महत्त्वपूर्ण नए वृहद-आर्थिक आंकड़े सोमवार को जारी किए गए। ये आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था के महामारी से उबरने की पूरी तस्वीर पेश करते हैं और यह भी बताते हैं कि महामारी की हालिया दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को किस हद तक प्रभावित किया। इनसे यह भी पता चलता है कि सरकार के पास आपात स्थिति से निपटने की कितनी राजकोषीय गुंजाइश है। केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने 2020-21 के संपूर्ण वित्त वर्ष के राष्ट्रीय आय के प्रारंभिक अनुमान पेश किए और साथ ही जनवरी से मार्च तिमाही के नियमित तिमाही अनुमान भी प्रस्तुत किए। महामारी वाले वर्ष यानी 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर अनुमान से कम घटी और वह 7.3 फीसदी ऋणात्मक रही।
पिछले चार दशक से देश की जीडीपी वृद्धि दर ऋणात्मक नहीं हुई थी लेकिन चूंकि 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि में 20 फीसदी से अधिक गिरावट आई थी इसलिए पूरे वर्ष की गिरावट में कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है। आंकड़े आंशिक रूप से अनुमान से बेहतर इसलिए रहे क्योंकि जनवरी से मार्च तिमाही में काफी सुधार हुआ था जिसने अर्थशास्त्रियों को भी चौंकाया था। उस तिमाही में कुछ उप क्षेत्रों ने सुधार में काफी मदद की: विनिर्माण वृद्धि तो बढ़कर 7 फीसदी के आसपास पहुंच गई थी। विनिर्माण के इस सकारात्मक प्रदर्शन को हाल में सामने आए कुछ बेहतर कारोबारी नतीजों में देखा जा सकता है। वित्त, अचल संपत्ति और अन्य पेशेवर सेवाओं में भी 5.4 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली। चौथी तिमाही में कम कुशल लोगों को रोजगार देने में अहम भूमिका निभाने वाले निर्माण क्षेत्र में भी 14.5 फीसदी की अहम वृद्धि देखने को मिली। यहां तक कि व्यापार, होटल और संचार क्षेत्र जिनमें पहली तिमाही में 50 फीसदी की गिरावट आई थी वे भी चौथी तिमाही में महामारी के पहले वाले स्तर पर वापस आ गए।
निश्चित तौर पर इन आंकड़ों में दूसरी लहर के पूरे प्रभाव को समेटा नहीं जा सकता है, खासतौर पर कुछ कड़े राज्यस्तरीय लॉकडाउन को। काफी संभावना है कि सुधार का जो माहौल बन रहा था वह प्रभावित हुआ हो। यह भी कहा जा सकता है कि चौथी तिमाही के आंकड़े शारीरिक दूरी के मामले में शिथिल रुख को भी दर्शाते हैं। यह आंशिक रूप से दूसरी लहर के मामलों और मौतों के लिए भी उत्तरदायी है। स्पष्ट है कि जहां अर्थव्यवस्था में यह क्षमता है कि वायरस के समाप्त होने के बाद वह अपनी क्षमता तेजी से वापस पा सकती है, वहीं महामारी अभी भी एक कारक है। चौथी तिमाही में हुई वापसी व्यापक टीकाकरण जैसे उपायों के बगैर नहीं दोहराई जा सकती। अर्थशास्त्री 2021-22 में 10 फीसदी वृद्धि की आशा कर रहे हैं। परंतु यह इस पर निर्भर होगा कि वायरस को कितनी जल्दी रोका जाता है और टीकाकरण किस गति से होता है।
सोमवार को ही जारी महालेखा नियंत्रक के अनुमान के अनुसार 2020-21 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 9.3 फीसदी रहने की बात कही गई जो आम बजट में उल्लिखित 9.5 फीसदी से कुछ कम है। हालांकि यह आंकड़ा भी काफी अधिक है। सरकार जहां इस बात पर जोर दे रही है कि जीडीपी वापस करेगा वहीं राजकोषीय घाटा निकट भविष्य में ऊंचा बना रहेगा। 9.3 फीसदी का स्तर उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए बहुत असंगत नहीं है लेकिन यह याद दिलाता है कि सरकार के पास महामारी से निपटने के लिए सीमित राजकोषीय गुंजाइश है। सरकार को जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना जारी रखना होगा। सुधार को गति देने का वही सबसे प्रभावी तरीका है।