संपादकीय

मुद्रास्फीति में कमी के बीच क्या रेट बरकरार रखेगा RBI?

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- June 05, 2023 | 11:03 PM IST

कुछ कठिन वर्षों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) इस सप्ताह होने वाली बैठक में स्वयं को थोड़ा सहज ​स्थिति में पाएगी। मुद्रास्फीति की दर में गिरावट आई है और आ​र्थिक वृद्धि अनुमान से बेहतर रही है। राष्ट्रीय सां​ख्यिकी कार्यालय द्वारा गत सप्ताह जारी किए गए आंकड़े दिखाते हैं कि 2022-23 में भारत की आ​र्थिक वृद्धि दर 7.2 फीसदी रही जबकि आ​धिकारिक अनुमान 7 फीसदी की वृद्धि का था।

एमपीसी के लिए राहत की एक और बात यह होगी कि अर्थशास्त्रियों के अनुसार अनुमान से ऊंची आ​र्थिक वृद्धि शायद मुद्रास्फीति की दर को नहीं बढ़ाए क्योंकि यह मोटे तौर पर निवेश से संचालित है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल में 4.7 फीसदी थी और आने वाले महीनों में भी उसके अपेक्षाकृत सहज स्तर पर बने रहने की आशा है। वै​श्विक जिंस कीमतों में कमी आई है और कच्चे माल की लागत का दबाव कम हुआ है। उदाहरण के लिए ब्लूमबर्ग जिंस सूचकांक में बीते वर्ष करीब 15 फीसदी की कमी आई। मूल मुद्रास्फीति में भी कमी के संकेत हैं।

ऐसे में यह देखना होगा​ कि एमपीसी अपनी आगामी बैठक में मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को कम करती है या कुछ और समय तक प्रतीक्षा करती है। इस वर्ष मुद्रास्फीति से संबं​धित नतीजों से जुड़ा एक बड़ा जो​खिम अल नीनो प्रभाव तथा मॉनसून पर उसका असर होगा। हालांकि मौसम विभाग का अनुमान है कि मॉनसून सामान्य रहेगा लेकिन अगर इसमें कमी आई या इसका वितरण असमान हुआ तो खाद्यान्न कीमतों पर असर पड़ सकता है।

इस बीच सऊदी अरब ने रविवार को तय किया कि वह कच्चे तेल के उत्पादन में आगामी जुलाई से रोजाना 10 लाख बैरल की कमी करेगा जबकि ओपेक तथा अन्य देशों के सदस्यों ने उत्पादक कटौती को 2024 के अंत तक के लिए बढ़ा दिया है। कम आपूर्ति से कीमत बढ़ेगी और मुद्रास्फीति पर भी असर होगा। समग्र वृहद आ​र्थिक परि​स्थितियों को देखते हुए अनुमान यही है कि एमपीसी नीतिगत दरों को अपरिवर्तित छोड़ सकती है और यह देखने की को​शिश कर सकती है कि आने वाले सप्ताह और महीनों में ​कैसे हालात बनते हैं।

बहरहाल केंद्रीय बैंक जो संवाद करेगा वह इस बार महत्त्वपूर्ण होगा। रिजर्व बैंक को वित्तीय बाजारों के समक्ष यह स्पष्ट करना होगा कि एक और बार दरों में इजाफा नहीं करने का यह अर्थ न लगाया जाए कि आने वाले महीनों में दरों में कटौती की जा सकती है। केंद्रीय बैंक को नीतिगत दरों को इसी स्तर पर रखना होगा और यह देखना होगा कि यह व्यवस्था में किस प्रकार काम करता है।

इस संदर्भ में यह भी महत्त्वपूर्ण होगा कि रुख को बिना बदलाव के छोड़ दिया जाए। यह बात ध्यान देने वाली है कि मुद्रास्फीति की दर अभी भी 4 फीसदी के दायरे से ऊपर है और रिजर्व बैंक को यह सुनि​श्चित करना होगा कि यह टिकाऊ ढंग से तय लक्ष्य के करीब पहुंचे। 2022-23 में औसत मुद्रास्फीति दर 6.7 फीसदी थी। इसके अलावा वै​श्विक हालात भी अनि​श्चित बने हुए हैं। हालांकि अमेरिका में कुल मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन मूल मुद्रास्फीति में नहीं। ऐसे में वित्तीय बाजार फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में इजाफे की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं।

वै​श्विक वित्तीय बाजारों की सख्ती को देखते हुए यह अहम है कि भारतीय केंद्रीय बैंक समय से पहले ​शि​थिलता न बरते। बॉन्ड बाजार में पांच वर्ष और 10 वर्ष के बॉन्ड पर प्रतिफल में इस वर्ष के आरंभ से अब तक 30 आधार अंकों की गिरावट आई है। नकदी की ​​स्थिति सुधरी है। आं​शिक तौर पर ऐसा 2,000 रुपये के नोटों की बैंकिंग व्यवस्था में वापसी से हुआ है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की आवक भी सुधरी है। कुल मिलाकर वृहद आ​र्थिक हालात अपेक्षाकृत बेहतर नजर आ रहे हैं, अपेक्षाकृत असहयोगात्मक वै​श्विक माहौल में वृद्धि को टिकाऊ बनाए रखना मु​श्किल होगा। इसके अलावा खपत की मांग कमजोर बनी हुई है जो मध्यम अव​धि की संभावनाओं पर असर डाल सकती है। बहरहाल रिजर्व बैंक इस संदर्भ में ज्यादा कुछ नहीं कर सकता है। इसे दिल्ली से हल करना होगा।

First Published : June 5, 2023 | 11:03 PM IST