प्रतीकात्मक तस्वीर
सिटी यूनियन बैंक, कर्णाटका बैंक लिमिटेड, बंधन बैंक लिमिटेड, साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड, डीसीबी बैंक लिमिटेड और पंजाब एवं सिंध बैंक में एक जैसा क्या है? जवाब है इन सभी की गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए), जो कम से कम 1 प्रतिशत हैं। ऐक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, आईडीबीआई बैंक, करूर वैश्य बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और कुछ अन्य बैंकों में एनपीए केवल 0.5 प्रतिशत है। एनपीए का यह आंकड़ा सूचीबद्ध यूनिवर्सल बैंकों के दिसंबर तिमाही के नतीजों से लिया गया है।
जहां तक सकल एनपीए की बात है तो बंधन बैंक, जम्मू कश्मीर बैंक लिमिटेड और पंजाब नैशनल बैंक में सकल एनपीए कम से कम 4 प्रतिशत है और ऐक्सिस बैंक तथा एचडीएफसी बैंक में एनपीए 1.5 प्रतिशत से कम है। वित्त वर्ष 2024-25 की दिसंबर तिमाही में अच्छी बात यह रही है कि ऐसे बैंकों की संख्या अधिक रही है, जिनका सकल एवं शुद्ध एनपीए प्रतिशत कम रहा है। यह बात और है कि पूरे आंकड़े देखने पर निजी बैंकों की सकल एनपीए सितंबर तिमाही की 1.35 लाख करोड़ रुपये से मामूली बढ़कर दिसंबर में 1.39 लाख करोड़ रुपये हो गई। एक साल पहले इसी अवधि में यह 1.37 लाख करोड़ रुपये थी।
शुद्ध एनपीए में भी यही रुझान देखा जा रहा है, जो दिसंबर तिमाही में बढ़कर 36,260 करोड़ रुपये हो गई। यह सितंबर में 34,843 करोड़ रुपये और दिसंबर 2023 में 33,116 करोड़ रुपये थी।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भी फंसे ऋणों की मात्रा कम हो रही है। उनमें दिसंबर 2023 तिमाही में 4.93 लाख करोड़ रुपये सकल एनपीए थी, जो सितंबर तिमाही में कम होकर 4.57 लाख करोड़ रुपये रह गई। यह दिसंबर 2024 में और कम होकर 4.44 लाख करोड़ रुपये रही। शुद्ध एनपीए भी दिसंबर 2020 के 1.12 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े से कम होकर सितंबर 2024 में 99,675 करोड़ रुपये रह गई। दिसंबर 2024 में यह और भी घटकर 99,556 करोड़ रुपये तक आ गई।
भारतीय रिजर्व बैंक ने रेहन या जमानत के बगैर दिए जा रहे पर्सनल लोन में तेज इजाफा देखकर इसमें कमी लाने के उपाय किए थे, जो कारगर होते दिख रहे है। नवंबर 2023 में केंद्रीय बैंक ने ऐसे कर्ज पर जोखिम भार बढ़ा दिया, जिससे बैंकों के लिए इस तरह का कर्ज देना महंगा हो गया क्योंकि उन्हें इसके लिए अधिक पूंजी की जरूरत पड़ रही है। इससे पर्सनल लोन श्रेणी में एनपीए काबू में आ रही है।
दिसंबर तिमाही में निजी क्षेत्र के बैंकों की शुद्ध ब्याज आय दिसंबर 2023 तिमाही के मुकाबले 8.88 प्रतिशत बढ़कर 1.02 लाख करोड़ रुपये हो गई। सितंबर 2024 तिमाही के मुकाबले इसमें 1.51 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की शुद्ध ब्याज आय एक साल पहले की तुलना में 5.44 प्रतिशत बढ़कर 1.07 लाख करोड़ रुपये हो गई मगर सितंबर 2024 तिमाही के मुकाबले इसमें 1.06 प्रतिशत बढ़ोतरी ही दर्ज की गई। बैंक कर्ज पर जो ब्याज कमा रहे होते हैं, उसमें से जमा पर दिया जा रहा ब्याज घटाने पर उनकी शुद्ध ब्याज आय निकल आती है।
दिसंबर तिमाही में निजी बैंकों की अन्य आय भी दिसंबर 2023 से 10.2 प्रतिशत बढ़ी मगर सितंबर 2024 की तुलना में यह 1.7 प्रतिशत गिर गई। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में साल भर पहले से 14.04 प्रतिशत और एक तिमाही पहले से 18.64 प्रतिशत तक तेजी देखी गई। अन्य आय में फीस, कमीशन और ट्रेजरी आय शामिल होती हैं।
