा है कि उच्च कौशल वाली गतिविधियों को अपने यहां से भारत नहीं जाने देना उसका चतुराई भरा कदम है मगर वास्तव में इसे देखकर दुनिया भर की कंपनियां चीन में कम से कम काम करने की कोशिश करेंगी।

दो बातें एकदम सच हैं: विश्वस्तरीय विनिर्माण के लिए गहरे ज्ञान की जरुरत है और वह ज्ञान चीन के बाहर भी कई जगहों पर है। भारत के बेहतरीन संस्थानों को दूसरे देशों से यह ज्ञान हासिल करने के लिए दोगुनी कोशिश करनी होगी। अमेरिका में होने वाले माल के आयात पर नजर डालते हैं तो यह बात सच है कि भारत से वहां माल पहुंचाना महंगा पड़ता है। मगर सच यह भी है कि 2007 से 2009 के बीच जब वहां चीन से आयात चरम पर था तब अमेरिका में भारत के मुकाबले चीन से 15 गुना ज्यादा माल पहुंचता था। उसके बाद से भारत का पलड़ा भारी होता गया। 2009 से 2018 के बीच भारत को थोड़ा-बहुत फायदा होता रहा मगर 2018 में जब पश्चिम ने ‘तीसरा वैश्वीकरण’ शुरू किया तो भारत का फायदा बढ़ता गया। मार्च-अप्रैल 2025 में अमेरिका में चीन से पहुंचा माल भारत से आए माल का केवल पांच गुना था।

उस समय अमेरिका में ‘लिबरेशन डे’ की घोषणा के बीच चीन से होने वाला आयात बेहद अव्यवस्थित हो गया था, इसलिए थोड़ा पीछे जाएं तो पता चलेगा कि अमेरिका में चीन से आयात भारत के आयात का पांच गुना ही था।

चीन का अभिजात वर्ग हमेशा ही भारत को तिरस्कार से देखता रहा है। आप कह सकते हैं कि जो पांच गुना बड़ा होगा वह खुद को श्रेष्ठ समझेगा ही। परंतु चीन कठिन समय से गुजर रहा है। शी चिनफिंग 2012 में सत्ता में आए। उन्होंने सत्ता का केंद्रीकरण किया, राष्ट्रवादी नीतियां बनाईं और जबरदस्त आर्थिक तथा राजनीतिक उथलपुथल पैदा हो गई। ऐसे में चीन के लोग भारत की तरफ चिंता से देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि ‘2009 में 15 गुना से हम 2025 में पांच गुना बड़े ही बचे हैं। यह अच्छी बात नहीं है’।

कमजोर पड़ने के इस अहसास ने फॉक्सकॉन के खिलाफ हालिया कदम उठवाए होंगे। चीन ने अपने नागरिकों और विशेष उपकरणों के निर्यात पर इस तरह अंकुश कसा है, जिससे भारत में ज्यादा उत्पादन करने के ऐपल और फॉक्सकॉन के मकसद में अड़चन पड़ रही है।

चीन की आर्थिक नीतियों के सामने दो तरह की समस्याएं हैं। पहली, चीन की विदेश नीति स्वायत्तता की नीति है। रूस, दक्षिण कोरिया और ईरान के साथ चीन के अच्छे रिश्ते हैं मगर इन चारों के बीच तालमेल बहुत कम है। चीन अपने दम पर विश्व अर्थव्यवस्था के लिए अहम नहीं है। यह पश्चिम से बिल्कुल उलट है, जो डॉनल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल से पहले आर्थिक नीतियों का भरपूर इस्तेमाल करता था। उस समय दुनिया के सभी अमीर देश पश्चिम में ही थे और विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 65 फीसदी हिस्सा उसी के पास था। आज भी अमेरिका को हटा दें तो पश्चिम

