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रुख पर कायम रहे सरकार

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बीएस संपादकीय
Last Updated- December 14, 2022 | 7:19 PM IST

गत वर्ष केंद्र सरकार ने वित्तीय संकट से जूझ रही दूरसंचार कंपनियों के लिए एक राहत पैकेज मंजूर किया था ताकि यह उद्योग दो कंपनियों के दबदबे वाला क्षेत्र बनकर न रह जाए। अगर सरकार वोडाफोन आइडिया के बकाया ब्याज को शेयर में बदलने के अपने रुख पर कायम नहीं रहती है तो वह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकेगा। सुधार पैकेज के एक हिस्से के रूप में दूरसंचार कंपनियों को यह विकल्प दिया गया था कि वे सरकार के बकाये के एक हिस्से को शेयर में तब्दील कर दें और वोडाफोन आइडिया ने यह विकल्प चुन लिया था। दूरसंचार कंपनी पर बकाये में से करीब 16,100 करोड़ रुपये के बदले वोडाफोन आइडिया ने अपनी 33 फीसदी हिस्सेदारी सरकार को देना तय किया।

वित्त मंत्रालय और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) दोनों ने इसे मंजूरी दी लेकिन सरकार कंपनी में हिस्सेदारी लेने से पहले लगातार नई शर्तें सामने रखकर हालात को मु​श्किल बना रही है। सरकार ने इस विषय पर कोई सार्वजनिक वक्तव्य नहीं दिया है लेकिन जानकारी के मुताबिक दूरसंचार विभाग चाहता है कि सरकार द्वारा बकाये को हिस्सेदारी में बदलने के पहले वोडाफोन आइडिया के प्रवर्तक कंपनी में पूंजी डालें। सरकार का यह चाहना उचित है कि इस संयुक्त उपक्रम के प्रवर्तक कारोबार में पैसा लगाएं लेकिन केंद्र सरकार ने जो तय किया था उसे बिना किसी देरी के पूरा करना चाहिए।

इस मामले में समय बहुत कीमती है क्योंकि वोडाफोन आइडिया का कुल कर्ज 2.2 लाख करोड़ रुपये है जिसमें बड़ा हिस्सा सरकारी बकाये का है। कंपनी के ग्राहकों की तादाद बहुत तेजी से कम हो रही है और वह अत्य​धिक प्रतिस्पर्धी दूरसंचार बाजार में निवेश करने में विफल दिख रही है। यह इकलौती निजी कंपनी है जो 5जी संबंधी घोषणा से दूरी बनाए हुए है। इस वर्ष के आरंभ में 5जी समेत दूरसंचार स्पेक्ट्रम नीलामी में उसने नाम मात्र की भागीदारी दिखाई।

बर्कशर ​​स्थित मुख्यालय वाली वोडाफोन अपने भारतीय कारोबार का हवाला देते हुए कह चुकी है कि वह फंसे हुए कारोबार में नई पूंजी नहीं लगाएगी। भारत में उसका कारोबार आदित्य बिड़ला समूह के साथ हिस्सेदारी वाला है। भारतीय साझेदार ने भी पैसे लगाने में रुचि नहीं दिखाई, हालांकि कंपनी ने बार-बार फंड जुटाने की घोषणा अवश्य की है। यहां सरकार की भूमिका अहम है। ऐसा इ​सलिए कि वोडाफोन-आ​इडिया की फंड जुटाने की कवायद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा कंपनी के बकाये को शेयरों में बदलने से जुड़ी हुई है।

यहां वोडाफोन आइडिया का वह प्रस्ताव ध्यान देने लायक है जिसमें उसने कहा था कि वह वैक​ल्पिक तौर पर परिवर्तनीय डिबेंचर जारी होने पर उपकरण वेंडर एटीसी टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर का 1,600 करोड़ रुपये का बकाया चुकाएगी। एटीसी-वोडा आइडिया सौदा सरकार द्वारा ब्याज बकाये को शेयर में बदलने से संबद्ध था और गत 6 दिसंबर तक सरकार की ओर से संवाद न होने के चलते पूरा नहीं हो सका था। अब इस सौदे को 28 फरवरी, 2023 तक आगे बढ़ाया गया है लेकिन अभी भी इसका पूरा होना इसी बात पर निर्भर है कि सरकार कंपनी के ब्याज बकाये को शेयर में बदले।

अब सरकार को बिना कोई शर्त रखे अपनी बात पूरी करनी चाहिए। बैंकर और इ​​क्विटी फंड वोडाफोन आइडिया को धन तभी देंगे जब सरकार उन्हें भरोसा दिलाएगी। सरकार ने कंपनी के साथ सौदे की व्यवस्था को नए सिरे से तय करने का संकेत दिया है लेकिन उसका केवल इस कंपनी नहीं ब​ल्कि समूचे दूरसंचार उद्योग पर बुरा असर होगा। वोडाफोन आ​इडिया अब तक दिवालिया नहीं हुई है और यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह देश के दूरसंचार क्षेत्र में कम से कम तीन निजी कंपनियों का रहना सुनिश्चित करे। इस तकनीक आधारित क्षेत्र में दो कंपनियों के दबदबे की संभावना से बचना चाहिए क्योंकि इससे मध्यम से लंबी अव​धि में उपभोक्ताओं के हित प्रभावित होंगे।

First Published : December 13, 2022 | 12:11 AM IST