दिलचस्प बात कि निजी बैंकों ने पिछले साल फंसे ऋणों के लिए जितनी रकम का प्रोविजन या इंतजाम किया था वह साल भर पहले के मुकाबले भी बढ़ी और एक तिमाही पहले के मुकाबले भी। मगर इसमें किसी साफ रुझान का पता नहीं चल रहा है। दिसंबर 2023 तिमाही में निजी बैंकों ने ऐसे कर्ज के लिए 10,997 करोड़ रुपये रखे थे, जो सितंबर 2024 तिमाही में बढ़कर 13,134 करोड़ रुपये हो गए और दिसंबर 2024 तिमाही में उन्हें 14,149 करोड़ रुपये का प्रोविजन करना पड़ा। सार्वजनिक बैंकों ने दिसंबर 2023 तिमाही में 12,495 करोड़ रुपये और सितंबर 2024 में 16,445 करोड़ रुपये का प्रोविजन किया था मगर दिसंबर 2024 तिमाही में रकम घटकर 10,193 करोड़ रुपये ही रह गई।
बैंकों के कुल परिचालन मुनाफे की बात करें तो दिसंबर तिमाही में निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए यह 10.6 प्रतिशत बढ़कर 75,315 करोड़ रुपये हो गया, जो सितंबर में खत्म तिमाही की तुलना में सपाट ही था। प्रोविजन के बाद शुद्ध मुनाफा साल भर पहले से 3.97 प्रतिशत बढ़कर 46,374 करोड़ रुपये हो गया मगर एक तिमाही पहले की तुलना में 2.48 प्रतिशत की कमी आ गई। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का परिचालन मुनाफा दिसंबर तिमाही में 13.28 प्रतिशत बढ़कर 70,218 करोड़ रुपये हो गया मगर सितंबर तिमाही के मुकाबले यह 10.72 प्रतिशत फिसल गया। एक साल पहले की तुलना में इन बैंकों का शुद्ध मुनाफा 46.81 प्रतिशत बढ़कर 44,474 करोड़ रुपये रहा मगर एक तिमाही पहले से यह 2.36 प्रतिशत कम हो गया।
खत्म करने से पहले बैंकों के मुनाफे का आकलन करने वाले दो सबसे अहम पैमाने देख लेते हैं। ये हैं – कुल जमा में सस्ते चालू एवं बचत खाते (कासा) का प्रतिशत और बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) शामिल हैं। बैंक जमा पर जितना ब्याज देते हैं और ऋण पर जो ब्याज कमाते हैं उनके अंतर का प्रतिशत ही यह मार्जिन होता है।
छह बड़े बैंकों – दो निजी और चार सरकारी बैंक – का कासा अनुपात दिसंबर तिमाही में मामूली बढ़ा है। येस बैंक का कासा 32 प्रतिशत से बढ़कर 33.1 प्रतिशत और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का कासा 32.72 प्रतिशत से बढ़कर 33.43 प्रतिशत हो गया। पंजाब ऐंड सिंध बैंक के लिए यह 30.43 प्रतिशत से बढ़कर 31.16 प्रतिशत और इंडियन ओवरसीज बैंक के लिए 42.44 प्रतिशत से बढ़कर 43.37 प्रतिशत हो गया। आईसीआईसीआई बैंक और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक लिमिटेड को छोड़कर सभी बैंकों का कासा अनुपात दिसंबर तिमाही में साल भर पहले से कम रह गया।
इस बीच ज्यादातर बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन दिसंबर तिमाही में कम रहा है, जिसे बैंक द्वारा बांटे गए ऋण से जोड़कर देखा जाता है। अगर असुरक्षित ऋण श्रेणी में किसी बैंक की हिस्सेदारी ज्यादा होती है तो उसका शुद्ध ब्याज मार्जिन अधिक रहता है मगर उसे ऋण की लागत या परिसंपत्ति की गुणवत्ता पर थोड़ा सतर्क रहना पड़ता है।
नीतिगत दर में 25 आधार अंक की कटौती के बाद बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन पर और असर पड़ सकता है। सभी खुदरा ऋण रीपो रेट से जुड़े होते हैं। रीपो रेट में कमी से बैंक ऐसे ऋणों पर ब्याज कम कर रहे हैं मगर रकम जुटाने पर उनका खर्च कम नहीं हुआ है क्योंकि वे जमा पर ब्याज दर कम नहीं कर रहे हैं। कंपनियों को आवंटित ऋण रकम जुटाने पर आ रही बैंकों की लागत से जुड़े होते हैं। बैंक जमा पर अपनी लागत संभालने के लिए कंपनियों के लिए कर्ज महंगा कर रहे हैं। जब तक बैंकों में जमा रकम पाने की होड़ लगी रहेगी तब तक बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन दबाव में रहेगा।
शेयर बाजार में तेज गिरावट और म्युचुअल फंड निवेश में कमी को देखते हुए कुछ बैंकों को जमा बढ़ने की उम्मीद दिखने लगी है। मगर फिलहाल स्थिति साफ होने का इंतजार ही किया जा सकता है।