इस साल जून महीने में उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 1.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। आमतौर पर यह मई महीने की 0.8 प्रतिशत की वृद्धि से बेहतर था। लेकिन यह अब भी धारणाओं की मंद वृद्धि को ही दर्शाता है जो हाल के दिनों में देखा गया है। ऐसी वृद्धि की रफ्तार जनवरी और फरवरी के 4-5 प्रतिशत से घटकर मार्च और अप्रैल में 3 प्रतिशत रह गई थी जो मई और जून में लगभग 1 प्रतिशत हो गई। धारणा में वृद्धि की गति में क्रमिक स्तर पर गिरावट का अंदाजा उपभोक्ताओं की भविष्य से जुड़ी उम्मीदों में कमी से पता लगाया जा सकता है। अमूमन कोई भी परिवार अपनी मौजूदा स्थिति में सुधार की जानकारी देते हैं लेकिन वे भविष्य को लेकर उतनी ही तेजी से सतर्कता बरत रहे हैं।
यह उम्मीद करना तर्कसंगत है कि वर्तमान आर्थिक स्थितियों में स्थिर सुधार भविष्य के लिए दृष्टिकोण में सुधार के रूप में दिखना चाहिए। लोग अक्सर अपने वर्तमान अनुभवों को भविष्य के रूप में दिखाते हैं। ऐसे में दोनों में एक परिवर्तन से संरक्षित या सतर्क घरेलू क्षेत्र का एक मजबूत संकेत है।
जनवरी से जून 2022 के बीच, मौजूदा आर्थिक स्थिति सूचकांक (आईसीसी) में 28.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन उपभोक्ता प्रत्याशा सूचकांक (आईसीई) में 13.2 प्रतिशत की बहुत धीमी गति से वृद्धि हुई। इन छह महीनों में से चार महीने में, आईसीसी दरअसल आईसीई की तुलना में तेज दर से बढ़ी। जून 2022 में, आईसीसी में 2.65 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन आईसीई अपने पिछले महीने के स्तर पर स्थिर हो गया। ऐसे में जब परिवारों की मौजूदा स्थिति में सुधार हो रहा है लेकिन उनकी अपेक्षाएं समान रूप से नहीं बढ़ रही हैं।
आईसीसी के दो घटकों में से एक में इस धारणा पर सवाल है जिसके बारे में परिवारों ने एक साल पहले के स्तर की तुलना में अपनी आमदनी की जानकारी दी है। जून 2022 में 13.3 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनकी आमदनी एक साल पहले की तुलना में अधिक थी। यह महामारी और इसके परिणामस्वरूप लगे लॉकडाउन के बाद का उच्चतम अनुपात है जिस दौरान अप्रैल 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप पड़ गई थी।
पिछले चार महीनों में फरवरी से मई 2022 के दौरान यह अनुपात 12 से 12.8 प्रतिशत के बीच रहा। शहरी क्षेत्रों में आशावाद में आई तेजी के चलते जून में 13.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
लगभग 15.1 प्रतिशत शहरी लोगों ने कहा कि जून 2022 में उनकी आमदनी एक साल पहले की तुलना में अधिक थी। पिछले महीने में यह अनुपात 13 प्रतिशत या उससे कम था। वहीं शहरी घरों के उत्साह में तेजी थी जबकि ग्रामीण परिवारों में उत्साह की कमी का रुझान था। वैसे ग्रामीण परिवारों के अनुपात में कमी आई जिन्होंने कहा था कि उनकी आमदनी एक साल पहले की तुलना में अधिक थी हालांकि यह कमी थोड़ी ही थी जो मई के 12.6 प्रतिशत से घटकर जून में 12.5 प्रतिशत तक हो गई।