विश्व अर्थव्यवस्था में चीन से ज्यादा बड़ी ताकत है।

चीन की दूसरी दिक्कत बौद्धिक नेतृत्व की कमी है। दुनिया में स्तरीय ज्ञान की वाकई कमी है। एएसएमएल ईयूवी लिथोग्राफी मशीन, एफ-35 लाइटनिंग 2 फाइटर, गूगल में गणना करने की क्षमता जैसी बेहद पेचीदा वस्तुओं की बात करें तो इनके लिए खास किस्म के ज्ञान की जरूरत है, जो चुनिंदा लोगों के पास है और इसे किसी शत्रु के हाथों में पहुंचने से बिल्कुल रोका जा सकता है। लेकिन चीन के पास ऐसी बुद्धि नहीं है। जब वह दूसरे देशों की राह में अड़चन खड़ी करता है तो वे थोड़ी ज्यादा रकम खर्च कर कहीं और से वह ज्ञान या संसाधन ले लेते हैं। शुरू में यह महंगा पड़ता है मगर चीन से बाहर की कई कंपनियां ऐसे मौके लपकती हैं और उनकी मदद से कीमत नीचे आ जाती है।

नीति निर्माताओं को इससे क्या सबक मिलता है? चीन की हरकतों का विश्लेषण लोक नीति की बुनियादी समझ को सामने लाती है। पुरुष का अहम कुछ समय तक ताकत दिखाकर संतुष्ट होता है। चीन के ये कदम ऐपल और फॉक्सकॉन की भारत से जुड़ी योजनाओं में कुछ समय के लिए अड़चन जरूर डालेंगे। लेकिन आगे जाकर उनका एकदम उलटा नतीजा होगा। ऐपल, फॉक्सकॉन और हजारों दूसरी बड़ी कंपनियां अब सोचेंगी कि चीन काम करने के लिए ज्यादा खतरनाक है और उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इससे चीन में कामकाज घटाने की उनकी इच्छा और भी गहरी होगी।

लोक नीति के क्षेत्र में मौजूद ज्ञान बेहतर काम करता है: इसमें कुछ समय के लिए होने वाले फायदे से बचना, निष्पक्ष नियम बनाना, लोगों और विदेशियों का सम्मान करना, कानून का पालन करना, नियम और मनमानी का अंतर समझना आदि शामिल हैं। चीन का मॉडल तभी चकनाचूर हो गया था, जब इस ज्ञान के साथ तंग श्याओ फिंग का बनाया बौद्धिक नाता टूट गया।

भारत के लोगों के लिए इसमें क्या सबक हैं? यहां ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें विनिर्माण बेहद कम हुनर वाला छोटा-मोटा काम लगता है, जिसमें हुक्म मानने वाले कामगारों को शिफ्टों में बुलाने भर से काम चल जाता है। यह नजरिया सही नहीं है। आज दुनिया भर में हो रहा विनिर्माण बड़े हुनर का काम है, जिसके लिए पेचीदा फर्म बनानी पड़ती हैं। ज्यादातर भारतीय फर्मों को वैश्विक मोर्चे पर काम करना सीखने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है। जैसे फॉक्सकॉन भारत में ज्ञान ला रही है वैसे ही ज्यादातर भारतीय फर्मों को विदेशी तकनीक के स्रोतों, विदेशी सलाहकारों और विदेशी कर्मचारियों के साथ काम करने से ज्यादा फायदा होगा। आज की दुनिया में कुछ अजीब सी सरकारें भारतीय फर्मों की तरक्की में रोड़ा डाल सकती हैं। इसीलिए भारतीय कंपनियों को सोच-समझकर ऐसी जगह निवेश करना चाहिए, जहां बाधाएं आने से पहले ही उत्पादकता बढ़ाई जा सके। कंपनियों को देश चुनने में भी ध्यान रखना चाहिए और ऐसा देश चुनना चाहिए जहां ऐसे जोखिम कम हों।

  (लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published - July 9, 2025 | 9:33 PM IST

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