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नए साल में रिक्त पद भरने पर हो सरकार का ध्यान

कानून एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने बताया था कि जनवरी 2024 के अंत तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत 1,114 पदों में 331 खाली थे।

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प्रसेनजित दत्ता   
Last Updated- January 08, 2025 | 11:21 PM IST

किसी लेखक के लिए नए साल की शुरुआत में छपने वाला स्तंभ उसकी पसंद के किसी विषय से जुड़े मुद्दों को उठाने एवं उस पर ध्यान केंद्रित करने का बेहतरीन अवसर हो सकता है। मगर मैं खुद पर काबू रखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था एवं सरकार से जुड़े एक छोटे मसले पर ध्यान खींचना चाहूंगा। मुद्दा यह है कि विभिन्न सरकारी विभागों एवं नियामकीय इकाइयों में मौजूदा रिक्तियां भर दी जाएं तो क्या भारतीय अर्थव्यवस्था की उत्पादकता बढ़ जाएगी? और क्या इससे कारोबारी जगत एवं नागरिकों को भी फायदा होगा? निजी तौर पर तो मैं यही मानता हूं कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और विभिन्न नियामक इस विषय पर ध्यान केंद्रित करें तो सरकारी काम-काज एवं व्यवस्था में एकाएक बहुत सुधार हो जाएगा।

देश की न्यायपालिका को ही ले लीजिए। अदालतों में इस समय लाखों मुकदमे विचाराधीन हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के तमाम उच्च न्यायालयों में ही 58 लाख से अधिक मुकदमे (लगभग 42.6 लाख दीवानी और लगभग 16 लाख फौजदारी) लंबित हैं। इनमें 62,000 मुकदमे तो 30 वर्षों से भी ज्यादा समय से फैसले की बाट जोह रहे हैं। निचली अदालतों में 4.5 करोड़ से अधिक मुकदमे चल रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नए मुकदमे न आएं तो भी पुराने मुकदमे निपटाने में ही अदालतों को दशकों लग जाएंगे।

हर स्तर पर न्यायाधीशों की गंभीर कमी इस समस्या की प्रमुख जड़ है। देश के कई उच्च न्यायालय तो 50 फीसदी से भी कम न्यायाधीशों से काम चला रहे हैं। पिछले साल संसद में एक सवाल के जवाब में कानून एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने बताया था कि जनवरी 2024 के अंत तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत 1,114 पदों में 331 खाली थे। इसी तरह देश में विभिन्न निचली अदालतों में 5,000 से अधिक पद खाली पड़े थे।

देश के विभिन्न न्यायाधिकरणों एवं नियामकों की भी यही कहानी है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण में कुल 63 सदस्यों की जगह स्वीकृत है मगर नवंबर 2024 तक केवल 43 सदस्य ही काम कर रहे थे। किसी दिवालिया याचिका के समाधान के लिए 330 दिन का समय तय है मगर अब इसमें औसतन 716 दिन लग जाते हैं। ऋण वसूली न्यायाधिकरण तो काम ही नहीं पा रहा क्योंकि उसमें पीठासीन अधिकारी ही नहीं है।

कार्यपालिका की भी यही कहानी है, जो खाली पदों के कारण होने वाली समस्याओं से कई वर्षों से जूझ रही है। ज्यादातर राज्यों के पुलिस विभागों में हजारों पद खाली हैं। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो ने कुछ समय पहले हिसाब लगाया था कि देश में पुलिस विभागों में 20 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं।

खास तौर पर अफसरशाही के निचले स्तर पर मौजूद रिक्तियां वर्षों से भरी नहीं गई हैं। भारतीय रेल में लाखों पद खाली पड़े हैं, जबकि भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सुरक्षा से जुड़े पदों पर पर्याप्त भर्तियां नहीं होने के कारण उसे खरी-खोटी भी सुना चुका है। केंद्र एवं राज्य सरकार के अस्पतालों एवं स्कूलों में कर्मचारियों की कमी अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। लगभग सभी सरकारी विभागों में कमोबेश यही स्थिति है।

यह भी ध्यान रहे कि ये स्वीकृत पद हैं यानी तत्कालीन परिस्थितियों को देखकर बनाए गए थे। हो सकता है कि आज इससे भी कहीं अधिक कर्मचारियों की जरूरत हो। इन पदों की संख्या दशकों पहले तय की गई थी और तब से अब तक देश की आबादी कई गुना बढ़ चुकी है। केवल उच्चतम न्यायालय अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहा है मगर यहां भी बड़ी संख्या में मामले विचाराधीन हैं क्योंकि अभी तक यही तय नहीं हो पाया है कि वहां कितने न्यायाधीश और नियुक्त करने की जरूरत है।

इससे विरोधाभासी स्थिति पैदा हो जाती है। सभी रिक्तियां युद्ध स्तर पर भरी जाएं तो निश्चित तौर पर भारत में बेरोजगारी की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। हालांकि बेरोजगारों की संख्या देखते हुए यह ऊंट के मुंह में जीरा ही होगा मगर जहां से जो हो जाए, अच्छा है। बड़ी बात यह है कि मौजूदा रिक्तियां भरने से ही नागरिकों के जीवन के हरेक स्तर पर दिक्कतें कम हो जाएंगी। फिर सरकारें (केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारें) इस समस्या का समाधान खोजने के लिए निर्णायक पहल क्यों नहीं करती हैं?

इसके लिए कुछ हद तक निरंकुश व्यवस्था और अफसरशाही जिम्मेदार हैं। अखबारों में अक्सर खबरें आती हैं कि प्रश्न पत्र लीक होने के कारण सरकारी भर्ती परीक्षाएं रद्द हो गईं या टाल दी गईं। कई बार बजट की समस्या भी होती है। राजस्व की स्थिति ठीक न हो तो रिक्तियां भरने का काम टाल देना सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में पुराना तरीका है। भविष्य में पेंशन देने की चिंता भी इसकी वजह हो सकती है।

स्वचालन, डिजिटलीकरण और अन्य तकनीकी प्रगति के दौर में मानव श्रम की आवश्यकताएं कम होना भी इन रिक्तियों की एक वजह हो सकती है। ये सभी कारण अपनी जगह सही हो सकते हैं मगर भर्तियां नहीं करना भी तो समाधान नहीं हो सकता सिवाय उन क्षेत्रों में जहां स्वचालन से सभी स्वीकृत पद भरे जाने की जरूरत वाकई कम हो जाएंगी।

मगर अन्य क्षेत्रों में जैसे न्यायालय, अस्पताल और पुलिस विभागों में पद रिक्त रहने से कार्यों के निष्पादन में देरी होती है और पूरी क्षमता के साथ काम नहीं होने से उत्पादकता प्रभावित होती है। इससे देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में नुकसान की आशंका रहती है। सरकारों को यह बात समझनी होगी।

(लेखक बिजनेसवर्ल्ड और बिजनेस टुडे के संपादक रह चुके हैं तथा संपादकीय सलाहकार संस्था प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं)

First Published : January 8, 2025 | 11:15 PM IST