परिवारों को भविष्य को लेकर कम उम्मीदें थी। जिन परिवारों को लगा कि उनकी आमदनी एक वर्ष में अधिक होगी, उनका अनुपात उन लोगों की तुलना में कम था जिन्होंने कहा था कि उन्होंने इससे पिछले वर्ष की तुलना में आमदनी में तेजी देखी है। वहीं13.3 प्रतिशत परिवारों का कहना है कि उनकी आमदनी एक साल पहले की तुलना में अधिक थी, केवल 10.2 प्रतिशत ने कहा कि आने वाले वर्ष में उनकी आमदनी बढ़ेगी। इसके अलावा जून 2022 में अपनी आमदनी में सुधार की सूचना देने वाले परिवारों का अनुपात बढ़ गया वहीं जो लोग भविष्य में एक साल में अपनी आमदनी बढ़ने की उम्मीद करते थे उनकी तादाद जून महीने में घट गई।
भविष्य को लेकर यह निराशा ग्रामीण परिवारों तक ही सीमित थी। ग्रामीण क्षेत्र के वैसे परिवार जो मानते हैं कि उनकी आमदनी एक वर्ष में अधिक होगी उनका अनुपात घटकर इस साल अप्रैल के 12.6 प्रतिशत से मई में 10.1 प्रतिशत और जून महीने में 9 प्रतिशत तक सिमट गया। ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाले वर्ष के दौरान कारोबार की स्थिति को लेकर उम्मीदों में भी कमी आई है। अगले पांच वर्षों में आर्थिक स्थितियों के लिए आशावाद में भी कमी आई है। यह गिरावट पिछले तीन महीनों में फिर से देखी जा रही है।
अप्रैल महीने में 11.6 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने आने वाले पांच साल की अवधि के दौरान आर्थिक स्थिति में सुधार की उम्मीद की। यह अनुपात मई में घटकर 9.7 प्रतिशत और फिर जून में 8 प्रतिशत रह गया।उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की खरीद के उनके इरादों के बारे में ग्रामीण परिवारों के फैसले पर इन बढ़ती नकारात्मक धारणाओं का सीधा प्रभाव पड़ा। जिन परिवारों का मानना था कि उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं को खरीदने का यह एक अच्छा समय था, उनका अनुपात काफी तेजी से कम हो गया और यह मई के 12.6 प्रतिशत से कम होकर जून 2022 में 11.3 प्रतिशत हो गया।
शहरी भारत भी भविष्य के बारे में बहुत अधिक चिंतित नहीं है। शहरी क्षेत्र के 15.1 प्रतिशत परिवारों ने पिछले एक साल की तुलना में अपनी आमदनी में सुधार की सूचना दी जबकि केवल 12.7 प्रतिशत परिवारों ने ही अगले 12 महीनों में सुधार की उम्मीद जताई। अगले 12 महीनों में कारोबारी स्थितियों में सुधार की उम्मीद करने वाले परिवारों के अनुपात में मामूली गिरावट आई और यह 11.5 प्रतिशत था। इसके अलावा, आने वाले पांच वर्षों में अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद करने वाले परिवारों का अनुपात मई के 11.3 प्रतिशत से घटकर जून में 10.8 प्रतिशत हो गया।
शहरी भारत में आशावाद में कमी थोड़ी कम है । नतीजतन, इसका उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं को खरीदने के लिए शहरी लोगों के रुझान पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। एक साल पहले की तुलना में मौजूदा समय को उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं को खरीदने के लिए बेहतर समय मानने वाले परिवारों का अनुपात मई के 14 प्रतिशत से बढ़कर जून में 14.9 प्रतिशत हो गया। हालांकि, भविष्य के बारे में कमजोर धारणा, शहरी भारत में इस छोटे से सुधार को काफी हद तक कमजोर ही दिखाती है।
घरेलू आमदनी में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, लेकिन भविष्य के बारे में उनकी धारणा कमजोर पड़ रही है। इसके चलते गैर-जरूरी वस्तुओं पर खर्च करने का उनका रुझान प्रभावित हो रहा है।
(लेखक सीएमआईई प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और सीईओ हैं)